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मजारों पर दुआ के साथ दवा की पहल और ‘पागल मामा’

अजय बोकिल अगर यह अंधविश्वास और झाड़ फूंक के जंजाल से लोगों को बाहर निकालने और एक प्रामाणिक पद्धति से मनोरोगियों के इलाज की ईमानदार पहल है तो यकीनन स्वागत योग्य है। खबर है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने प्रदेश की तमाम मजारों के पास मानसिक रोग शिविर लगाने का ऐलान किया है। मजारों पर लोग दुआ करने आते हैं, अगर वह मनोचिकित्सा के मकसद से आते हैं तो उन्हें दुआ के साथ दवा और उपचार भी मिलेगा। यह कदम प्रदेश में मानसिक रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर उठाया जा रहा है। अक्सर लोग ऐसे मरीजों को लेकर झाड़ फूंक या तंत्र मंत्र करने वालों के पास जाते हैं। यहां उनका कितना इलाज होता है और मरीजों को कितना लाभ होता है, कहना कठिन है, लेकिन अंधविश्वास की एक रहस्यमय दुनिया जरूर आबाद होती है। देश में ऐसी कई दरगाहें और मजारें हैं, जहां इस तरह की झाड़ फूंक की जाती है। हिंदू मुसलमान का भेद किए बगैर एक बड़ी आबादी इस तरह के इलाज में यकीन रखती है, जबकि, जबकि मनोरोगियों का वैज्ञानिक पद्धति से इलाज संभव है।

बताया जाता है कि गुजरात में मजारों पर इस तरह मनोचिकित्सा शिविर लगाने का प्रयास सफल रहा है। इस अर्थ में इलाज का यह ‘गुजरात माॅडल’ है। इसी तर्ज पर कर्नाटक और ‍तमिलनाडु में भी यह प्रयोग किया गया है। उत्तर प्रदेश में राज्य मानसिक स्वास्थ्य में कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सुनील पांडेय के अनुसार इसके लिए राज्य के सभी जिलों में मजारों को चिह्नित किया जा रहा है। उनके संरक्षकों से बात की जा रही है। कई संरक्षकों ने शिविर लगाने की इजाजत दे भी दी है। हर मजार पर इलाज के दिन तय होते हैं। इसी दिन ये शिविर भी लगेंगे। बकौल डाॅ.पांडेय इन शिविरों में मजार पर दुआ करने आए लोगों की काउं‍सलिंग की जाएगी। उन्हें दुआ करने से रोका नहीं जाएगा, लेकिन साथ में मनोरोगी का इलाज कराने के लिए दवा भी लेने की सलाह दी जाएगी। मरीजों को ये दवा मुफ्त में मुहैया कराई जाएगी। उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए भी प्रेरित किया जाएगा। पहले चरण में ये शिविर राज्य के 12 जिलों में लगाए जा रहे हैं। बताया जाता है कि लखनऊ की मजारों पर ज्यादा मनोरोगी आते हैं। यूपी में सैंकड़ों की संख्या में मजारें हैं। इनमें से कई स्थानों पर मानसिक रोगियों का कथित इलाज भी होता है। हरदोई जिले के टेलिया नामक स्थान पर एक बाग में तो ‘भूतों की अदालत’ लगती है। मप्र के जावरा में हुसैन टेकरी पर भी इसी तरह झाड़ फूंक से इलाज होता है।

दरअसल विज्ञान जिसे मनोरोग मानता है, तंत्र-मंत्र उसे भूत-प्रेत या आत्मा का आना कहते हैं। माना जाता है कि ये भूत और आत्मा टोने-टोटके से भगाए जा सकते हैं। हालांकि मजारों के प्रति श्रद्धाक और झाड़ फूंक में भरोसा रखने में अंतर है। लेकिन श्रद्धा कब अंधश्रद्धा में बदल जाती है, पता नहीं चलता। मनोरोगियों की पीड़ा यह है कि वे सामान्य मरीजों की तरह अपना दुख या तकलीफें बयान नहीं कर सकते। मानसिक संतुलन बिगड़ने से उनका व्यवहार पूरी तरह असामान्य होता है। इसी कारण लोग उन्हें ‘पागल’ समझने लगते हैं।

दुर्भाग्य से देश में बढ़ती आबादी के साथ मनोरोगियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्यय संगठन की वर्ष 2017 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में छोटे और बड़े मानसिक विकारों के ग्रस्त लोगों की संख्यार देश की कुल आबादी का 7.5 प्रतिशत है। इसके पीछे अंधविाश्वास, अज्ञान, आधुनिक जीवन शैली के तनाव, अंधी प्रतिस्पर्द्धा और अन्य भी कारण हैं। इसके बावजूद लोग मनोरोगियों के इलाज के लिए मनोचिकित्सकों के पास कम जाते हैं। इसकी वजह जागृति का अभाव तो है ही साथ में मनोरोगी के इलाज में लगने वाला समय और खर्च भी है। इसमें काफी धैर्य भी रखना होता है। जबकिर तंत्र-मंत्र वाले तो डायरेक्ट भूत या आत्मा से मरीज के परिजनों का ‘साक्षात्कार’ करा देते हैं। यहां तक कि भूत मरीज के मुंह से ‘बोलने’ लगता है। उसे उतारने के लिए मरीज को भारी यातनाएं दी जाती हैं। उसका कराहना भूत के भागने के रूप में लिया जाता है। लोगों को लगता है कि पागलपन का वास्तविक इलाज यही है।

‘पागल’ और ‘पीडि़त’ होने में यही फर्क है, जो समाज को समझने की जरूरत है। मनोरोग लाइलाज नहीं है। यह बात लोगों के मन में पैठाने की जरूरत है। मनोचिकित्सा का एक गुजरात माॅडल वहां का गोरसर आश्रम भी है। पोरबंदर के पास स्थिवत इस आश्रम के ‘डाॅक्टर’ और पूर्व में ट्रक ड्राइवर रह चुके वणका भाई आज ‘पागल मामा’ के नाम से जाने जाते हैं। पागल इसलिए कि वो पागलों का इलाज मानव सेवा के रूप में करते हैं। उसे इंसान की तरह ट्रीट करते हैं न ‍कि किसी भूत प्रेत या आत्मा के रूप में। कई बार मरीज आत्मीयता के उपचार से भी सामान्य होने लगता है। अपने काम के लिए ‘पागल मामा’ को गुजरात, भारत सरकार और नीदरलैंड्स से भी मदद और सराहना मिल चुकी है।

ध्यान रहे कि अगर मजारों पर इस तरह की झाड़ फूंक होती है तो कई तांत्रिक मांत्रिक भी इसी तरह के इलाज के दावे करते हैं। कई अोझा और भोपे भी इस प्रकार का उपचार करते हैं। इनमें से कई में लोगों को सम्मोहित करने की कला भी होती है। वे मरीज के परिजनों को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करते हैं। ऐसे में लोग अपनी सामान्य समझ भी भुला बैठते हैं। योगी सरकार को चाहिए कि मजारों के साथ-साथ मनोरोगियों को मनमाने ढंग से ट्रीट करने वाले इन अड्डों पर भी प्रभावी रोक लगाए। वहां मनोरोगी और उनके परिजनों की सही काउंसलिंग और इलाज किया जाए। क्योंकि मनोरोग या पागलपन ‘हिंदू- मुसलमान’ देखकर नहीं होते।

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