अपनों से विद्रोह की धरती बना राजस्थान और मध्यप्रदेश : क्या छत्तीसगढ़ भी चलेगा इन्ही की राह पर
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेन्द्र देशमुख[/mkd_highlight]
16 दिसम्बर 2018 यानि दो साल पहले आज ही के दिन पूरे देश की निगाहें थीं और हर राजनैतिक चेतना वाले व्यक्ति के मन मे सवाल थे ..राजस्थान , छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में “कौन बनेगा मुख्यमंत्री” !
चुनाव के समय ‘एकला’ चलो का राग अलापने वाले नेता पद के लिए अंतिम समय मे शिखर पर ‘अकेले’ ही झंडा गाड़ना चाहते हैं ..उन दिनों
दिल्ली के बड़े बड़े बरामदों और लॉन से रोज , बदल- बदल कर ऐसी मुस्कुराती तस्वीरें आतीं थीं । ये मुस्कान कितने सच होते थे-कितने झूठ पर उम्मीदों या आश्वासनों से भरी जरूर होती थीं ।
नेता चुनने की नीति और उन दिनों चल रही कशमकश और ऊहापोह के बीच मैंने ठीक उसी 16 दिसम्बर 2018 को छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह कविता लिखी थी .. संयोगवश इसी दिन देर शाम एक नाम पर सहमति भी बन गई और 17 दिसंबर को मप्र राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्रियों ने जैसे तैसे शपथ ले ही ली लेकिन अभी तक निर्विवाद छत्तीसगढ़ ही रहा । जिसका श्रेय न केवल वर्तमान मुख्यमंत्री को जाता है वरन उतना ही श्रेय उस समय के अन्य तीनो दावेदारों को भी जाता है । विद्रोह छत्तीसगढ़ के खून में कम ही है …मेरी वही कविता आपके लिए पहली बार प्रस्तुत …
कहत रिहिन जेन ल परदेसिया ..?
तेन ल भगा के, चारों भाई लड़त हें..,
बने हे तमाशा ,
जनता के फिकर कोनो नइ करत हे ।
‘मे तो कथंव..!’
खुर्सी के चर-चर ,चार चीरा चीर डरव…
दाई के अचरा के
कुटका-कुटका तुम झन करव ।
तेली अऊ कुर्मी के करहु कोनो झगरा,
भांड़ी म सपट के बिलई ताके मुसवा ।
सूखत हे खेती, चटक जाही भुइयां,
रतनगरभा धरती,
फेर छलके नही कुंआ ।
रद्दा हे ,एक्के,बना लेवव टेंड़ा ,
कोनो बनो डोरी
कोनो बनव बेंड़ा ।
कोनो बनव मोरी ,
का झगरा, टेड़इया के ?
पागा बांधे रेहेंव बड़े भइया के ।
उही ल ओढा डरव, घमाघम खुमरी ।
तीर में सकलावव
जुरमिल चलावव ,
बारामासी फसल पांचों बच्छर उगावव ।
‘में त कथंव ..! ‘
भाई हरव त भाई-भाई के सम्मत देखा डरव,
देश-दुनिया मे छत्तीसगढ़ के फजीता होए ले बचा डरव..
फज्जीता होए ले बचा डरव..।।
( लेखक वरिष्ट विडियो जर्नलिस्ट है )