हम बदलेंगे-जग बदलेगा, हम सुधरेंगे-जग सुधरेगा
(कीर्ति सक्सेना)
गायत्री परिवार के इस संदेश को किसी ने चरितार्थ किया है, तो यह कहना गलत नहीं होगा वह इंदौर शहर है। इंदौर तीसरी बार देश की नंबर वन क्लीन सिटी का ताज पहनने में सफल रहा तो इसके पीछे सराहनीय प्रशासनिक काम तो है ही, मगर आम लोगों का योगदान सर्वोपरि है। इंदौरियों ने जिस तरह का अपनापन और प्यार अपने शहर के प्रति दिखाया वह अनुकरणीय है। उन्होंने शहर की साफ-सफाई को निजी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा और इसे नंबर वन बनाने में जो जागरुकता दिखाई, वह प्रशंसनीय है। स्वयं गंदगी ना करना और दूसरों को गंदगी फैलाने से रोकने की जो सजगता उन्होंने दिखाई, इसी का परिणाम है कि वह फिर से विजेता बने। प्रशासन ने मोहल्ला समितियां व बाजारों में समितियां बनाकर ना केवल उन्हें जागरूक किया बल्कि प्रशिक्षण भी दिया।
गंदगी के ढेरों का वैज्ञानिक निष्पादन का मामला हो या पालीथीन के उपयोग पर सख्ती से रोक। सफाई के प्रभावी इंतजाम हो या गंदगी फैलाने वालों पर सख्ती, सभी मामलों में इंदौर का कोई सानी नहीं है। दूसरी तरफ प्रदेश की राजधानी भोपाल गंदगी के ढेरों का ना निष्पादन कर सका और ना ही लोगों को सही तरीके से जागरूक करने में सफल रहा। परिणाम यह रहा कि वह नंबर दो क्लीन सिटी से 19 वें नंबर पर लुढ़क गया। भले ही सबसे क्लीन राजधानी का तमगा उसे मिल गया, मगर अभी भी कई कदम उठाए जाना बाकी है। जहां तक आम लोगों की बात है तो उनका वह लगाव और प्यार अपने शहर के प्रति नहीं दिखा जैसा इंदौर में देखने को मिलता है। कचरे का सही प्रबंधन हो या इसको खाद में बदलने की प्रक्रिया, सभी में वह कुछ खास नहीं कर सका। वैसे महापौर आलोक शर्मा ने इसका एक कारण यह बताया था कि भोपाल में अधिकांश लोग दूसरी जगहों से आकर यहां बसे हैं, इसलिए उनमें शहर के प्रति वह अपनापन नहीं है जो होना चाहिए।
इन सबके बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वच्छता अभियान और क्लीन सिटी अवार्ड शुरू होने के बाद के कुछ वर्षों में लोगों में पहले की तुलना में जागरुकता बढ़ी है। यह बाद भोपाल, इंदौर, जबलपुर सहित प्रदेश के छोटे शहरों में भी साफ देखी जा सकती है। अब जो कमियां हैं उन्हें ध्यान में रखकर भविष्य में इस दिशा में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढऩे की आवश्यकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग समय के साथ और ज्यादा जागरूक होंगे और स्वयं अपनी जिम्मेदारी समझेंगे। स्वच्छता अभियान की सफलता सिर्फ सरकारी प्रयास से सफल नहीं हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बोल चुके हैं कि यदि देश का प्रत्येक नागरिक संकल्प ले लें कि वह गंदगी नहीं फैलाएगा तो फिर हम आसानी से क्लीन सिटी और क्लीन इंडिया के लक्ष्य को पा सकते हैं। हमें यह भी समझना होगा कि हम उस देश में रहते हैं जहां कि धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं मेें साफ-सफाई को बहुत महत्व दिया गया है।
(लेखक समाचार पत्र में संपादक हैं )