पौष कृष्ण दशमी आज : व्यक्ति का निर्माण होता है दया-करुणा-प्रेम -शांति-सत्य से
—पुरुषादानीय तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक विशेष
—पौष कृष्ण दशमी आज
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]परम पूज्य साध्वी शाश्वत पूर्णाश्री जी[/mkd_highlight]
गंगा के पवित्र किनारे बसी वाराणसी नगरी ….इस पावन धरा का एक पवित्र इतिहास रहा है, और इस इतिहास के शीर्षक स्वरूप प्रभु पार्श्वनाथ है… पौष कृष्ण दशमी को पिता अश्व सेन और माता वामा देवी के घर पुत्र के रूप में जन्म लेकर भगवान पार्श्वनाथ ने गंगा किनारे के इस नगर को पावन किया…. प्रभु पार्श्वनाथ ने जन्म से ही अहिंसा- करुणा- प्रेम का संदेश विश्व को दिया …धर्म व्यक्ति का सृजन करने के लिए है …और एक व्यक्ति का निर्माण दया -करुणा- प्रेम -शांति -सत्य इत्यादिक गुणों से होता है …धर्म बाहय और अभ्यंतर दोनों से व्यक्ति को सुंदर और पवित्र बनाता है …यही संदेश प्रभु पार्श्वनाथ में विश्व को दिया ….जब उन्होंने जलती हुई लकड़ी में से सर्प को निकाला…. अपने अत्यंत प्रेम और वात्सल्य पूर्ण वाणी से उसके मन को पवित्र किया ….जिसके फल स्वरुप वह नाग घरर्णेद्र देव बने.. प्रभु पार्श्वनाथ के जीवन की दो घटनायें मुख्य रूप से दो बातों को प्रमुखता से बताती है …पहली धर्म का बीज करुणा प्रेम है.. दूसरी धर्म का फल “” सम भाव”” है….
घटना कुछ इस प्रकार है.. एक बार की बात है जब… राजकुमार पार्श्व कुमार अपने महल में बैठे हुए खिड़की के बाहर देख रहे थे …तब उनकी नजर अपने प्रजा जनो पर पड़ी जो अपने हाथों में ढेर सारे उपहार लेकर जंगल की ओर जा रहे थे… उत्सुक होकर उन्होंने अपनी मां से पूछा.. .यह नगर जन कहां जा रहे हैं..मां ने कहा गांव में एक तापस आए हैं …जो पंच अग्नि तपाते हैं …जिनका नाम कमठ तापस है… उनकी मां की भी इच्छा उस तापस को देखने की थी…. और वह चाहती थी कि पार्श्व कुमार भी उनके साथ तपस्वी के आश्रम आए .. पार्श्व कुमार मां की इच्छा का मान रखते हुए आश्रम चले… जब वह आश्रम पहुंचे उन्होंने देखा तापस यज्ञ में मगन है …और उन्हें ऐसा लगा कि जो यज्ञ तापस कर रहे हैं…उससे प्रकृति का नुकसान हो रहा है ….क्योंकि जिन लकड़ियों को वह जला रहे थे… वह तो प्रकृति का भाग है ही और उसमें कई जीवों की हानि भी हो रही थी… पार्श्व कुमार ने उस यज्ञ को रोकते हुए … उस तापस को बताया कि लकड़ी के बीच में एक नाग- नागिन का जोड़ा है.. तब कमठ तापस को यह सुनकर क्रोध आया और उस तापस ने पार्श्व कुमार को ललकारा … और पार्श्व कुमार को यह बात साबित करने के लिए कहा … पार्श्वनाथ ने उस लकड़ी को हटाने के लिए कहा और लकड़हारे ने जब उसे हटाया तब एक नाग नागिन का जोड़ा अर्धमृत अवस्था में बाहर निकला … तापस ने पाश्र्वनाथ स्वामी से माफी मांगी.. पार्श्वनाथ स्वामी ने नाग – नागिन के जोड़े को नवकार मंत्र सुनाया और ऐसा माना जाता है कि वह नाग- नागिन का जोड़ा प्रभु के मुख से नवकार महामंत्र सुनकर अगले जन्म में धरणोंद्र देव और पद्मावती देवी के रूप में अवतरित हुये..
दूसरी घटना कमठ का जीव जब मेघ माली बनकर प्रभु पार्श्वनाथ पर घोर उपसर्ग करता है … अत्याधिक कष्ट पहुंचाने की चेष्टा करता है …तब नाग का जीव जो धरणेंद्र देव बना था … प्रभु की सहायता करने के लिए उपस्थित हो जाता है …..दोनों ही घटना में समान पात्र कमठ था… जब कमठ के अज्ञान के कारण एक जीव जल रहा था …तब प्रभु पार्श्वनाथ ने अपने जीवन चरित्र से उपदेश दिया कि करुणा के बिना जीवन और मन धर्ममय नहीं बन सकता … और जब कमठ प्रभु को उपसर्ग कर रहा था अत्याधिक पीड़ा दे रहा था … और धर्णेंद्र भक्ति वश बचाने आया… उस समय प्रभु पार्श्वनाथ दोनों को समान रूप से देखते थे… ना हर्ष ना शौक… ना राग ना द्वेष दोनों से परे हो गए …वीतराग बन गए …इस तरह प्रभु पार्श्वनाथ का जीवन हमें सही अर्थों में मानव बनने का संदेश देता है …और यह सामर्थ्य केवल जो नीडर है.. जो सत्य के पथ पर चलने के लिए अग्रसर है… वही कर सकेगा …इसलिए वे “”पुरुषादनीय पार्श्वनाथ”” कहे गए आज के इस भौतिक युग में जहां हमारे मन में एक घर के सारे सदस्य भी निस्वार्थ प्रेम से संग्रहित नहीं है ..वहां प्रभु पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक का अवसर हमें जगाता है …जागृत करता है कि प्रेम के अमृत में स्वार्थ का जहर ना घोलें.. करुणा से स्वयं और अपने आसपास सभी के मन और जीवन को सुगंधित करें.. तभी यह कल्याणक महोत्सव सार्थक होगा।