दहेज उत्पीड़न के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी हो या नहीं, आज SC सुनाएगा अहम फैसला
देश की सर्वोच्च अदालत दहेज उत्पीड़न मामले (498 A) में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवारको अहम फैसला सुना सकती है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम.खानविलकर और जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस पर अपना फैसला सुनाएगी। दरअसल, इसी साल अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्यीय पीठ को चुनौती
2017 में इस मामले में चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने आदेश दिया था कि दहेज उत्पीड़न की शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी न हो और ऐसे मामलों को देखने के लिए हर ज़िले में फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाया जाए। साथ ही, उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई हो। दो जजों की बेंच के आदेश को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
याचिका दायर कर कहा गया है कि कोर्ट को कानून में इस तरह का बदलाव करने का हक नहीं है। कानून का मकसद महिलाओं को इंसाफ दिलाना है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते देश भर में दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारी बंद हो गई है।
इससे पहले, जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की दो जजों की बेंच ने महिलाओं के लिए बने कानूनों के दुरुपयोग के मामले को लेकर अहम निर्देश जारी किए थे। अपने आदेस में कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को देखते हुए ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके अनुसार दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाते हुए इस सिलसिले में कुछ दिशा-निर्देश जारी भी किए थे।
दहेज कानून के दुरूपयोग के कई मामले आए सामने
एनसीआरबी के रिकॉर्ड के मुताबिक, साल 2009 के दौरान करीब 1 लाख 74 हजार लोगों की गिरफ्तारी 498ए के अंतर्गत हुई थी और इनमें 8,352 केस फर्जी साबित हुए। 2012 में 498ए के तहत केस दर्ज करने का रेट 93.6फीसदी रहा जबकि इसमें सिर्फ 14.3 फीसदी ही दोषी ठहराए गए थे।