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स्वर्णलता सपने में ट्रेन चलाती थीं और अब बनीं लोको पायलट, प्रतिभा ने साबित की अपनी काबिलियत

रायपुर। कभी स्वर्णलता सपने में देखती थीं कि वे छुक-छुक करती रेलगाड़ी चला रही हैं। जब वे बड़ी हुईं और पढ़ाई करने लगीं। मौका मिला तो डिप्लोमा कर लिया और साल 2006 में आवेदन कर दिया लोको पायलट के लिए। प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल कर आखिरकार लोको पायलट बन ही गईं, लेकिन मन में झिझक थीं, जो धीरे-धीरे खत्म हो गई। इसके फिर क्या था, अपनी सूझबूझ और काबिलियत से पुरुष लोको पायलट को भी मात दे दीं। आज इनके समर्पण और निष्ठा पूर्वक ड्यूटी को मंडल कार्यालय ने भी प्रोत्साहित किया।

बोलीं- बेटियां बेटों से कम नहीं

स्वर्णलता का कहना है कि बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। अगर ये चाह लें तो किसी भी क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती हैं। इनकी दो बेटियां हैं। जब वे इन्हें ट्रेन चलाते देखतीं हैं तो गर्व महसूस कर करती हैं। बोलतीं हैं कि मेरी मम्मी, बहादुर हैं। मैं भी इनकी तरह ट्रेन और एरोप्लेन चलाऊंगी।

प्रतिभा सिद्धार्थ बोलीं, अभी और बदलाव की जरूरत

आज भी गांवों में शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। बेटियों को उच्च शिक्षा देने की जरूरत है, ताकि ये सरकारी और प्राइवेट नौकरी के सहारे देश की सेवा कर सकें। ये विचार रायपुर मंडल की लोको पायलट प्रतिभा सिद्धार्थ ने व्यक्त किए। उन्होंने बताया- जब मैं सन 1999 में लोको पायलट बनीं तो उस दौर में नौकरी करना महिलाओं के मुश्किल था। घर के लोग लड़कियों को नौकरी कराना पसंद नहीं करते थे, लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा बेटे की तरह माना। कुछ करने के लिए हमेशा हौसला आफजाई करते थे। मेरा मानना है कि बेटी को भी बेटों जैसा ही सम्मान दें।

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