तबादले के आदेश में सुलगती दिल्ली की हकीकत…
( शैलेश तिवारी )
दिल्ली का पूर्वोत्तर इलाका जब जल रहा था.. हम कारपेट की तरह बिछ कर चरण वंदना कर रहे थे ट्रंप की…। चुनी हुई सरकारों के प्रतिनिधि … जन के बीच जाने से कतरा रहे थे…। कबाड़ बने शो रूम अपनी बदसूरत हुई शक्ल पर आँसू बहा रहे थे… तो सड़कों के दोनों तरफ… भंगार बन गई दो पहिया और चार पहिया वाहन… अपनी और दिल्ली की बर्बादी की दास्ताँ कहने को काफी थी… टायर के सुलगने से उठता हुआ धुँआ… मानवता को धुँआ धुँआ कर रहा था…..और उसकी दुर्गंध में चलना मुश्किल था… लेकिन लोग जी रहे थे..।
ये वो इलाका है जहाँ लगभग 26 लाख लोग रहते हैं और इनमे से अधिकांश भारत के अलग अलग हिस्सों से आकर न केवल दो जून की रोटी का इंतजाम करते हैं. .. और बच्चों की बेहतर पढ़ाई के लिए… पाँव फैलाने पर दीवार से सर टकराने के दर्द को खुशी खुशी सहते रहते हैं…। 48 घंटों तक चले बर्बादी और मौत के इस तांडव में पुलिस कहीं नजर नहीं आती…। आती भी है तो आँसू गेस चलाने के वीडियो हंसकर बनाती दिखती है….। देश के दिल दिल्ली की धड़कनें असंयत होती रही और प्रशासन कहाँ गुम रहा.. किसी को नही मालूम….? हाल के चुनावों में बंपर जीत करने वाले केजरीवाल जी शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ सुरक्षा पर भी ध्यान देना था.. आप राजघाट पर मस्त रहे…। आप कहेंगे पुलिस केंद्र के आधीन है…। हुजूर… 62 विधायकों की फौज की सुरक्षा व्यवस्था सहित आप इन इलाकों में तुरंत पहुँच जाते तो…. शायद राहत ही मिलती… दिल्ली और उसकी जनता को…। केंद्र के गृह मंत्री और अन्य गण मान्य किस बाँसुरी की तान… में मस्त रहे.. ये भी किसी को नहीं मालूम….?
इन घटनाओं को किसने अंजाम दिया…कौन दिल्ली की मुस्कुराहट छीन ले गया… कोई जिम्मेदार बताने को तैयार नहीं …। राजनीति की टेडी मेडी चाल में हैं पार्टी को दूसरे की गलतियां दिखाई दे रही हैं … इस मामले में… किसी को भी अपनी खुद की जिम्मेदारी का अहसास न पहले हुआ और न ही अब हो रहा है..। मामला 1984 की दंगों का हो या उसके ठीक 18 साल बाद गोधरा घट जाता है.. सत्ता की सीढ़ी के रूप में… और अब उसके 18 साल बाद…. बारी है दिल्ली की जहां अब तक सरकारी कागजों में 35 की मौत 250 से अधिक घायल हैं …। लेकिन कोर्ट फटकार कर कह देती है… नहीं बनने दिया जाएगा दिल्ली को.. 1984 वाली दिल्ली।
यह दिखाई देता है दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस मुरलीधर जी को…. फटकार लगाते हैं वो पुलिस और प्रशासन को…. बेनकाब करते हैं उन चेहरों को… जो दिल्ली की कालिख से रंगे थे… लेकिन स्वाधीन भारत की स्वतन्त्र न्याय पालिका पर भी…. राजनीति की स्याह दृष्टि पड़ती है…. रातों रात जस्टिस मुरलीधर जी का तबादला हो जाता है…? पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी जाती है…। तबादला सभी तरह की सेवाओं का एक अंग है… प्रक्रिया है.. लेकिन यही तबादला बतोर सजा भी है… जब सत्ता के मनमाफिक काम नौकरशाही नहीं करती है तब…। लेकिन हुजूर ये तो न्यायालयीन सेवाएं हैं… स्वतन्त्र संस्था की..। इसमे भी अगर दखल हुआ है तब तो सवालों की पैदाइश लाजमी है।
सुलगती दिल्ली के दिल सहित देश भर में ये सवाल सुलगने लगते हैं… कि क्या न्याय की बात कहना भी देश में अब बेमानी हो गया है…। जो सत्ता चाहें वही कीजिए… नहीं तो आपका तबादला कर दिया जाएगा…। शायद सत्ता को उनके दल के लोगों का नाम दिल्ली की शांति भंग करने वालों की सूची में आ जाना रास नहीं आया… और रुतबे का इस्तेमाल कर उन्हें दिल्ली की हाई कोर्ट से दूर किया गया है…। अगर ऐसा ही हुआ है तो देश के लोक तंत्र की सेहत ठीक नहीं कही जा सकती..। इसके दुष्परिणाम सभी को भोगने के लिए तैयार रहना चाहिए…।