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खुलेगा जरूर पर उतना खुला खुला थोडी होगा !

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]कीर्ति राणा[/mkd_highlight]

 

 

बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी कि तर्ज पर मई नहीं तो जून में तो लॉकडाउन खोलना ही पड़ेगा। आखिर सरकार और कलेक्टर भी कोरोना से ज्यादा लॉकडाउन पर लोगों की नाराजी कब तक झेलेंगे। स्वाइन फ्लू और चिकनगुनिया का आतंक भी एक सीमा तक ही झेला ना, उसके बाद इन दोनों ने भी 130 करोड़ आबादी के साथ एडजस्ट करना सीख लिया कि नहीं।

खुलेगा तो जरूर पर मेरी छठी इंद्री कह रही है मार्च के पहले अपने शहर के बाजारों में जो खुलापन था ना, वैसा मजा नहीं आएगा। बाजारों की रौनक पर ही नहीं, ग्राहकी से लेकर होटल, मॉल्स से लेकर सिंगल स्क्रीन सिनेमा और रिक्शा, टैक्सी की सवारी सब पर असर तो पड़ेगा ही।

लगभग हर शहर के बाजारों में एक फैशन स्ट्रीट तो रहती ही है यहां की दुकानों पर अब आधे चेहरे वाले मॉस्क का कारोबार जोर पकड़ सकता है। जिसमें गाल और नाक के आकार वाले मॉस्क में अलग अलग रंगों की लिपिस्टिक से ओठ भी रंगे जा सकेंगे।चेहरे से मैचिंग करते ऐसे मॉस्क की खरीदी एक बार जहां चलन में आई कि आत्म निर्भर भारत के सपने में मेड इन उल्हासनगर झंडे गाड़ देगा।

जैसे अभी साड़ी खरीदने के बाद भाभीजी मैचिंग वाली फॉल के लिए जमीन आसमान एक कर देती हैं वैसे ही मैचिंग वाले मॉस्क की खरीदी बढ़ेगी तो बहुत संभव है मुंबई से लेकर चंडीगढ़ और कनाट प्लेस तक एक नया बाजार ही खुल जाए एलएमएस (लेडीज मॉस्क स्ट्रीट)।

बहुत संभव है कि मोदी-शाह के गृह प्रदेश में सूरत के साड़ी कारोबारी साड़ी के साथ ब्लाउज के साथ मैचिंग के मॉस्क की स्कीम लांच कर दे।चांदी के मॉस्क की शुरुआत तो हो ही गई है। शादी में पान पराग की जगह बारातियों के स्वागत के लिए स्टेट्स मुताबिक मॉस्क की डिमांड की जाने लगे।महंगे होते सोने और दो-चार तोले का हार देने के बदले माधुरी ज्वेलर्स दो ग्राम सोने में दुल्हा-दुल्हन के मॉस्क जैसा ऑफर निकाल कर कन्यादान के महंगे बजट से रिश्तेदारों को राहत दिला दे।दो बिछुड़ी की अपेक्षा उससे कम भाव में मिलने वाले मॉस्क से पैर पूजने की रीत चल पड़े।

लॉकडाउन खुलने के बाद पहले तो किराना से लेकर कपड़ा, ज्वेलरी, मिठाई दुकानदार चूहों की भेंट चढ़े फर्नीचर, खाने के सामान के साथ गंदगी साफ करेंगे और लॉक लगी दुकान की नुकसानी की भरपाई मुंह लटका कर ‘कोरोना में धंधा ठंडा है’ का राग अलापते, सरकार पर नकली गुस्सा दिखाते हुए लॉकडाउन की वसूली ग्राहक से करेंगे।
अब ऑटो रिक्शा में तीन सवारी भी नजर नहीं आएगी। किराए के रिक्शा में एक सवारी लेकर चलने वाले की हालत नंगा नहाएगा क्या, निचोड़ेगा क्या जैसी हो जाएगी।वो जो एक कार में लद कर पांच-छह दोस्त शिर्डी और शनि शिगनापुर जाते रहे थे अब उनके लिए टूर एंड ट्रेवल्स वाले खलनायक हो जाएंगे।बसों और ट्रेन में पीछे खड़ी महिला सवारी को हाथ आड़े-तिरछे कर कोहनी मारने का मौका तलाशने वालों को अब समझ आएगा कि जिसे सोशल डिस्टेंसिंग कहते रहे वह तो फिजिकल डिस्टेंसिंग है। ग्राहकों की हिफाजत के लिए होटलों में नए तरीके का सिटिंग अरेजमेंट नजर आएगा तो बढ़े हुए रेट वाले चमचमाते मैन्यु कार्ड लॉकडाउन खुलने के बाद का नफा-नुकसान समझाते नजर आएंगे।

बॉलीवुड में तो फिर तोता-मैना वाली गुटर गू, लव बर्डस के चोंच लड़ाने, हवा में झूमती टहनियों पर खिले गुलाबों के आपस में टकराने या बिजली कड़कने, आग की लपटे तेज होकर बारिश में बुझने जैसे दृश्यों से चुंबन, प्रेमालाप और हम बिस्तर होने जैसे सीन समझाए जाएंगे।चिंता तो यह भी हो रही है कि सनी लियोनी और किसिंग किलर कहलाने वाले इमरान हाशमी का क्या होगा।ऐसे कलाकारों के लिए तो फिल्म की कहानी को लिखा ही ऐसा जाता रहा है कि बार बार झरने में गीले होने, ठंड लगने, ओंठ थरथराने के बाद दो बदन और एक जान होने के हॉट सीन दोहराए जा सके।गीत गाया पत्थरों की तरह चतुर निर्देशक किसी एक का बुत बना कर प्रेमी के साथ गलबहियां वाला दृश्य फिल्माकर अपने पवित्र उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।बाकी खर्चे बढ़ने के साथ अब तो अधिकतम 200 सीट वाले सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की सीट भी कम हो जाएंगी, बड़ी हुई टिकट दर कितने दर्शक सहन कर पाएंगे।

कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि बिना धूमधड़ाके-ठाट बाट बिना बच्चों की शादी करना पड़ेगी। अमीरों के लिए इस तरह की शादी कसक इसलिए नहीं होगी कि वे महीनों तक पचास-पचास लोगों को निमंत्रित कर अपनी शानशौकत दिखा सकते हैं लेकिन बेटी के विवाह के लिए खेत-मकान गिरवी रखने वालों के लिए तो यह बड़ी राहत है कि अधिकतम 50 लोगों की मौजूदगी में ही मांगलिक कार्य सम्पन्न करना है।

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री यूं तो खुले दिमाग वाले हैं लेकिन सरकार ने यदि टू वीलर वाहनों के निर्माण की गाइड लाइन में फिजिकल डिस्टेंसिंग वाली बनावट को अनिवार्य कर दिया तो उन महंगी बाइक का क्या होगा जो लॉंच होना है।जिसमें चलाने वाले को पीछे की सीट पर उकड़ू बैठी उसकी दोस्त इसलिए दोनों हाथों से दबोच कर बैठी रहती है कि गाड़ी के फर्राटे और हवा की तेज रफ्तार में उसका किड़ीकाप बाबू/मेरा शोना उड़ ना जाए।

जिन शहरों में आज भी ट्रैफिक पुलिस हेलमेट पहनना अनिवार्य नहीं करा पाने के कारण विभाग की आय के बड़े हिस्से से महरुम है तो सड़क-परिवहन मंत्रालय मॉस्क की अनिवार्यता के लिए ट्रैफिक पुलिस को अधिकार भी दे सकता है। मॉस्क नहीं पहनने वालों पर आर्थिक दंड/चालान आदि से विभाग की आय का नया रास्ता खुल जाएगा।
सरकार के प्रयासों के बाद भी चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू बेशर्म ही साबित हुए हैं, चाहे जब अपने होने का अहसास करा ही देते है।दीप जलाने, ताली बजाने के अभ्यास में पास होने वाले देश को मोटाभाई समझा चुके हैं जो बचेगा वो बढ़ेगा।आत्म निर्भर बनना है तो इस संदेश का मतलब भी गांठ बांध लेना चाहिए कि ये कोरोना-फोरोना जाने वाला नहीं है। सरकार को दो महीने में जो करना था कर दिया।

कोरोना से लड़ने में भी अब हर व्यक्ति को आत्म निर्भर बनना होगा। पेट अपना दुख रहा है तो रामलालजी को गोली खिलाने से दर्द दूर नहीं होगा। परिवार में बिगड़ेल बेटे को भी साथ रख कर चलते हैं या नहीं। हाड़तोड़ और घिसट-घिसट कर चलने को मजबूर कर देने वाले बुखार के साथ ही स्वाइन फ्लू का शिकार सदस्य को पहले भी तो दिल पर निर्ममता का पत्थर रख कर विदाई देते रहे हैं उन सारी बीमारियों ने कोरोना से सामना करने का पूर्वाभ्यास तो करा ही दिया है।बचा हुआ बाकी पाठ्यक्रम इन दो-ढाई महीनों में पूरा कर ही लिया है तो अब जब भी लॉकडाउन खुलेगा तो वह कोरोना से लड़ाई के लिए जनरल प्रमोशन होगा।

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