प्रदूषण फैलाने में किसान ही क्यों जिम्मेदार
— कारखाने, क्रेशर—कचरे के ढेर भी बराबर के हिस्सेदार
मध्यप्रदेश। इस समय देश भर में पर्यावरण को लेकर एक बहस छिड गई है। देश के महानगरो के अलावा नगरों की आबोहवा भी खराब हो रही है। महानगरों में सुबह की भोर धुंध में लिपटी हुई हो रही है। हवा दूषित हो रही है, इसमें किसानों को खेतों में पराली या नरवाई जलाने को लेकर जिम्मेदार माना जा रहा है। जबकि वायु प्रदूषण को बढाने में कई और पहलू है जिनपर भी गौर करना भी समय की मांग बन गया है।
गौरतलब है कि पराली जलाने की समस्या को लेकर दिल्ली की सरकार प्रयास कर रही है। पर्यावरण को लेकर इस बार मध्यप्रदेश भी चिंतित नजर आया है यह सकारात्मक पहलू रहा। पर्यावरण दूषित नहीं हो और आबोहवा ठीक रहे इसके मध्य प्रदेश में कुछ शहरों में दीपावली के त्योहार पर पटाके चलाना प्रतिबंधित भी किया। प्रशासन द्वारा लिए गए इन फैसलों पर लोगों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं रही। बहुत ज्यादा विरोध आमजन ने नहीं किया।
प्रदूषण दूषित करने में यह भी हिस्सेदार
इधर बात मध्यप्रदेश की करें तो यहां पर्यावरण को दूषित करने में कई और भी उपक्रम हिस्सेदार है, जिनकी तरफ मध्यप्रदेश सरकार की पैनी नजर नहीं है। आम जनता के जीवन के साथ शासन-प्रशासन जानबूझकर खिलवाड़ कर रहा है। इसका उदाहरण कि मध्यप्रदेश के विंध्य, मालवा और चंबल के क्षेत्र में पत्थ्ररों को तोडकर गिटटी बनाने के लिए 1500 से अधिक क्रेशर मशीनें दनदना रही है। इसमें ग्वालियर, भोपाल, रीवा, उज्जैन, इन्दौर संभागीय क्षेत्र में इनकी संख्या सबसे अधिक है। कहीं कहीं तो यह स्थिित है कि 10 से 20 किलोमीटर के दायरे पर दो से तीन दर्जन क्रेशर मशीने लगी हुई है।
छा जाती है धूल की धुंध
उल्लेखनीय है कि जिन क्षेत्रों में क्रेशर मशीनें लगी हुई है, वह पूरी तरह से प्रशासन की गाइड लाइन का पालन नहीं करती है। दिन रात चलने वाली यह क्रेशर मशीनों की वजह से आसपास के क्षेत्र में धूल की धुंध छाई रहती है। आसपास के गांव के लोग इससे प्रभावित होते है। श्वांस संबंधी रोगों के शिकार भी लोग होते है। इसके साथ ही धूल के कण हवा में बने रहने के कारण से आंखों के रोगों से भी लोग पीडित होते है।
खनिज विभाग पर सवाल
दनदनाती क्रेशर मशीन संचालकों की मनमानी के बावजूद खनिज विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मूकदर्शक बना हुआ है। अब बढते हुए वायु प्रदूषण को रोकना है तो क्रेशर मशीनों को नियमों के प्रभावी दायरे में लाना होगा। प्रदेश का प्रत्येक जिला इससे प्रभावित है और पूरे वायु प्रदूषण का ठीकरा अकेले किसानों की पराली या नरवाई जलाने के सिर नहीं फोडा जा सकता।
कचरों के ढेर से उठता धुंआ
मध्य प्रदेश में वायु प्रदूषण के अब दूसरे पहलू पर चर्चा की जाए तो कुल 16 महानगर है, 18 नगर पालिकाएं और करीब 264 नगर पंचायतों में इस समय कचरा निपटान मुख्य व्यवस्था में यही है कि डोर टू डोर कचरा एकत्रित किया जा रहा है इस कचरे को एकत्रित कर टेचिंग मैदानों पर फेंक दिया जाता है इन कचरों के ढेरों में आग लगती बुझती रहती है और धुआ उठता रहता है, यही वर्षो से जारी है, इस धुंए से करीब पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को परेशानी झेलना पडती है कई और अन्य पहलू हैं जिनके माध्यम से भी वायु प्रदूषण बढ रहा है और इसका नुकसान शहर और अब तो गांवों के लोगों को भी उठाना पड रहा है।
भोले भाले किसानों को दबाने का प्रयास
सीहोर जिले के पूर्व किसान कांग्रेस अध्यक्ष हरगोविंद सिंह दरबार का कहना है कि किसान सीधे सच्चे होते हैं इसलिए उन्हें हर कोई दबाने का प्रयास करता है। प्रदूषण दूषित मामले में भी यही हो रहा है। देश भर की प्रदेश सरकारें किसानों नरवाई जाने को लेकर जिम्मेदार मान रही है, जबकि क्रेशर मशीन, कारखाने, नगर निगम, पालिका, पंचायतों का कचरा भी बराबर के हिस्सेदार है।