महाराष्ट्र में राजनीति का महाभारत शेर को घड़ी दिखा दी राजभवन ने
( कीर्ति राणा)
राजनीति में सब कुछ संभव है’ कई अवसरों पर बोले जाने वाली इस लाइन के हर तरीके से अर्थ को महाराष्ट्र में सरकार बनाने को आतुर दलों की जोड़तोड़ और राज्यपाल कोश्यारी की होशियारी से समझ आ जाना चाहिए। कहां तो शेर कमल चबाने के लिए झपट ही रहा था कि राज्यपाल ने वही घड़ी दिखा दी जो सामना के कार्टून में शेर के गले में लटकी दिखाई गई थी, एनसीपी का चुनाव चिन्ह भी यही है।
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में तो आखरी ओवर में लगाए चौके-छक्के से मिली जीत के रोमांचक मैच तो होते रहे हैं लेकिन राजभवन में राजनीति का यह रोमांचक मैच पोलिटिक्स की हिस्ट्री में भी अनूठा माना जाएगा। इस पूरे खेल में शरद पंवार ने पहले भाजपा से बदला लिया, फिर शिव सेना को गठबंधन से बाहर आने को मजबूर कर के 30 साल पुरानी दोस्ती की पत्तल में रायता फैला दिया। रहा सहा काम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने समय का हवाला देकर कर दिया। आठ बजे शिवसेना के रंगीन सपने टूटे और राज्यपाल ने एनसीपी के अजित पंवार ( शरद पंवार के भतीजे) को तीसरा बढ़ा दल होने के कारण सरकार बनाने का न्यौता दे डाला। भाजपा 105 सीटों के बाद भी अकेली पड़ गई, शिवसेना 56 सीटों के बाद भी सरकार बनाने के दावे को पूरा नहीं कर पाई क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस ने समय रहते उद्धव ठाकरे को समर्थन की चिट्ठी ही नहीं सौंपी। 44 सीटों वाली कांग्रेस सरकार तो बना नहीं सकती लेकिन वह सरकार बनाने में 29 निर्दलीय विधायकों की तरह मददगार है।
इस पूरे मामले में राज्यपाल की भूमिका पाक साफ बनाए रखने के सारे सूत्र भाजपा आलाकमान के हाथ में रहे।शिवसेना के शेर की हालत तो अब मिमियाने जैसी भी नहीं रही।सरकार बनाने के सारे सूत्र शरद पंवार के हाथ में हैं। अब शिवसेना की मजबूरी हो गई है एनसीपी का समर्थन करना।राज्यपाल अब अजित पंवार को समर्थक दलों की सूची सौंपने के लिए एक-दो दिन की मोहलत दे सकते हैं, समय तो शिवसेना ने भी मांगा था लेकिन समय के आगे नहीं चली सत्रह दिनों से गुर्रा रहे शेर की।
सरकार बनेगी इन तीनों दलों की ही लेकिन अब राजनीतिक वातावरण बदला नजर आएगा। भाजपा की जिस 50-50 की वादाखिलाफी का हवाला देकर शिवसेना ने तेवर दिखाए थे वही प्रस्ताव शरद पंवार शिवसेना के सामने रख सकते हैं। पहले ढाई साल एनसीपी और बाद के समय शिवसेना का सीएम रहेगा। बहुत संभव है कि शुरुआती ढाई साल भाजपा आराम से गुजरने दे और बाद के ढाई साल में अपने वाली पर आ जाए।महाराषटर की राजनीति के महाभारत के अठारह अध्याय अब पूरे हुए।कल महाराष्ट्र के आमजन तो राहत महसूस कर सकते हैं लेकिन शिवसेना से सारे हिसाब चुकता करने में शरद पंवार सफल रहे हैं, उनकी इस सफलता में अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का भी हाथ रहा है, ये रहस्य भी कुछ दिनों में उजागर होगा तो उद्धव ठाकरे को समझ आ जाएगा कि राजनीति के मैदान में वे पिता बालठाकरे से बहुत पीछे हैं।शिवसेना के विधायकों को तो सत्ता में भागीदारी से मतलब है भले ही वह दादर के सेना भवन से मिले या मातोश्री सोनिया गांधी की एनसीपी के साथ उदारता से मिले, कांग्रेस ने शिवसेना से बातचीत का दायित्व भी शरद पंवार को ही सौंपा है, इस सूझबूझ से संजय निरुपम को भी सीने में उठने वाले दर्द से राहत मिली होगी।इस सारी उठापटक में भाजपा जितने फायदे में रहेगी, शिवसेना का भविष्य उतना ही चिंताजनक होता जाएगा।एमएनएस के राज ठाकरे भी अब ठंडे दिमाग से सोच सकेंगे कि वे अपने दल का विलय एनसीपी के साथ करते हैं तो कितने फायदे में रहेंगे।