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तेजस्वी के तेज से चुनाव में जनता के गौण हो गए असली मुद्दे फिर चमके

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]

 

 

बिहार ….. यानी पुराना वह मगध साम्राज्य ... जो सबसे शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित रहा । लगभग ढाई हजार साल पहले जिस भूमि से एक शिक्षक खड़ा हुआ …जिसने भारत वर्ष के सभी 16 जनपदों को एक कर अखंड भारत की शस्य श्यामला भूमि का सपना देखा…। खुली आंखों से देखा गया यह सपना जब विष्णु गुप्त चाणक्य ने चंद्रगुप्त के माध्यम से पूरा किया। तब वह घड़ी आई जब रियासतों में बंटा भारत पहली बार शेर जैसी तस्वीर वाला अखंड भारत बना।
उसी मगध साम्राज्य के नवीन स्वरूप बिहार में हाल ही में चुनाव सम्पन्न हुए। हर ग्राउंड सर्वे तेजस्वी के तेज से चमक रहा था । लगा कि चुनावों में जाती, समाज, भावनायें गौण हो रही हैं, मुद्दे अपनी जगह बना रहे हैं लेकिन चुनावी प्रबन्धन का तजुर्बा एनडीए के पास था। जादुई व्यक्तित्व पीएम मोदी सहित भाजपा के तमाम बड़े चेहरे (अमित शाह को छोड़कर) बिहार में अपना जौहर दिखा रहे थे। महागठबंधन के पास युवा तेजस्वी ही थे। जिन्होंने रोजगार के लिए युवाओं में जोश तो भर दिया । उस जोश ने एनडीए के होश भी उड़ा दिए लेकिन आधी आबादी की पूरी ताकत के इस्तेमाल के लिए तेजस्वी के तूणीर से कोई बाण समय रहते नहीं निकल पाया। बस यहीं से बाजी फिसली और एनडीए की झोली बहुमत से भरा गई।
खैर परिणाम भले ही एनडीए के पक्ष में गए हों लेकिन बिहार ने हमेशा की तरह अपनी राजनीतिज्ञ परिपक्वता से देश को रूबरू जरूर कराया है कि अब चुनावों में मुद्दे शामिल किये जाने का समय लौट रहा है। जो भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत कहा जा सकता है। जाति , वर्ण, समाज, अगड़ा,पिछड़ा आदि के साथ साथ भावनाओं में बहने वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मुद्दों वाला कठोर धरातल तलाशना ही होगा। जब चुनावों में इस तरह की बातें होने लगे या मुद्दे उठने लगे कि अर्थ व्यवस्था मजबूत हो, हर हाथ के लिए काम के अवसर मौजूद हों, गरीबों की थाली पर अमीरों का डाका न पड़े, विकास की नई इबारत उसी बिहार से लिखी जाए , किसान के लगातार बहते आंसू थम सके…। जिस बिहार से अखंड भारत का उदय हुआ, उसी बिहार से अब चुनावी मुद्दों के नए सिरे से उदय की सुबह का आगाज भी माना जा सकता है। अब बात चौथी सीएम की पारी खेलने जा रहे नीतिश कुमार की…..। जिन्हें अपनी इस पारी में गरीबी के साथ जीने की आदत बेहतर जीवन जीने की कामयाब कोशिश में बदल जाए तो 2005 से 2010 वाले सुशासन बाबू फिर से नजर आएं। तेजस्वी के माध्यम से वोटर ने संकेत तो दे दिए हैं कि वोटर आपसे खुश नहीं है और मोदी के कांतिमय चेहरे ने आपके चेहरे को कालिमायुक्त होने से बचा लिया है। इस बात का ध्यान रखा जाए अन्यथा आप तो कह ही चुके हैं कि यह मेरा आखिरी चुनाव है। भले ही आपने जिस विचार से भी कहा हो लेकिन अब स्थिति बदल गई है। पहले आपकी पार्टी जिस रोल को प्ले कर रही थी , भाजपा अब उसी बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है, कब आप दूध की मक्खी बना दिए जाएंगे आपको मालूम भी नहीं चलेगा। चलते चलते देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस की भी चर्चा ….जिसने 2015 के चुनाव की तुलना में उस चुनाव में बहुत कमजोर प्रदर्शन किया है। जो उसकी जारी अधोगति की कहानी कह रहा है, वक्त की नब्ज को कांग्रेस नेतृत्व ने समय रहते नहीं टटोला तो पार्टी वक्त की कठोर चाल तले रुन्द कर…एक थी कांग्रेस ….की तरफ बढ़ रही है।

 

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