तो क्या मतदाता भी समझने लगा है मौजूदा सियासत को…
- बंगाल चुनाव में ममता की हैट्रिक
- भाजपा ने भी लगाई छलांग
- ढह गए लेफट और कांग्रेस के किले
जोरावर सिंह
देश में यूं तो पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव हुए, लेकिन इन चुनावों में सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल के चुनाव की चर्चा शुरूआती दौर से लेकर चुनावी परिणाम आने तक रही है, अब चुनाव परिणाम आने के बाद सच यही है कि बंगाल में ममता बनर्जी ने शानदार जीत दर्ज की है, बंगाल की सियासत पर उनका कब्जा हो गया है, और भाजपा के लिए शानदार अनुभव रहा, वह अब विपक्ष की भूमिका में होगी, मगर लेफ्ट और कांग्रेस का किला ढह गया है।
पश्चिम बंगाल के सियासत की बात की जाए तो कभी यह लेफ्ट का गढ रहा, यहां लाल सलाम का नारा गूंजता रहा, लंबे अर्से तक लेफ्ट ने यहां शासन किया, कांग्रेस भी सत्ता में रही, ममता बनर्जी इन दोनों पार्टियों के बीच अपनी जगह बनाई और बंगाल की सत्ता पर कािबज हो गई। उनका सादा लिबास लोगों के मन में बसा रहा, शायद यही ताकत उन्हें बडा लीडर बनाती है, अब वह तीसरी बार बंगाल की सत्ता पर काबिज हुई हैं।
—लेफ्ट और कांग्रेस हाशिए पर
पश्चिम बंगाल में हुए विधान सभा चुनावों के परिणाम आने के पहले तक बंगाल की सियासत टीएमसी, लेफट और कांग्रेस के आस पास ही घूमती हुई नजर आती थी, अलबत्ता लोकसभा चुनावों में बंगाल की जमीन पर भाजपा ने पैर जमाते हुए अपनी पकड मजबूत की, जैसे जैसे भाजपा की पकड बंगाल में मजबूत होती गई, कांग्रेस और लेफ्ट को इसका नुकसान उठाना पड़ा है। अब यह दोनों ही प्रमुख दल हासिए पर नजर आ रहे है। माना जा रहा है कि कांग्रेस और लेफ्ट के ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता यहां भाजपा में शिफट कर गए हैं। इसलिए कमजोर संगठन का खामियाजा इन दोनों दलों को उठाना पडा।
—टीएमसी का मजबूत संगठन
बंगाल में ममता बनर्जी एक दशक से बंगाल की सत्ता में है, शहरों से लेकर गांवों तक टीएमसी के कार्यकर्ताओं की मौजूदगी है, इसके साथ ही आम लोगों के साथ उनका जुडाव, टीएमसी और ममता बनर्जी को मजबूती प्रदान कर रहा है, तो वहीं भाजपा ने टीएमसी से कई नेताओं की इंट्री कराई, हाई प्रोफाइल प्रचार किया, इससे लोगों को उन्होंने प्रभावित किया, इसका लाभ उन्हें मिला, बंगाल में भाजपा अब दूसरे नम्बर की पार्टी बन गई है, वह विपक्ष की भूमिका निभाएगी। ऐसे में यहां कांग्रेस और लेफट के लिए सत्ता में वापसी करना अब उतना आसान नहीं होगा।
— 60 प्रतिशत दलित,आदिवासी और मुस्लिम
बंगाल में सियासत यदि मजबूत करना है तो दलित,आदिवासी और मुस्लिम समुदायों के समर्थन के बिना संभव नहीं है, इसमें जहां प्रदेश में दलित और आदिवासियों आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 30 प्रतिशत है और 30 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, कुल मिलाकर यह प्रदेश की कुल आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा है, जो बंगाल की सियासत में अहम भूमिका निभाता है, इन समुदायों के समर्थन के बिना बंगाल सत्ता पर काबिज होना आसान नहीं है।
—कभी करते थे मजबूती प्रदान
बंगाल की सियासत में दलित आदिवासी और मुस्िलम समुदाय कभी लेफ्ट के साथ खडा था, तब लेफ्ट की तूती बोलती थी, जब कांग्रेस के साथ था तब कांग्रेस यहां मजबूत थी, इस वोट बैंक को साधकर ममता बनर्जी आज मजबूत स्िथति में खडी हुई है, बंगाल के यह तीनो समुदाय इन पार्टियों से छिटके तो इनका जनाधार भी लगातार कम होता गया। इस बार विधान सभा चुनाव में इसीलिए अपना प्रभाव नहीं छोड सके हैं।
—भाजपा ने प्रयास तो किया…
बंगाल में हिन्दू कार्ड खेलते हुए भाजपा ने दलित और आदिवासी वोट में सेंध लगाने के प्रयास से ही शुरुआत की, भाजपा नेताओं का दलितों के यहां भोजन करना शायद इसी रणनीति िहस्सा रहे, भाजपा कुछ हद तक दलित और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने में सफल भी रहे, इसका ही परिणाम है भाजपा अब बंगाल में विपक्ष की भूमिका निभाएगी।
—मतदाता समझने लगे सियासत
सियासत को जानने वालों का हमेशा से यही मत रहा है, भारत में मतदाता मतदान के दौरान भरमा जाते है, वह सियासत को नहीं समझते है, भावनाओं आकर मतदान करते है, इसीलिए भारतीय राजनीित में विकास के मुददों से ज्यादा भावनात्मक मुददे प्रभावी रहते है, इसका फायदा भारत के सियासी दलों द्वारा उठाया जाता रहा है, लेकिन बंगाल के चुनाव ने कुछ संकेत जरूर दिये हैं, उसका उदाहरण बंगाल चुनाव का परिणाम है, यहां कांग्रेस, लेफट, बहुजन समाज पार्टी भी चुनावी मैदान में थे, लेकिन ज्यादातर मतदातओं ने टीएमसी और भाजपा को ही अपना मत दिया, जो पार्टियां जीतने की स्िथति में नहीं थी, उन पर भरोसा नहीं जताया, मतदाताओं की यह सूझबूझ भारतीय सियासत में शुभ संकेत माना जा सकता है।