किसान आन्दोलन में नारी शक्ति की बुलंद होती आवाज
जोरावर सिंह
देश में इस समय चल रहा किसान आन्दोलन पांचवे महीने के करीब पहुंच रहा है। इस किसान आन्दोलन की शुरूआत से लेकर अभी तक जो घटनाएं घटित हुई, किसान आन्दोलन कैसे यहां तक पहुंचा, सब देश के सामने है, इस किसान आन्दोलन में एक और बडी बात रही है, वह है इसमे महिलाओं की भूमिका, महिलाओं द्वारा किसान आन्दोलन में जिस तरह से भूमिका निभाई जा रही, यह इन दिनों देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले पांच महीने से हजारों की संख्या में किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसान और केन्द्र सरकार के बीच रार ठनी हुई है, किसान और केन्द्र सरकार के बीच जो रार ठनी हुई है, उसका समापन किस मोड पर होगा यह तो वक्त बताएगा, वर्तमान समय में कोरोना की भयंकर मार के बीच भी आन्दोलन कारी किसान पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, किसान आन्दोलन में संयुक्त माेर्चा के नेताओं के साथ साथ महिला किसानों द्वारा अपनी भूमिका निभाई जा रही है।
-अब तक किसान आन्दोलन
किसान आन्दोलन शुरू हुआ तो देश भर के तीन दर्जन से अिधक किसान संगठनों द्वारा आन्दोलन की शुरूआत की गई। इसमें किसान नेताओं के द्वारा धरना प्रदर्शन शुरू हुए तो किसान संगठनों के साथ महिला किसान और गृहणी महिलाएं भी किसान आन्दोलन में शामिल होने लगी, इससे किसान आन्दोलन को और बल मिला। यह सिलसिला अभी तक जारी, इस किसान आन्दोलन में करीब एक दर्जन से अिधक महिला किसान वक्ता एवं अन्य महिला वक्ताओं ने अपनी आवाज किसानों के हित में बुलंद की है।
-बुलंद होती महिलाओं की आवाज
देश में वर्तमान दौर में चल रहे किसान आन्दोलन का हश्र कुछ भी हो, मगर इस किसान आन्दोलन का जब भी जिक्र आएगा तो महिलाओं की भूमिका में एक नाम हरसिमरत कौर का भी होगा। जिन्होंने किसानों के हित काे ध्यान में रखते हुए, अपने मंत्री पद से स्तीफा दे दिया। इससे किसान आन्दोलन को बल मिला, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। वही महिला किसान नेता कविता तालुकदार ने किसानों की आवाज को बुलंद किया। इसके साथ की कई किसान बेटियों, ने अपनी आवाज बुलंद की है। जो अनवरत जारी है।
-गृहस्थी के साथ मंच तक
देश में बीत पांच महीनों से किसान अपनी मांग को लेकर आन्दोलन कर रहे हैं। इसमें प्रमुख प्रान्त पंजाब और हरियाणा में इस आन्दोलन का व्यापक असर देखा जा रहा है, अिधकांश गांवों से किसान आन्दोलन में हिस्से दारी कर रहे है, ऐसे में घर की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही है, वह पशुओं की देखभाल से लेकर खेतीबाडी का काम में बखूबी अपनी भूमिका निभा रही है, तो वही किसान आन्दोलन के मंचों पर भी उनकी आवाज लगातार बुलंद हो रही है। किसान आन्दोलन के मंचों पर महिला वक्ताओं द्वारा बुलंद हौंसलों के साथ अपनी बात रखी जा रही है, इसके साथ ही सभाओं में महिलाओं की संख्या बढ रही है, जो कि किसान आन्दोलन में उनकी भूमिका को और मजबूती प्रदान कर रही है।
-लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत
भारत जैसे विशाल गणतंत्र में आधी आबादी की आवाज बुलंद होना, गणतंत्र के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है, इसकी वजह है कि सियासत में यूं तो कई महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की मौजूदगी है, तो वहीं ग्राम पंचायत में सरपंच और पंच तक में उनकी भागी दारी है, मगर ज्यादातर आन्दोलनों में अभी तक महिलाएं सियासी दलों के साथ अपनी आवाज बुलंद करती रही है, वर्तमान में कुछ महिला संगठन महिलाओं की आवाज बनने के लिए संघर्ष रत है, पर अब किसान आन्दोलन में भी महिलाएं किसानों की आवाज बन रही है। इससे आगे और कई अन्य मुददों पर होने वाले आन्दोलनों को नेतृत्व महिलाएं मजबूत तरीके से कर सकेंगी।
-सियासत में बढेगी धाक
देश की सियासत में अधिकांश सियासी दलों की बागडोर ज्यादातर महिलाओं के हाथ कम ही रहती है, हालांकि वर्तमान में सोनिया गांधी, ममता बनर्जी , मायावती सियासी दलों का नेतृत्व कर रही है, मगर सियासी दलों में जिलाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी कम मिलती है, सियासत के पास इसकी कई वजहे, मगर किसान आन्दोलन से कई महिला वक्ताओं के नाम उभर रहे है, हो सकता है कि आने वाले कल में यह महिलाएं सियासत में भी आगे बढे, और अपने बलबूते पर वह अपनी आवाज और मजबूत तरीके से रख सकेंगी, किसान आन्दोलन के माध्यम से महिला वक्ताओं द्वारा अपनी प्रतिभा और हौंसले का परिचय दिया जा रहा, जो निश्िचत तौर पर सियासत में उनकी धाक बढ़ाएगा।