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आक्रोश तो नजर आया नहीं वह तो कैलाश की शान वाली रैली रही 

(कीर्ति राणा)

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जब दिग्विजय सरकार थी तब भी कैलाश विजयवर्गीय ने ही किसानों के साथ ट्रेक्टर रैली निकाल कर सरकार  और उससे अधिक अपनी ताकत दिखाई थी। इस बार कमलनाथ (जिन्हें भाजपा ने विज्ञापनों में कपटनाथ कहा है) सरकार के खिलाफ आक्रोश रैली निकाल कर एक तरह से संकेत दे दिया है कि किसान, युवा, बेरोजगारी भत्ता, बिजली संकट, बढ़ते अपराध, तबादला उद्योग जैसे मामलों में उन्होंने जो शुरुआत की है प्रदेश भाजपा भी अब इसी नक्शेकदम पर चलेगी।इस आक्रोश को नाम तो किसान रैली दिया गया था लेकिन यह कैलाश ‘की शान’ में निकली रैली इसलिए हो गई कि पं बंगाल में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के भरोसे पर खरे साबित हुए विजयवर्गीय को अब पार्टी में ‘बंगाल के शेर’ के नाम से पुकारा जाने लगा है।अपने गृहनगर में रैली के आयोजन से विजयवर्गीय खेमे ने प्रदेश और भाजपा को अपनी ताकत का अहसास कराने के साथ ही यह मैसेज भी दे दिया है कि बंगाल में व्यस्तता का मतलब यह ना समझा जाए कि उनके पैर मप्र से उखड़ गए हैं।मप्र में भविष्य की राजनीति में विजयवर्गीय के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता उन्होंने यह भी संकेत दिया है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में चमत्कारी परिणाम से पहले जिस तरह विजयवर्गीय ने ममता के अति विश्वस्त-रणनीतिकार सांसद मुकुल राय के साथ ही एक के बाद एक विधायकों-पार्षदों आदि के गले में भगवा दुपट्टे डालने शुरु किए तो बंगाल के डरे सहमे भाजपा कार्यकर्ताओं में विश्वास जागा कि अब उनके लिए मरमिटने वाला कोई नेता मिला है।
किसान रैली विजयवर्गीय की शान रैली इसलिए भी बन गई कि पं बंगाल में लंबे समय से सक्रिय रहने के कारण इंदौर शहर और जिले के कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क भी कम हो गया है। पं बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में अब विजयवर्गीय के लिए यह संभव नहीं होगा कि विवाह समारोह, शवयात्रा, उठावने, सुंदर कांड में आवाजाही से लेकर प्रदेश भाजपा के साथ ही इंदौर जिले की पार्टी राजनीति में अपना दबदबा कायम रख सकें। यह रैली एक तरह से अपनी ताकत से प्रदेश के भाजपा नेताओं को तो अवगत कराने के लिए थी ही, सांसद से लेकर विधायकों तक को भी यह संदेश मिल गया है कि विजयवर्गीय भले ही बंगाल में व्यस्त रहें लेकिन इंदौर में रमेश मेंदोला तो सभी मोर्चों पर पहले से सजग हैं ही विधायक आकाश विजयवर्गीय भी क्षेत्र क्रमांक तीन की सीमारेखा के बंधन की अनदेखी कर जिले में अपनी सजगता-संपर्क बढ़ा सकते हैं।
अब जबकि आठ बार की सांसद रहीं सुमित्रा महाजन भी अगले महीने तक किसी राजभवन की शोभा बढ़ाने लगेंगी तब इंदौर में  पॉवरसेंटर के रूप में जो वैक्यूम महसूस होने लगेगा उस गड्डे की गहराई को अभी से समतल बनाने के लिए मेंदोला मंडली सक्रिय हो गई है।सांसद शंकर लालवानी तो आज तक साढ़े पांच लाख मतों से जीतने के हेगओवर से ही नहीं उबर पाए हैं, ऐसे में यह उम्मीद करना तो संभव ही नहीं कि वे विधायक रमेश मेंदोला की ‘बिना कुछ बोले बहुत कुछ कर के दिखाने’ की रणनीति का ‘र’ भी समझ पाएं। सांसद लालवानी तो ताउम्र इस अहसान से ही मुक्त नहीं हो पाएंगे कि मेंदोला जैसा चुनाव संचालक रहने की वजह से ताई से अधिक मतों से उन्हें जीत मिली और जिस दो नंबर से उन्हें मन ही मन गड्डे की आशंका थी वहीं से पूरे संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक मत मिले।यह भी हकीकत है कि मतगणना वाले दिन तक सांसद खेमा जीत को लेकर इतना आशंकित था कि 20-30 हजार मतों से आगे की सोचने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था।
यह रैली ठीक नगर निगम चुनाव की सुगबुगाहट के पहले निकाली गई है और अगला महापौर सामान्य पुरुष होने से बहुत संभव है कि पार्टी पर यह दबाव बनाया जाए कि इंदौर लोकसभा चुनाव जितवाने वाले विधायक रमेश मेंदोला ही महापौर के लिए विनिंग केंडिडेट हो सकते हैं।यह भी संयोग ही रहा कि यह आक्रोश रैली जिन मार्गों से गुजरी वह अधिकांश क्षेत्र महापौर-विधायक मालिनी गौड़ के हिस्से में आता है जो 12जून को निगम का अंतिम बजट पेश कर रही हैं। देखा जाए तो मेंदोला ने इस रैली के सारे सूत्र अपने हाथ में रखते हुए शहर के साथ ही ग्रामीण विधानसभा तक भी अपनी पकड़ सिद्ध की है।कांग्रेस तो यह बयान देकर ही खुश हो जाएगी कि ट्रेक्टर पांच सौ भी नहीं थे या कार्यकर्ता कम थे, रैली आयोजक अपना मंच तक नहीं संभाल सके।कांग्रेस  को तो यह अहसास भी नहीं है कि इस रैली के बहाने भाजपा ने इंदौर जिले को मथ डाला है। कांग्रेस में तो अभी नीचे से ऊपर तक यही खोज चल रही है कि ऐसे कौनसे सिर तलाशें जिनके माथे लोकसभा चुनाव में हार के ठीकरे फोड़े जाएं।
-मोदी और शाह के साथ कदम से कदम मिलाकर यूं ही नहीं चलते विजयवर्गीय
इस शान रैली के माध्यम से शहर और भाजपा को भी अहसास कराना था कि चुनौतियों को उतनी ही ताकत से टक्कर देने वाले कैलाश विजयवर्गीय मोदी और शाह के साथ कदम से कदम मिलाकर यूं ही नहीं चलते।जहां बात बात में बम फेंके जाते हों,गाजर-मूली जैसा हश्र कार्यकर्ताओं  का किया जाता हो, भाजपा का झंडा उठाने में भी हाथ कांपते रहे हों,  40 लोकसभा सीटों वाले बंगाल में जहां बड़ी मुश्किल से भाजपा दो सीटें जीत सकी हो उस राज्य में  विजयवर्गीय की क्षमता को पहचान कर शाह ने उन्हें इस राज्य का प्रभारी बनाया और इस बार 18 सीटों पर सफलता मिली है। विजयवर्गीय ने रैली वाले मंच से संबोधन में जिक्र भी किया कि मैंने अमित भाई से कहा था यहां जो हाल है कम से कम पंद्रह साल लगेंगे भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में। उन्होंने विश्वास दिलाया मैं तुम्हारे पीछे हूं, भिड़ कर काम करो।मोदीजी और शाहजी के विश्वास का ही नतीजा रहा कि पंद्रह साल का काम डेढ़ साल में हो सका।

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