हां मैं मिला था हाजी मस्तान से !
( कीर्ति राणा )
हां मैं कुबूल करता हूं कि मुंबई के डॉन रहे हाजी मस्तान से मैं मिला था।यह मुलाकात इंदौर में ही हुई थी।शायद 33-34 साल पहले 1986 में। गौर करने लायक यह कि जिला प्रशासन और पुलिस की खुफिया एजेंसियों को यह भनक तक नहीं थी कि हाजी मस्तान इंदौर में है।
यह प्रसंग आज इसलिए मौजू हो गया है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में शिवसेना नेता संजय राउत के बयान से भूचाल सा आया हुआ है।उन्होंने यह कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला की मुलाकात हुई थी।
दिन भर से न्यूज चैनलों पर चल रही इस सनसनी के चलते मुझे याद आ गया हाजी मस्तान से मुलाकात का किस्सा जिसकी तस्दीक करता यह फोटो है।हुआ यूं कि मुझे जानकारी मिली कि हाजी मस्तान इंदौर आए हुए हैं और व्हाइट चर्च कॉलोनी में (अपने निकट के रिश्तेदार के यहां रुके हुए हैं।)कहीं से उस परिवार का नंबर तलाशा, फोन पर उधर से जैसे ही मिर्जा मस्तान बोल रहा हूं कि आवाज आई। इधर से मैंने मस्तान भाई, अस्सलाम वालेकुम कहते हुए इस अंदाज में बात की जैसे मैं पहले से उन्हें जानता हूं।कुछ ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने दोपहर बाद मुलाकात का वक्त दे दिया।मैं पहुंच गया, वो सफेद सफारी, सफेद मोजे पहने पलंग पर डबल तकिए पर हाथ और उस पर सिर रखे अधलेटे से थे।अब दोनों तकिए पीठ के पीछे रख कर वे लंबे पैर किए बैठ गए थे। मैं पलंग के किनारे रखी कुर्सी पर बैठ गया और अपने आने का मकसद बताया कि भास्कर के लिए बातचीत करना है। पहली बार में तो उन्होंने यह कहते हुए बातचीत करने से इंकार कर दिया है कि वे सब गलत धंधे सालों पहले छोड़ चुके है।मैंने कहा मस्तान भाई, आपने जो पोलिटिकल पार्टी बनाई है, मैं तो उस पर बात करने आया हूं।उन्होंने दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ बनाया था बड़े नामों का संक्षिप्तिकरण करने की अपनी आदत के तहत मैंने उनकी पार्टी का नाम ‘दमुसुम’ सुनाया तो मुस्कुरा दिए थे।इस पार्टी के उनके दूसरे बड़े सहयोगी जोगिंदर कावड़े भी साथ थे। (अपनी इस पार्टी को लेकर बड़े सपने देखने वाले मस्तान मिर्जा ने खुद तो चुनाव लड़ा, बाकी प्रत्याशी भी खड़े किए लेकिन जीता एक भी नहीं।)
बातचीत करने के बाद मैं उठा तो वे भी कहीं जाने के लिए उठ खड़े हुए और बाहर कार में आकर बैठ गए। मैंने हाथ मिलाते हुए उनसे विदा ली, तब का यह फोटो संभवत: विनोद तिवारी ने लिया था।रात में रोज की तरह घटना-दुर्घटना की जानकारी के लिए तत्कालीन कलेक्टर तब ओपी रावत (जो बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त पद से रिटायर्ड हुए) को फोन लगाया। इधर उधर की बातचीत के बाद मैंने पूछा क्या हाजी मस्तान शहर में है क्या? उन्होंने इंकार करते हुए कहा ऐसी कोई सूचना नहीं है। मैंने कहा सर पता तो कीजिए, वे बोले दस मिनट बाद बात करना। इस बीच वे डीएसबी शाखा सहित पुलिस कीअन्य एजेंसियों से जानकारी ले चुके थे। मैंने फोन लगाया तो कहने लगे आप की जानकारी गलत है। मैंने कहा,पुलिस को जानकारी नहीं है। मैं हाजी मस्तान से मिलकर आया हूं। कलेक्टर बोले कहां हुई आप की मुलाकात ? मैंने कहा पुलिस को ही पता नहीं है तो मैं क्यों बताऊं, कल के अखबार में देंगे इंटरव्यू।
झक सफेद सफारी, सफेद जूते-मोजे पहनने के और सिगरेट के शौकीन हाजी मस्तान महंगी घड़ियों, ट्रांजिस्टर, सोने के बिस्कुट की स्मगलिंग करते थे।मुंबई पुलिस के क्राईम रेकार्ड में मुंबई के इस पहले डॉन के सफेद कपड़ों पर खून का एक छींटा तक नहीं लगा क्योंकि न उन्होंने कभी गोली चलाई ना खून खराबा किया। इस पहले डॉन की 1994 में मौत हो गई।
यह सारा प्रसंग आज यकायक याद आया तो उसकी वजह शिव सेना नेता संजय राउत बने।उन्होंने करीम लाला से इंदिरा गांधी की मुलाकात वाला बयान दिया।विवाद बढ़ा तो राउत ने अपना बयान वापस लेने की बात कही। उन्होंने कहा, ‘हमारे कांग्रेस के मित्रों को आहत होने की जरूरत नहीं है. अगर किसी को लगता है कि मेरे बयान से इंदिरा गांधी जी की छवि को धक्का पहुंचा है या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची है, तो मैं अपने बयान को वापस लेता हूं.’