डोकलाम विवाद : चीन से लगती सीमा पर सड़क निर्माण प्रक्रिया होगी तेज
डोकलाम विवाद के बाद सेना ने चीन से लगते सीमाई इलाकों में सड़क निर्माण की प्रक्रिया तेज करने का फैसला किया है। सेना के इंजीनियर्स कोर को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिए जरूरी अत्याधुनिक उपकरण खरीदने के लिए कदम भी उठाए जा चुके हैं।
सड़क सुविधा विकसित होने से भारतीय जवान चीन से लगती तकरीबन 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा पर शीघ्रता से कहीं भी आ-जा सकेंगे।
रणनीतिक रूप से संवेदनशील चीन की सीमा पर अच्छी सड़क की जरूरत लंबे समय से महसूस की जाती रही है। सूत्रों ने बताया कि इंजीनियर्स कोर ने पहाड़ को काटने वाले आधुनिक कटर और सड़क निर्माण के लिए जरूरी अन्य उपकरण की खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी है।
असॉल्ट ट्रैक (सड़क निर्माण के लिए अपेक्षाकृत कम वजन वाली सामग्री जिससे सैन्य वाहन आसानी से पूरी रफ्तार के साथ गुजर सकें) खरीदने के लिए भी कदम उठाए चुके हैं।
सेना मुख्यालय बारूदी सुरंग का पता लगाने के लिए एक हजार से ज्यादा आधुनिक डुअल ट्रैक माइन डिटेक्टर्स खरीदने का आदेश दे चुका है।
दुर्गम पहाड़ों में खुदाई करने में सक्षम 100 से ज्यादा आधुनिक एक्सकेवेटर्स (जेसीबी मशीन) भी खरीदे जा रहे हैं। सीमा से लगते संवेदनशील इलाकों में त्वरित आवागमन के लिए संपर्क मार्ग विकसित करने में 237 साल पुराने इंजीनियर्स कोर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है।
योजना के मुताबिक, शुरुआत में सेना के इंजीनियर पर्वतीय इलाकों में सड़क का निर्माण करेंगे और जरूरत पड़ने पर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) उसे मजबूत करेंगे।
निर्माण में देरी से सेना थी नाखुश वर्ष 2005 में बीआरओ को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चीन से लगती सीमा पर 73 सड़कें बनाने को कहा गया था। परियोजना के क्रियान्वयन की सुस्त रफ्तार से सेना नाखुश थी।
डोकलाम विवाद के बाद सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने चीन के रवैये पर गंभीर चिंता जताते हुए अन्य इलाकों में भी इस तरह की घटनाएं होने का अंदेशा जताया था।
जून में शुरू हुआ डोकलाम विवाद 73 दिनों के बाद अगस्त में ठंडा पड़ा था।