खामोश श्रेष्ठा……
लेखक,पत्रकार आकाश माथुर की मशहुर किताब मी-टू की दूसरी कहानी खामोश श्रेष्ठा की समीक्षा वरिष्ठ पत्रकार,लेखक शैलेश तिवारी ने लिखी है। उनकी समीक्षा के अनुसार कहानी पठनीय है और मर्म पर चोट करने वाली है।
कहानी समीक्षा…
कहानी की शुरुआत कालेज कैम्पस से होती है जहाँ एक ही शहर की दो छात्राएं अध्ययन करने आई हैं। लेकिन हैं एक दूसरे से अंजान…। इसे बाद एक छात्र आंदोलन और दोनों की मुलाकात… जिसे दोस्ती मे बदलना ही था। कहानी कई हिस्सों मे बिखरी हुई है और कई शहरों मे भी..। कहना न होगा कि शहरों के साथ साथ दोनों के किस्से भी अलग अलग हैं। मित्रता की राह पर जब बिछड़न का अंधा मोड़ आ जाता है तब सभी अपने अपने ताजमहल के अपने अपने किस्सो की तरह अलग हो जाते हैं। यही श्रेष्ठा और निहारिका के साथ भी हुआ। दोनों की जिंदगी की नाव बच्चों की कागज की नाव की तरह समय की लहरों पर सवार हो गई। मालूम किसको होता है कि समय की एक लहर जिंदगी की नाव मे टूटन और बिखराव ले आएगी। लेखक ने इसी टूटन और बिखराव को अपना विषय बनाया है। इस कहानी मे भी लेखक ने पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता को नंगा करने मे कोई कोताही नहीं बरती है। यत्र नारी पूज्यंते… तत्र रमंते देवता…. का उदघोष करने वाली शस्य श्यामला भूमि पर नारी को भोग्या समझने वालों की कमी नहीं है। लेखक ने इसके लिए प्रदेश के जिस सरकारी विभाग को कथानक मे शामिल किया है। उसका ध्येय वाक्य.. देश भक्ति और जन सेवा है…। इस ध्येय वाक्य से विभाग का विरोधाभास कहें या पुरुष प्रधान समाज की मनोवृति, हर स्थिति मे नारी केवल भोग्या भर बन कर रह जाती है। जब जिसका जी चाहा उसने श्रेष्ठा को केवल और केवल भोगा। हो तो तब हो जाती है जब उसका बेच मेट और बॉय फ्रेंड भी उसे भोग कर छोड़ देता है। निहारिका जज बनकर या हकीकत जानती है और कहानी की श्रेष्ठा खामोश रह जाती है। कहानी मे एक श्रेष्ठा का जिक्र जरूर है लेकिन कथानक कई श्रेष्ठाओं की आवाज बनी है। कहानी को पढ़ते समय उनकी कराह सुनाई देती है जो अपने मौन को मुखर करने से पहले ही बिखर गई और श्रेष्ठा की तरह मानसिक संतुलन को बैठी। कहानी एक और बिंदु की तरफ इशारा करती है कि नारी कहानी की नायिका श्रेष्ठा की तरह दबंग कितनी भी हो लेकिन अर्श पर होकर भी फर्श पर आकर कण कण होकर बिखरने के लिए अपनों की चोट करारी होती है। जब आप कहानी पढ़ें तो ध्यान दीजियेगा कहानी की नायिका की दबंगाई ध्वस्त तभी हुई है जब उसके अपने से उसे प्रहार झेलना पड़ा है। लेखक इस बिखरे हुए कथानक को समेटने में सफल तो रहा लेकिन थका हुआ लगा। फ्लैश का उपयोग कर के इस कहानी के वेग को और बल दिया जा सकता था। कहानी पठनीय है और मर्म पर चोट करने वाली भी..। आखिर मे लगता है जो अपने ही लोगों की रक्षा मे असफल है, वरन कहा जाए तो अपनों का ही शोषण कर रहा है। वो कैसे जन सेवा जैसे पवित्र संकल्प को पूरा करता होगा। ये एक व्यंग्य भी है। लेकिन नायिका की तरह बहुत सी श्रेष्ठाएं #me too नहीं कह पातीं। उनकी आवाज बनी कहानी के लेखक को बधाईं…..
कहानी खामोश श्रेष्ठा
आज भोपाल के एक बड़े कॉलेज, महाराजा वीरदेव कॉलेज में काउंसलिंग चल रही है। यहाँ डिप्लोमा कोर्स के लिए काउंसलिंग हो रही है। पूरे केंपस में भीड़ है। दो लड़किया जो 21-22 साल की हैं, यहाँ पर आकर्षण का केंद्र हैं। जो सबको आकर्षित कर रही हैं। खास बात, दोनों में जमीन आसमान का अंतर है।
एक ओर श्रेष्ठा 5 फीट 7 इंच की पंजाबी लड़कियों जैसी डीलडोल वाली आकर्षक लड़की है। जिसका रंग गेहुंआ है। हल्के कलर के कपड़े पहने वो पूरे केंपस में अलग दिख रही थी। वहीं एक और निहारिका है वह भी केंपस में मौजूद है। निहारिका गोरी है, पर उसकी हाईट कम है। ज्यादा भी कम नहीं बस श्रेष्ठा से कम। वो बहुत आकर्षक है। छोटे खुले बाल जो उस समय की फिल्म अभिनेत्रियां रखती थी। कपड़े साधारण पर रंग इतने आकर्षक की किसी को भी अपनी तरफ खींच ले। नैन-नक्श दोनों के ही सुंदर।
केंपस के अधिकतर लड़कों की नजरें उन्हीं पर टिकी थीं। एक समानता थी दोनों में, दोनों ही बहुत चहक रही थीं। पूरे समय दोनों के चेहरे पर हंसी थीं। ये दोनों एक ही शहर जबलपुर से हैं, पर एक दूसरे को नहीं जानती और आगे भी कभी पहचान नहीं होगी ऐसी उम्मीद थी। दोनों का कोई वास्ता ही नहीं। निहारिका पीजीडीसीए करने वाली है और श्रेष्ठा बी.लिब। एक और बात निहारिका होस्टलर है वहीं श्रेष्ठा डेस्कालर, जो अपने किसी रिश्तेदार के घर रूकने वाली है। दोनों को खुद पर अभिमान भी बहुत है और दो अभिमानी कभी साथ कैसे रह सकते हैं। दोनों को यह भी पता था कि वो आकर्षक हैं।
इसके अलावा श्रेष्ठा प्रदेश के पूर्व मंत्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पोती है। वह जबलपुर के प्रतिष्ठित परिवार से है जो प्रदेश भर में जाना जाता है। उसके पिता भी जबलपुर के मेयर रह चुके थे। वहीं निहारिका खुद छात्र राजनिती में सक्रिय थी। उसको भी प्रदेश के कुछ नामी नेता जानते हैं।
दोनों अब कॉलेज में प्रवेश ले चुकी थीं, दोनों मन लगा कर पढ़ रही थी। पर दोनों की मंजिल अलग थी। यहाँ भी विरोधााभास था। निहारिका को आईएएस बनना था और श्रेष्ठा को आईपीएस। निहारिका होस्टल में मस्त थी और श्रेष्ठा भोपाल में ही उसके किसी रिश्तेदार के घर से कॉलेज आती-जाती थी। शिक्षा सत्र जारी हुए तीन माह बीते थे। तभी कॉलेज में अव्यवस्थाओं को लेकर छात्र आंदोलन शुरू हो गए। जो आठ दिन चला। इस अंदोलन को अंतिम सत्र के छात्र संचालित कर रहे थे। जिसमें संजय की भूमिका सबसे ज्यादा अहम थी। संजय के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन के लिए महाराजा वीरदेव कॉलेज के सामने टेंट लगा था। जहाँ माईक पर संजय और कुछ अन्य अच्छा बोलने वाले छात्र बोलते और छात्रों को प्रोत्साहित करते। साथ ही कॉलेज प्रबंध्ान को जमकर कोसते। छात्र राजनीति से आई निहारिका ने भी बोलना शुरू किया। जिसे लोग बड़ी गंभीरता से सुनते। उसका एक-एक शब्द लोग ध्यान से सुनते। यह श्रेष्ठा को अच्छा नहीं लग रहा था। उसके ईगो पर चोट लग रही थी। आंदोलन चलता रहा, आठ दिन तक चला। अब ऐसा लग रहा था जैसे निहारिका अंदोलन का नेतृत्व कर रही है। हर दिन निहारिका बहुत अच्छा और नया बोलती। पूरा कॉलेज अब निहारिका का फेन था। यह बात डीन को पता चली। जिस लड़की को यहाँ आए तीन महीने हुए थे, वो ज्यादा कैसे उछल रही है। डीन पहुँच गए आंदोलन स्थल पर सबको फटकारा और खूब लताड़ा। अब वो निहारिका के पास आए और उसे डाँटना शुरू कर दिया। उसके पक्ष में कोई आता उससे पहले वहाँ श्रेष्ठा आकर खड़ी हो गई और निहारिका के पक्ष में बोलने लगी। अब दोनों डीन से बात कर रही थीं। निहारिका बोलती अच्छा थी, पर दबंग तो श्रेष्ठा थी। उसने डीन को ही समझाना शुरू कर दिया। अब निहारिका एक तरफ खड़ी थी। श्रेष्ठा और डीन की जमकर बहस हो रही थी। अब सब निहारिका के पक्ष में आकर खड़े हो गए। मामला सुलझा, श्रेष्ठा ने निहारिका को धन्यवाद दिया। दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराई और दोनों भीड़ में अपने दोस्तों से बात करने लगी।
दो दिन बाद कॉलेज फिर से लगने लगा था। कॉलेज जारी था। एक दिन निहारिका और श्रेष्ठा का आमना-सामना हुआ। दोनों ने एक दूसरे से ठीक से परिचय किया। कहाँ से हो? क्या कर रहे हो? कहाँ रहते हो? सारी बातें हुईं। जब दोनों को पता चला कि दोनों जबलपुर से हैं तो दोनों को आश्चर्य हुआ। अब दोनों अक्सर मिलने लगी थी। निहारिका के रूम में श्रेष्ठा कई बार आकर बैठ जाती। दोनों खूब बात करतीं। कभी-कभी श्रेष्ठा निहारिका के साथ ही स्र्क जाती। श्रेष्ठा के होस्टल आने का इंतजार सभी लड़कियों को रहता था। वो सबको हंसाती, कभी पुरानी अदाकाराओं की मिमिक्री करती। कभी वार्डन के कमरे में रात को लड़कियों को ले जाकर उनके घर वालों से बात करवाती। मस्तीखोर श्रेष्ठा सबको हंसाती और लोगों को खुश रखने की कोशिश करती। उसे लोग अपनी परेशानियां खुलकर बताते थे। वो सबकी मदद करती। कई समस्याओं का हल उसके पास था। ऐसे ही साल निकल गया।
निहारिका और श्रेष्ठा अब अलग-अलग हो गई थीं। निहारिका जबलपुर लौट आई थी और आईएएस की तैयारी करने में जुट गई। श्रेष्ठा भोपाल में ही आईपीएस की तैयारियों में जुट गई थी।
निहारिका ने जबलपुर में एलएलबी में एडमीशन ले लिया था। वो आईएएस की तैयारी के साथ एलएलबी भी कर रही थी।
इध्ार श्रेष्ठा की जिंदगी बदल रही थी। उसके पिता राजनीति में होने के साथ ही शराब के आदी थे। राजनीति में पद नहीं था। शराब में वो अपनी संपत्ति खत्म कर चुके थे। वहीं उसकी मां की तबीयत भी खराब रहने लगी थी। जब पूरी पैतृक संपत्ति खत्म हो चुकी थी। तब श्रेष्ठा परेशान रहने लगी। इसी दौरन उसने एसआई के लिए परीक्षा दी थी। जिसमें उसका सिलेक्शन हो गया था। उसने अपने आईपीएस बनने के सपने को छोड़ नौकरी ज्वाईन कर ली। ट्रेनिग के दौरान उसे एक लड़का पसंद आ गया था, जिसका नाम शैलेंद्र था। जो श्रेष्ठा से शादी करना चाहता था। श्रेष्ठा ब्राह्मण थी और शैलेंद्र किसी दूसरी जाति का था। श्रेष्ठा के घ्ार वाले नहीं चाहते थे कि श्रेष्ठा शैलेंद्र से शादी करे, पर जैसे-तैसे वो घर वालों मना चुकी थी। ट्रेनिंग खत्म हुई और श्रेष्ठा की पोस्टिंग कटनी जिले में हो गई। शैलेंद्र की पोस्टिंग सिवनी में हुई थी। दोनों अलग-अलग जिलों में थे,पर संपर्क में थे।
इधर निहारिका एलएलबी पूरी कर चुकी थी। आईएएस की तैयारियों में जुटी थी। इसी बीच उसने सीजे की परीक्षा के लिए आवेदन किया था और उसका सिलेक्शन हो गया था। उसकी पोस्टिंग भी संयोग से कटनी में हो गई थी।
एक दिन निहारिका कि कोर्ट में किसी महिला आरोपी की पेशी थी। जिसे लेकर श्रेष्ठा कोर्ट पहुँची थी। दोनों ने एक दूसरे को देखा। दोनों एक-दूसरे को पहचान भी गई थीं। पर कोर्ट की मर्यादा को ध्यान में रखा और बात नहीं की।
निहारिका ने अपने मुंशी को श्रेष्ठा का मोबाईल नंबर लेने को कहा। मुंशी ने नंबर लिया। उसी दिन कोर्ट से घ्ार पहुँचकर निहारिका ने श्रेष्ठा को फोन किया और घर बुलाया। अब दोनों अक्सर घर पर मिलती और फोन पर बात करतीं। इसी बीच निहारिका का ट्रांसफर भोपाल हो गया। दोनों की जिंदगी अच्छी चल रही थी। दोनों ने अब तक शादी नहीं की थी।
दोनों को बिना मिले तीन साल से ज्यादा लंबा समय बीत चुका था। फोन पर भी बात बंद हो चुकी थी। एक दिन निहारिका अपने घर जबलपुर जा रही थी। भोपाल से जबलपुर पहुँची। घर की ओर जा रही थी।
बत्ती लगी गाड़ी, जिसके शीशे चढ़े हुए थे। निहारिका अपने शहर कम आती थी। इसलिए पूरे शहर को ध्यान से देखती। अचानक उसे सड़क के उसी तरफ जिस तरफ उसकी गाड़ी चल रही थी। उसे एक लड़की दिखी। जिसे निहारिका ने ध्यान से देखा। वो श्रेष्ठा थी। पागलों की तरह गंदे और फटे कपड़े पहने। निहारिका ने गाड़ी रूकवाई। अपने ड्राइवर से कहा। इस लड़की को बुलाओ। ड्राइवर लड़की को बुलाने गया, पर वो नहीं आई।
अब निहारिका ने गाड़ी का शीशा गिराया। चेहरा बाहर निकाला आवाज लगाई। श्रेष्ठा यहाँ आओ। श्रेष्ठा ने निहारिका को देखा और गाड़ी के पास आ गई। निहारिका ने उसे गाड़ी में बैठाया। अपने घर लेकर आई।
घर लाकर निहारिका ने श्रेष्ठा से पूछा – ये क्या हाल बना रखा है?
श्रेष्ठा ने जवाब नहीं दिया वो हंसी। वैसे नहीं जैसे वो पहले चहकती थी। उसकी हंसी बनावटी और दर्द भरी थी।
उससे निहारिका ने बार-बार पूछा। पर वो नहीं बोली। बस हंसती रही।
निहारिका ने पूछा तूने मुझे पहचाना तो वो बोली हाँ निहारिका।
फिर श्रेष्ठा ने अचानक कहा। क्या आप मुझे 100 रुपए दे सकती हो?
निहारिका ने पूछा – क्यों चाहिए?
इस पर श्रेष्ठा ने कहा- बस दे सकती हो तो दे दो।
निहारिका ने उसे 100 रुपए दिए और श्रेष्ठा मुस्कुराते हुए चली गई।
अब निहारिका को जानना था कि श्रेष्ठा के साथ हुआ क्या है?
निहारिका जज थी लोग उसके आदेश का पालन करते थे। उसने कटनी फोन किया। जहाँ निहारिका पोस्टेड थी। कोर्ट में अटैच एक पुलिस वाले से बात हुई। उसने पुलिस वाले से श्रेष्ठा के बारे में पूछा। श्रेष्ठा का नाम कटनी के पूरे पुलिस महकमे में परिचित था।
पुलिस वाले ने बताया श्रीमान जी, वो यहाँ एसआई थी। बड़ी दबंग थी और सबकी मदद के लिए तैयार रहती थी, इसलिए उसको सब सम्मान की नजरों से देखते थे और किसी पूर्व मंत्री जी की पोती भी थी। यह सब निहारिका को पता था पर वो सुनती रही।
फिर पुलिस वाले ने कहा- पर उसके साथ सबने बुरा किया। एक रात वो एसपी साहब के साथ मंत्री के दौरे से लौट रही थी। इस बीच साहब ने रेस्ट हाउस में गाड़ी रुकवाई। रेस्ट हाउस के अंदर साहब ने शराब पी। इस दौरान वहाँ श्रेष्ठा और कई अन्य पुलिस वाले भी थे, जो बाहर खड़े थे। कुछ देर बाद साहब ने श्रेष्ठा को अंदर बुलाया और उसके साथ दुष्कृत्य किया। उसको सदमा लगा और उनके साथ उस समय मौजूद सभी पुलिसकर्मियों को यह पता चल गया था। उसने कोई गलती नहीं की थी, पर उसकी इज्जत लोगों की नजरों में कम हो गई थी। वो टूट गई थी। अब हर कोई उसका शोषण कर रहा था। उस पर परिवार की जिम्मेदारियां थी, इसलिए शायद नौकरी नहीं छोड़ सकती थी। नौकरी तो वो कर रही थी, पर उसने मुस्कुराना और हंसना छोड़ दिया था। इसी बीच एक और एसआई शैलेंद्र की भी वहाँ पोस्टिंग हुई। उसके आने से श्रेष्ठा खुश थी। शायद वो उससे शादी करना चाहती थी। दोनों अधि्ाकतर साथ रहते। अब श्रेष्ठा के साथ कोई कुछ नहीं कर पाता था। उन दोनों के संबंध बन गए थे। कुछ दिन बाद शैलेंद्र को श्रेष्ठा के साथ हुई घ्ाटना के बारे में पता चल गया। इसके बाद वो श्रेष्ठा से शादी नहीं करना चाहता था। शैलेंद्र श्रेष्ठा को उपभोग का साधान समझने लगा था। शैलेंद्र नया था और वह एसपी की गुड लिस्ट में शामिल होना चाहता था। इसके लिए उसने श्रेष्ठा का इस्तेमाल करने का मन बनाया, और एक दिन शैलेंद्र ने उसे बुरा भला कहा। उनसे एसपी के पास जाने को कहा। वो एसपी के पास गई। नया तो था नहीं ये सब उसके लिए। पर अब वो पूरी तरह बिखर गई थी। क्यों की टूटी तो पहले से थी। वो धीरे-धीरे अपने आप में ही गुम रहने लगी और फिर पागल हो गई।
वो किससे किसकी शिकायत करती। वो किसी से मीटू नहीं कह पाई। अब वो पागल है। शायद उसके परिवार वाले उसे जबलपुर वापस ले गए हैं। पता नहीं अब क्या हाल हैं उसका?