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जानें क्या है SC-ST एक्ट, दलितों के सम्मान की रक्षा करता है ये कानून, SC ने किए ये बदलाव

नई दिल्ली: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 यानि SC-ST एक्ट को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है, और इसके बाद कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी कर दिए। इसके बाद कई दलित संगठनों में रोष पैदा हो गया है। यहां तक कि राजनैतिक दल भी इस पर राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने दबाव बनाया, जिसके बाद अब केंद्र सरकार ने रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2 अप्रैल को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया। इस दौरान कई राज्यों में जमकर प्रदर्शन किया जा रहा है। कई जगह प्रदर्शन हिंसक तक हो गया है।

जानें क्या है ये एक्ट
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989, 11 सितंबर 1989 को पारित हुआ, जिसे 30 जनवरी 1990 से जम्मू-कश्मीर छोड़ सारे भारत में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। इस एक्ट का उद्देश्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों के व्यक्तियों के खिलाफ हो रहे अपराधों के लिए अपराध करने वाले को दंडित करना है। यह इन जातियों के पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है। इस कानून के तहत विशेष अदालतें बनाई जाती हैं जो ऐसे मामलों में तुरंत फैसले लेती हैं। यह कानून इस वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए, उनके खिलाफ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए है।

इस एक्ट के तहत आने वाले अपराध

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध, जैसे उन्हें जबरन मल, मूत्र इत्यादि खिलाना
उनका सामाजिक बहिष्कार करना
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य से व्यापार करने से इनकार करना
इस वर्ग के सदस्यों को काम ना देना या नौकरी पर ना रखना
शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना
बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरें पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना
गैर कानूनी-ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना
भीख मांगनें के लिए मजबूर करना या बंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना
मतदान नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लिए मजबूर करना
महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना
उपयोग में लाए जाने वालें जलाशय या जल स्त्रोतों का गंदा कर देना अथवा अनुपयोगी बना देना
सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना
अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़नें पर मजबूर करना
इस अधिनियम में ऐसे 20 से अधिक कृत्य अपराध की श्रेणी में शामिल किए गए हैं।

इन अपराधों के लिए दोषी पाए जाने पर 6 महीने से लेकर 5 साल तक की सजा और जुर्माने तक का प्रावधान है। इसके साथ ही क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा का भी प्रावधान है। अगर कोई सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो उसे 6 माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं।

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सरकारी अधिकारियों को इस कानून के तहत इन कर्तव्यों का पालन करना होगा

FIR दर्ज करनी होगी
हस्ताक्षर लेने से पहले पुलिस थाने में दिए गए बयान को पढ़ कर सुनाना होगा
जानकारी देने वाले व्यक्ति को बयान की प्रतियां देना
पीड़ित या गवाह का बयान रिकॉर्ड करना
FIR दर्ज करने के 60 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करना
अब सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये दिशा-निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा कि इस अधिनियम के अंतर्गत आरोपियों की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है और प्रथमदृष्टया जांच और संबंधित अधिकारियों की अनुमति के बाद ही कठोर कार्रवाई की जा सकती है। यदि प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो अग्रिम जमानत देने पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है। एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। इसके पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा। यदि कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरुपयोग करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी। अगर किसी आम आदमी पर इस एक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो उसकी भी गिरफ्तारी तुरंत नहीं होगी। उसकी गिरफ्तारी के लिए एसपी या एसएसपी से इजाजत लेनी होगी।

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