MP POLITICS : सिंधिया झुक जाएंगे या टकराएंगे
मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश की सियासत में उपचुनावों के बाद भाजपा को जीत मिल जाने के बाद सब कुछ ठीक हो गया है। हालांकि यह पूरा सच नहीं है। सियासत में अन्दर खाने बहुत कुछ चल रहा है। सियासी सूत्रों से खबरें मिल रही है उनमें एक बार फिर महाराज यानी कि ज्योतिरादित्य सिधिया नाराज बताए जा रहे हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस बार महाराज झुक जाएंगे या फिर टकराएंगे।
गौरतलब है कभी कांग्रेस में पर्याप्त सम्मान नही मिलने पर राज्य सभा सांसद ज्यातिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी को छोड दिया था और वह भाजपा में शामिल हो गए थे। कांग्रेस की सरकार गिरी और सिंधिया का सम्मान भी लौटा और भाजपा की सरकार भी लौटी अब एक बार पिफर पेंच फंसता हुआ नजर आ रहा है। सियासी सूत्र बता रहे हैं कि उपचुनावों के परिणामों के बाद से सियासत तो गरमाने लगी है मगर कहां तक पहुंचेगी यह तो वक्त ही बताएगा।
हारे हैं तो क्या हुआ
बताया जा रहा है कि कांग्रेस को छोडकर भाजपा में शामिल हुए विधायकों को भाजपा ने उपचुनावों में टिकिट दिया मगर कुछ मंत्री और विधायक चुनाव हार गए है अब इन हारे हुए नेताओं को संतुष्ट करना भी एक चुनौती बना हुआ है, हारे हुए मंत्रियों का दर्द महज एक पखवाड1े में ही झलकने लगा है किसी भी दिन ज्यादा छलक सकता है। अब यह हारे हुए नेता भी नई चुनौती बन सकते हैं।
पद थोडे और समर्थक ज्यादा
जराज्य सभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने एक और चुनौती खड1ी हुए है, वह यह है कि उनके समर्थक तो मध्यप्रदेश के पूरे जिलों में जबकि उनके विधायक समर्थक भाजपा में शामिल हुए थे वह तो केवल 19 जिले ही है। यहां तो विधायकों के साथ उनके समर्थक भाजपा में शामिल भर हुए है, अभी भाजपा में पद नहीं मिले हैं; मगर बाकी के जिले जहां पर सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद से उनका कांग्रेस से नाता तो टूट गया है मगर भाजपा में सक्रिय नहीं है ऐसे में सिंधिया के ऐसे समर्थक कहां जाएंगे
पदों को लेकर होगी तनातनी
गौरतलब है कि भाजपा में पूरे प्रदेश में यदि सिंधिया समर्थकों को उचित सम्मान नहीं मिलता है तो ऐसे कई कार्यकर्ता कांग्रेस में वापस भी लौट सकते हैं और भाजपा में सिधिया जी के समर्थकों को उचित सम्मान नहीं मिला तो सिंधिया जी इस भाजपा से सम्मान के लिए टकराएंगे या पिफर झुक जाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा पर इतना जरूर है मध्यप्रदेश की सियासत में अभी और गरमाने वाली है जानकारों का तो यहां तक कहना है कि सामजस्य नहीं बैठ पाने के चक्कर में मंत्री मंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा है