लोकतंत्र का मंदिर मप्र के किस मंदिर से प्रेरित : वर्तमान संसद भवन के अकल्पनीय निर्माण की परिकल्पना की रोचक कहानी
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]
लोकतांत्रिक एवं जनतांत्रिक गणराज्य- ‘भारत’ के प्रस्तावित नए संसद भवन का आज विधिवत भूमि-पूजन सम्पन्न हो गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के वर्तमान संसद भवन और राष्ट्रपति भवन के बीच बनने जा रहे इस नए भवन की नींव रखी ।
नया संसद भवन तो जाहिर है आधुनिक जरूरतों और नए क्षमताओं से पूर्ण रहेगा जो सम्भवतः विश्व मे पुराने स्थापित किसी भवन से प्रेरित हो और न भी हो । लेकिन वर्तमान संसद भवन के निर्माण की प्रेरणा कहां से मिली होगी , ऐसे अकल्पनीय निर्माण की परिकल्पना तब के ब्रिटेन से आए वास्तुविद एडविन लुटियन ने कैसे की होगी ..! इसकी रोचक कहानी है , और है सुंदर जनश्रुति की कथा भी…
दक्ष की पुत्री सती अपने पति कैलाशपति शंकर के अपने पिता द्वारा अपमान से आहत हो अग्निकुंड मे समा गई थीं | माता सती की पति-भक्ति , शिव की पत्नी या अर्धांगिनी रूप मे अनुकरणीय मानी जाती है | भोले-शंकर के साथ अधूरे जीवन को पूर्ण करने माता सती , पर्वत राज हिमालय की पुत्री रूप मे जन्म लिया जिसे पर्वत पुत्री होने के कारण पार्वती कहा गया |
हिमालय स्वयं शिव के साथ पार्वती का विवाह प्रस्ताव ले गये परंतु शिव नही माने | कथा के अनुसार पार्वती ने तपस्या रत शंकर की सेवा मे कई साल निकाल दिये |
इसी काल मे पार्वती के भोले शंकर को मनाने की कोशिशों मे पार्वती से जुड़ी कई किवदंतियां व कथा जुड़ी हैं |
एक किवदंती के अनुसार शिव को मनाने की कोशिश मे पार्वती ने तंत्र का भी सहारा लिया | इस संबंध में पार्वती से जुड़ी चौसठ योगिनियों की एक कथा भी है |
मुरैना के मितावली मे बने चौसठ योगिनी मंदिर को देखें तो यह किवदंती यहां जीवंत दिखती हैं | मुरैना से 40 किमी दूर, मितावली गांव से लगे 300 फीट ऊंचे पहाड़ के समतल शिखर पर बने 65 कमरों वाले इस चौसठ योगिनी मंदिर के 64 कमरों मे शिव के लिंग रूप की स्थापना व पूजन विधान के प्रमाण मिलते हैं | वहीं 65 वें कमरे को , जो इस रहस्य से भरे गोलाकार प्रांगण के केंद्र मे बने मुख्य शिव मंदिर के ठीक सामने अवस्थित है उसे पार्वती जी का कक्ष माना जाता है | इस परिसर के बारे मे एक जनश्रुति के अनुसार पार्वती स्वयं साधना स्थल मे शामिल होकर नारी की चौसठ कलाओं के रूप मे विभिन्न चौसठ योगिनियों द्वारा शिव को मनाने के लिए पूजा-विधान करने की कथा है | उसी कथा को यहां चित्रित किया गया है |
रहस्य से भरे , 9 वीं शताब्दी के बने इस चौसठ योगिनी मंदिर के 64 कक्षों मे से लगभग 40 कक्षों मे सुरक्षित बचे सभी शिवलिंग और इस गोलाकार परिसर के केंद्र मे गोल मंडप के भीतर स्थापित मुख्य शिवलिंग के साथ जलहरि नही है | बिना जलहरि (योनि-स्वरूप) शिव जी की पूजा ! पार्वती के विवाह के पूर्व शिव की पूजा-विधान की कथा को प्रमाणित करती सी प्रतीत होती है |
यही भवन ,स्थल है भारत के वर्तमान संसद भवन की प्रेरणा । देश का यह संसद भवन ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियन ने इसी 101 स्तंभों पर खड़े चौसठ योगिनी परिसर के डिजाइन के आधार पर बनाया था |
ऐसा स्थल जहां
माता पार्वती से जुड़ी इन किवदंतियों से ,शिव के प्रति उनकी अगाध प्रेम,तप ,कामना, व्रत ,उपवास,समर्पण का उदाहरण मिलता है |
जाहिर है अब नया संसद भवन जल्द बन भी जाएगा । पर यह वर्तमान संसद भवन , लोकतंत्र का मंदिर जिसे भारत भूमि के सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से प्रेरणा लेकर बनाया गया है , कभी भी पुराना नही होगा ।
….क्योंकि मंदिर कभी ‘पुराने’ नही होते
आज बस इतना ही…!