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कांग्रेस में प्रशांत किशोर की एंट्री से पार्टी के असंतुष्ट खेमे को लगेगा झटका

नई दिल्ली। कांग्रेस की राजनीतिक चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के प्लान पर अंतिम फैसला करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भले एक अंदरूनी समिति बना दी हो मगर संकेतों से साफ है कि पार्टी में एक बड़ी भूमिका के साथ उनके पर्दापण में अब ज्यादा देर नहीं है। लंबे अर्से ओर खासकर पांच राज्यों की ताजा करारी हार को लेकर चौतरफा तीखे सवालों का सामना कर रहे कांग्रेस के शिखर नेतृत्व के लिए पीके की सियासी एंट्री जहां बड़ी तात्कालिक राहत होगी। वहीं माना जा रहा कि इससे पार्टी के असंतुष्ट खेमे जी 23 के नेताओं को झटका लगेगा और बदलाव को लेकर नेतृत्व के खिलाफ उनका अभियान कमजोर पड़ेगा।

पीके के जरिए कांग्रेस में बदलावों और सुधारों को लागू करेगा नेतृत्व

पार्टी के असंतुष्ट नेता कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे की कमजोरियों और कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए लंबे अर्से से इसमें बदलाव की मांग करते रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान अब पार्टी में किए जाने वाले बदलावों के लिए पीके और उनके प्लान की अहम भूमिका तय करने की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसे में असंतुष्ट नेताओं के लिए नेतृत्व के दिशा-निर्देशों में उठाए जाने वाले बदलाव के इन कदमों पर सवाल उठाना मुश्किल होगा क्योंकि चुनावी सियासत के रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर की अब तक की काबिलियत पर शायद ही किसी को संदेह हो।

जी 23 नेताओं के पास नहीं हैं ज्यादा विकल्प

हालांकि यह भी सच है कि कांग्रेस की फिर से सियासी ताकत के रूप में वापसी के पीके के प्लान में पार्टी के संगठनात्मक ढांचे की बेहद अहम होगी। असंतुष्ट खेमा शीर्ष संगठन की मौजूदा खामियों को लेकर ही मुखर रहा है लेकिन इसमें बदलावों की पहल अभी शुरू नहीं हुई है। बावजूद इसके जी 23 नेताओं के लिए पीके के जरिए पार्टी का कायाकल्प करने की पहल में अड़चन डालना जी 23 नेताओं के लिए आसान नहीं है।

खासकर यह देखते हुए कि नेतृत्व पर दबाव डालने के लिए अब तक किए गए तमाम प्रयासों के बावजूद जी 23 के नेता विद्रोह की सीमा तक जाने से परहेज करते रहे हैं। इतना ही नहीं असंतुष्ट खेमे में शामिल अधिकांश नेता पार्टी की मुख्यधारा में रहकर ही संगठन में बदलाव और सुधारों की आवाज उठाने के पक्षधर रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, बीते गुरूवार को ही जी 23 नेताओं के कुछ प्रमुख नेताओं की गुलाम नबी आजाद के घर एक अनौपचारिक बैठक हुई थी जिसमें आगे की रणनीति को लेकर असंतुष्ट खेमा किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया। इस बैठक में शामिल नेताओं की चर्चा का सार यही था कि फिलहाल पार्टी से अलग होकर राजनीतिक राह तय करना आसान नहीं है।

जी 23 के नेता इस हकीकत की अनदेखी नहीं कर रहे कि हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडडा के अलावा उनके समूह में ऐसा कोई नेता नहीं जिसका बड़ा सियासी जनाधार हो और कांग्रेस नेतृत्व के साथ हुडडा की सियासी डील करीब-करीब तय हो गई है। जबकि अन्य नेता पार्टी की मुख्यधारा से अलग होकर राजनीतिक कदम उठाने का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं।

ऐसे में पीके की एंट्री कांग्रेस की मौजूदा हालात के बावजूद गांधी परिवार के नेतृत्व की पकड़ को मजबूत करेगा क्योंकि इसके जरिए पार्टी देश भर में बदलाव और अपनी वापसी के नैरेटिव का एक सियासी संदेश तो जरूर देगी। असंतुष्ट खेमा भी बुनियादी रूप से नेतृत्व पर कुछ इसी तरह के संदेश देने की बात उठाता रहा है और इसलिए माना जा रहा कि पीके की इंट्री नेतृत्व के खिलाफ उनके अभियान को कमजोर करेगा।

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