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शायर हुआ पचहत्तर का, शायरी करते हुए 62 साल

-एक फक्कड़ शायर तारिक शाहीन

 (कीर्ति राणा)

मध्यप्रदेश। इंदौर के खजराना में रहने वाले शायर तारिक शाहीन शायरी में तो माहिर माने जाते हैं लेकिन जोड़-तोड़, जमावट के फन में कमजोर ही हैं वरना क्या वजह है कि उर्दू का एक नामचीन शायर उम्र की 76वीं पायदान पर कदम रख दे और उर्दू अदब तो ठीक खजराना तक में हलचल ना हो । अपनी शायरी से देश-विदेश में शहर का नाम रोशन करने वाले शायर का हीरक जयंती वर्ष दबे पैर निकलने की हिमाकत तभी कर सकता है जब कोई लेखक-शायर सिर्फ रचनाकर्म से ही ताल्लुक रखे।
उनका तखल्लुस है तारिक यानी अलसुबह के अंधेरे में चलने वाला मुसाफिर, शायद यही वजह है कि उनकी शायरी का सुरूर तो दिलोदिमाग पर चढ़ता है लेकिन इस बड़ी सुबह के मुसाफिर पर नजरें इनायत नहीं हुईं। उनकी ही एक गजल ‘भीगती आंखों के मंजर नहीं देखे जाते, हमसे अब इतने समंदर नहीं देखे जाते…’ का एक शेर उनकी सादामिजाजी का तआर्रुफ भी कराता है-
मुझ से मिलना है अगर सादामिजाजी से मिलो/आईने भेष बदल कर नहीं देखे जाते ।
लंबे समय से चली आ रही इस गलतफहमी को वे खुद दूर करते हुए कहने लगे पता नहीं लोग मुझे राहत इंदौरी का उस्ताद क्यों कहते हैं। राहत भाई मुझे उस्ताद की तरह सम्मान देते हैं ये उनका बडप्पन है। राहत के उस्ताद तो शायर कैसर इंदौरी रहे हैं।
बात करते करते फिर वो उसी गजल के बाकी शेर सुनाने लगते हैं-
वजादारी तो बुजुर्गों की अमानत है मगर,
अब ये बिकते जेवर नहीं देखे जाते।
जिंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाजिम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।
संगसारी तो मुकद्दर है हमारा लेकिन,
आप के हाथों में पत्थर नहीं देखे जाते।
जिसके दम से थी मेरे गांव की रौनक तारिक,
उस हवेली में कबूतर नहीं देखे जाते।
करीब 62 वर्षों से भारत के विभिन्न शहरों, दो बार पाकिस्तान में मुशायरा पढ़ चुके शेख मुहम्मद तारिक ‘शाहीन’ इसी खजराना के ऐसे शायर हैं जो जर्मन, पाक, अमेरिका, स्वीडन, लंदन आदि देशों की पत्रिकाओं में निरंतर छपते रहे हैं।अब उनके मित्रों ने ही उनकी किताब प्रकाशन का जिम्मा लिया है।
इश्क-मुहब्बत, शराबनोशी जैसे विषय उनकी गजलों में शामिल होने के लिए लंबे वक्त से तरस रहे हैं तो इसलिए कि तारिक भाई समाज और जिंदगी के जिन मसाइलों (मसलों) से जूझते रहते हैं वही सब उनकी गजलों में नजर आते हैं। इस्लामिया करीमिया कॉलेज की मैग्जिन में उनकी जो पहली गजल छपी थी, उसे ही देख लीजिए-
आशियों(गुनाहों) की हौंसलाअफजाई को क्या हैं ये कम,
तेरी रहमत, तेरी बख्शीश और तेरा रहमो करम
फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य रहे, मप्र उर्दू अकादमी से ऑलइंडिया शादां इंदौरी अवार्ड, हैदराबाद में बज्मे गौहर सहित अन्य कई अवार्डों से नवाजे गए तारिक शाहीन शुरुआती दौर में कहानियां लिखा करते थे।पहली गजल लिखी और ठीक करने के लिए कैसर इंदौरी को बताई तो सात शेरों को सुधारते हुए साढ़े छह शेर कैसर साहब ने लिख डाले, इन्हें बड़ी कोफ्त हुई।’नवभारत’ में उर्दू सफा (पेज) का संपादन करने से पहले ‘शाखें’ नाम से रंगीन त्रैमासिक निकाल चुके हैं जो 22 देशों में जाती थी और दुनियाभर के फनकार इसमें छपा करते थे।जिन दिनों नयापुरा से उर्दू दैनिक ‘सफीरे मालवा’ (संपादक अ गफूर मुजाहिद) प्रकाशित हुआ करता था शायर सादिक इंदौरी के जिम्मे हेडलाइन देने का काम था, उनके सहयोगी तारिक शाहीन ने एक बार हेड लाईन दी, उसे दुरुस्त करने के साथ ही उन्होंने सलाह दी कि तुम गजल क्यों नहीं लिखते, बस।
पहला मुशायरा रायपुर (तब मप्र में हीथा) पढ़ने गए। साथ में दोस्त तस्लीम फारुकी भी था। इनसे पहले एक सरदार शायर नें इतने बेहतरीन तरन्नुम में पढ़ा कि तारिक का हूट होना तय था। दोस्त तस्लीम ने तुरंत माइक थामा और श्रोताओं से पांच मिनट तक आगे की खाली कुर्सियों पर आने की गुजारिश करते रहे, इस तरकीब से उन शायर का खुमार श्रोताओं पर से जाता रहा और तारिक भाई ने पढ़ना शुरु किया तो खूब दाद मिली।

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