जब इंदिरा गांधी के जमाने में सोमनाथ दा का जब्त हुआ पासपोर्ट बाद में वाजपेयी ने लौटाया
14वीं लोकसभा के अध्यक्ष रहे और 10 बार सांसद रह चुके सोमनाथ चटर्जी का 89 साल की उम्र में निधन हो गया है. वैसे तो सोमनाथ चटर्जी के लंबे राजनीतिक जीवन में कई बड़े घटनाक्रम रहे हैं. लेकिन एक वाकया जिसका जिक्र सोमनाथ चटर्जी ने खुद अपनी किताब Keeping The Faith: Memoirs Of A Parliamentarian में किया, वह अहम है.
बात इमरजेंसी के दिनों की है जब सोमनाथ लिखते हैं कि वह किस प्रकार से आपातकाल के दम घोटने वाले माहौल से बाहर निकलना चाहते थे. जिस वक्त देश में आपातकाल लगा था उसी समय सोमनाथ के पासपोर्ट की अवधी समाप्त हो गई थी, लिहाजा उन्होने पासपोर्ट के नवीकरण के लिए निवेदन किया. लेकिन सोमनाथ चटर्जी का पासपोर्ट उन्हें वापस नहीं मिला. चटर्जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खास पश्चिम बंगाल के कांग्रेस नेता सिद्धार्थ शंकर रे के मदद की गुहार लगाई. लेकिन वह कोई काम नहीं आई. सिद्धार्थ शंकर रे ने तत्कालीन गृह राज्य मंत्री ओम मेहता को इस मामले दो देखने के लिए कहा.
सोमनाथ चटर्जी लिखते हैं कि जब संसद के सेंट्रल हॉल में उनकी मुलाकात ओम मेहता से हुई तो मेहता ने कहा कि आप इस बात को लेकर दबाव मत बनाइए क्योंकि मैडम (इंदिरा गांधी) नहीं चाहतीं. लिहाजा आपातकाल के दौरान चर्टजी अपना पासपोर्ट हासिल नहीं कर सके. लेकिन आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी की सरकार की हार के बाद देश में जनता सरकार का गठन हुआ तब तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सोमनाथ दा ने अपने पासपोर्ट का हश्र जानना चाहा. तो उसी शाम सोमनाथ चटर्जी का नवीणीकृत किया हुआ पासपोर्ट उन्हें मिल गया.
पासपोर्ट मिलने पर सोमनाथ दा लिखते हैं कि उन्हें ऐसा लगा जैसे फिर से आजादी मिल गई हो और उन्होने इसके लिए अटल का शुक्रिया अदा किया.
सोमनाथ दा ने आपातकाल से पहले आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन भारतीय जनता पार्टी की भी आलोचना उन्होने उसी मजबूती के साथ की. 13 दिन की अटल सरकार के दौरान एनरॉन के विवादास्पद गारंटी को लेकर कैबिनेट की मंजूरी पर सोमनाथ दा ने कहा कि एक निजी कंपनी के पक्ष में इतना बड़ा फैसला अटल सरकार द्वारा संसद को अंधेरे में रखकर लिया गया.
वहीं केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार पर प्रहार करते हुए सोमनाथ चटर्जी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की राय से सहमति जताते हुए कहा था कि राजनीतिक शत्रुता और प्रतिशोध नए स्तर पर चला गया है और दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपातकाल का प्रावधान संविधान में है. उनका मानना था कि नागरिक अधिकारों के निलंबन और आधिकारिक या अनाधिकारिक रूप से आपातकाल लगाए जाने का डर है, जो राज्य और केंद्र दोनों में हो सकता है.