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भोपाल है किसका?… गौंड राजा,नबाव या राजा भोज का

 

— भोपाल के नाम पर छिडा है विवाद
— इतिहास को हर कोई अपने हित में कर रहा पेश 
— राजनीति ने इस विवाद को दिया जन्म

मध्यप्रदेश। प्रदेश की राजधानी भोपाल के नाम और उसके इतिहास को लेकर विवाद उठ गया है। इस विवाद का जन्म कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद का मट्रो ट्रेन का नाम भोज मेट्रो रखने का विरोध करने की बात से हुआ।  विधायक आरिफ मसूद का विरोध करना इतना बडा विवाद बन गया गया कि अब भोपाल का इतिहास फिर से खंगाला जा रहा है। इसी बीच सोशल मीडिया पर भोपाल के नाम और इतिहास को लेकर तर्क— वितर्क शुरू हो गए। सवाल बहुत सीधा है…भोपाल है किसका?… गौंड राजा,नबाव या राजा भोज का  या सिर्फ भोपालियों का..।

ज्ञात सरकारी इतिहास के अनुसार भोपाल को राजा भोज द्वारा बसाए जाना बताया जाता है। कई सरकारी दस्तावेजों में राजा भोज का भोपाल को बसाने की जिक्र मिलता है। भोपाल प्रशासन की अधिकारिक वेबसाइट पर भी यही जानकारी दी गई है कि भोपाल को राजा भोज ने आबाद किया है। इसी तरह दुनिया की सबसे बडी जानकादी देने वाली बेवसाइट विकिपीडिया पर भी भोपाल की स्थापना राजा भोज द्वारा किया जाना बताया जाता है। विकिपीडिया पर मौजूद जानकारी कुछ इस प्रकार है..। ऐसा समझा जाता है कि भोपाल की स्थापना परमार राजा भोज ने 1000-1055 ईस्वी में की थी। उनके राज्य की राजधानी धार थी, जो अब मध्य प्रदेश का एक जिला है। शहर का पूर्व नाम ‘भोजपाल’ था जो भोज और पाल के संधि से बना था। परमार राजाओं के अस्त के बाद यह शहर कई बार लूट का शिकार बना।
इसके बाद भोपाल शहर की स्थापना अफ़गान सिपाही दोस्त मोहम्मद (1708-1740) ने की थी। ऒरंगजेब की मृत्यु के बाद की अफ़रातफ़री में जब दोस्त मोहम्मद दिल्ली से भाग रहा था, तो उसकी मुलाकात गोंड रानी कमलापती से हुई जिसने दोस्त मोहम्मद से मदद माँगी। वह अपने साथ इस्लामी सभ्यता ले कर आया जिसका प्रभाव उस काल के महलों और दूसरी इमारतों मे साफ़ दिखाई देता है। आज़ादी के पहले भोपाल हैदराबाद के बाद सबसे बड़ा मुस्लिम राज्य था। सन् 1819 ईस्वी से ले के 1926 ईस्वी तक भोपाल का राज चार बेगमों ने संभाला। कुदसिया बेगम सबसे पहली महिला शासक बनीं। वे गौहर बेगम के नाम से भी मशहूर थीं। उनके बाद, उनकी इकलौती संतान, नवाब सिकंदर जहां बेगम शासक बनीं। सिकंदर जहां बेगम के बाद उनकी पुत्री शाहजहाँ बेगम ने भोपाल रियासत की बागडोर संभाली। अंतिम मुस्लिम महिला शासक पुत्री सुल्तान जहां बेगम थीं। बाद में उनके पुत्र हमीदुल्ला खान गद्दीनशीं हुए, जिन्होंने मई 1949 तक भोपाल रियासत के विलीनीकरण तक शासन किया।

वही दूसरी ओर कई ऐसे इतिहास के जानकार है जिन्होंने इस बात का पुरजोर खंडन किया कि भोपाल की स्थापना राजा भोज ने की ​है। उनका कहना है कि भोपाल का पुराना नाम भूपाल था जिसे गौंड कबिले के सरदार ने बसाया था, उसके बाद लंबे समय तक गौंड राजाओं का राज रहा। जब गौंड रानी कमलापति पर संकट आया तो उन्होंने अफ़गान सिपाही दोस्त मोहम्मद से मदद मांगी। उस समय दोस्त मोहम्मद ने रानी की बहुत मदद की । बाद में रानी को गिल्लौर किले में रखा गया और भोपाल पर दोस्त मोहम्मद ने अपना शासन किया। इस दौरान दोस्त मोहम्मद ने भोपाल का विस्तार किया। इन इतिहास के जानकारों की मानें तो यह बतातें है कि राजा भोज का धार में था वो अपने पुत्र की बिमारी के ठीक करने के लिए वर्तमान भोजपुर मंदिर के पास आया जहां उसके एक तालाब बनवाया जिसमें कई जगहों का पानी आता था। पुत्र के ठीक होने पर राजा भोज ने यहा शिवमंदिर बनवाया जिसका नाम भोजपूर मंदिर रखा गया। ये इतिहासकार राजा भोज का भोपाल से कोई संबध नहीं होना बताते ​है। कई ऐसी किताबें लिखी गई है जिसमें इन बातों को दावे के साथ बताया गया कि राजा भोज का भोपाल से कोई लेनादेना नहीं है।

इन दो तरह के इतिहास में सही क्या है? अब तक इसका पटाक्षेप नहीं हुआ है,  अब तक की सराकारों ने इस ममाले से अपने को दूर रखा है। इन दोनों ही दावों में एक बात समान है वो है भोपाल पर अफ़गान सिपाही दोस्त मोहम्मद 1708 के बाद से शासन करना और रानी कमलापति का ​ज्रिक करते हुए ये बताया कि अफ़गान सिपाही दोस्त मोहम्मद पहले यहां गौंड राजाओं का राज था। पर भोपाल के असल नाम उसकी स्थापना को लेकर अगल—अलग इतिहास और बातें की जाती रही है और अब भी की जा रही है।

भोपपाल के नाम और स्थापना का पहला विवाद भाजपा के शासन काल में शरू हुआ जब बडे तालाब के किनारे पर राजा भोज कि विशालकाय प्रतिमा लगाई। इस प्रतिमा को यह बताते हुए लगाया गया कि भोपाल ​की स्थापना राजा भोज ने की है। इसलिए बडे तालाब पर राजा भोज की प्रतिमा लगाना उचित और तालाब का नाम भोजताल किया जाता है। उस समय सरकार के इस कार्य का विरोध शुरू हुआ। इतिहास के कई जानकारों ने सरकार को पत्र लिखा कि राजा भोज का भोपाल से कोई वास्ता ही नीि रहा। प्रदर्शन भी किए गए, लेकिन सरकार ने इस तरह के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। बात आई गई हो गई।

— सरकार बदली तो अब विवाद फिर से शुरू हुआ

साल 2018 का दिसंबर माह विधानसभा चुनाव प्रदेश में हुए और कांग्रेस ने जोडतोड कर अपनी सरकार बनाई। काफी उठापटक के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ बैठे। कमलनाथ ने प्रदेश का नए सिरे से समझना शुरू किया उनके काम से साफ समझ आने लगा कि वे कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे अगले विधानसभा चुनाव में सरकार जनता के समाने सरकार की उपलब्धियां बता सकें। इसी ​क्रम में भोपाल में सितंबर माह 2019 में मेट्रो ट्रेन का शिलान्यास किया गया। सरकारी कार्यक्रम में सीएम कमलनाथ ने जानकारी दी कि मेट्रो ट्रेन का नाम भोज मेट्रो ट्रेन होगा। सीएम कमलनाथ की इस घोषणा का विरोध उसी कार्यक्रम में कांग्रेस के ही विधायक आरिफ मसूद ने किया। ​मसूद ने कहा कि भोपाल को भोपाल ही रहने दिया जाए..हमारी भोपालियत को रहने दें। मेट्रो टे्न का नाम भोपाल मेट्रो रखना ही ठीक रहेगा। बस फिर क्या था बीजेपी ने इस बयान को लपक लिया, वहीं टीव्ही न्यूज चैनल्स ने विधायक आरिफ मसूद की बात को अपने—अपने अंदाज और समझ के अनुसार जनता तक पहुंचा दिया। इसमें सबसे बडी बात जो चर्चाओं में बडी चालकी से जोड दी वो थी विधायक आरिफ मसूद का मुसलमान होना और भोपाल में नबावों को शासन। जैसे ही यह बात इस वाक्या के साथ जुडी तो सोशल मीडिया पर मसूद को गलत जीतने की बातें लिखी जाने लगी। कुछ ने लिखा कि कांग्रेस के आरिफ मसूद को विधायक बना कर गलती हो गई लेकिन अगले चुनाव में यह गलती सुधार ली जाएगी। विधायक के खिलाफ महौल बनाया जा रहा है। दरअसल, विधायक आरिफ मसूद मध्य भोपाल सीट से चुनाव जीते है। इस सीट पर हिन्दू और मूसलमान समान्य तौर सालों से साथ र​हते आए है। साल 2018 से पहले इस सीट पर बीजेपी नेता सूरेंद्र नाथ सिंह विधायक थे। इस बार वे कांग्रेस के आरिफ मसूद से हार गए। जैसे ही आरिफ मसूद ने भोज मेट्रो नाम का विरोध किया तो बीजेपी नेताओं के हाथ बैठे बिठाए मुद्दा लग गया। उन्होंने मसूद की बात को जमकर उछाला और देखते ही देखते बात भोपाल शहर की स्थापना और नाम तक जा पहुंची। खैर यह सब राजनीति है इसमें ज्यादा न पडा जाएं वहीं बेहतर है।

— सीएम कमलनाथ ने राजा भोज वाली लाइन क्यों पकडी…

विधानसभा चुनाव 2018…याद किजिए कमलनाथ के बयान। प्रत्येक पंचायत में गौशाला होगी। पुजारियों का वेतन सहित कई हिन्दुओं से जुडे बयान। चुनाव के दौरान कमलनाथ हिन्दुओं को लुभाने के लिए हर वो बात बोल रहे थे जिससे बीजेपी बीते कई चुनावों में बालती रही है। उनके बयानों के परिणाम भी आए। सरकार बनाने के बाद कमलनाथ इस लाइन को पकडें रहना चाहते है। उन्हें आच्छे से पता है कि मप्र में हिन्दु वोट के बिना सरकार नही बनाई जा सकती है। भोपाल में भी तब ही जीत का महौल बन सकता जब वे हिन्दु वोट लाइन पर चलेंगे। ऐसे में उन्हें मेट्रो ट्रेन का नाम राजा भोज के नाम पर रखना ही था। बस हुआ ये कि कमलनाथ की रणनीति को कांग्रसी नहीं समझ पाए और बीजेपी को मौका मिल गया।

नोट— इस खबर में भोपाल पर लिखे गए इतिहास के सही या गलत होने का दावा इनसाइड स्टोरी वेबसाइट नहीं करती है। यह इतिहास सरकारी वेबसाइट, दसतवेजों,किताबों और इतिहास के जानकारों के अनुसार लिखा गया है।

भोपाल के नाम और  इतिहास पर विडियो स्टोरी देखने के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए… https://youtu.be/GPYc-euZsE0

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