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पंचायती राज दिवस : आज कितना सार्थक हो रहा पंचायती राज

जोरावर सिंह

कहा जाता है कि भारत गांवों का देश है, इसकी 80 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है, भारत का विकास तभी संभव है, जब गांवों का विकाश, शायद मंशा काे पूरा करने के लिए भारत में त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को लागू किया गया। यह व्यवस्था के आज के दिन से शुरू की गई थी, अब भी जारी है, मगर वर्तमान दौर में पंचायती राज व्यवस्था कितनी सार्थक हो रही है।


भारत के संविधान में 73 वें संसोधन में 1993 को 24 अप्रेल को ही पंचायत राज की शुरू आत की गई। इस अधिनियम को संवैधानिक मान्यता मिली थी। इसमें त्रि-स्तरी यपंचायत व्यवस्था है, इसमें जिला पंचायत राज, जनपद पंचायत, और ग्राम पंचायत स्तर शािमल है, जिला पंचायत के सदस्य जिले भर से चुने जाते है, और वह जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते है, जनपद पंचायत में भी यही व्यवस्था है, एक जनपद क्षेत्र के चुने हुए सदस्यों द्वारा जनपद अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है, ग्राम पंचायत स्तर पर पंचायत के वार्ड सदस्य पंच चुने जाते है, मगर सरपंच का चुनाव भी सीधे जनता द्वारा ही किया जाता है।


पंचायतों के काम

पंचायती राज में ग्राम, जनपद और जिला पंचायतों द्वारा प्रमुख कार्य जो किए जाते है, उनमें प्रमुख रूप से कृषि संबंधी कार्य, ग्राम्य विकास संबंधी कार्य, प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय व अनौपचारिक शिक्षा के कार्य, युवा कल्याण सम्बंधी कार्य, राजकीय नलकूपों की मरम्मत व रखरखाव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सम्बंधी कार्य, महिला एवं बाल विकास सम्बंधी कार्य, पशुधन विकास सम्बंधी कार्य अन्य कार्य शामिल हैं।

-चुनाव का है इंतजार

मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर संभावनाएं जताई जा रही थी, कि पंचायत चुनाव मार्च अप्रेल 2021 तक कराए जाएंगे, लेकिन वर्तमान में कोरोना के कारण से यह संभव नहीं हो पाया, इससे ग्राम पंचायतों के चुनाव की मंशा रखने वाले भावी उम्मीदरों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। मध्यप्रदेश के 52 जिलों में ग्राम पंचायत 22,812, जनपद पंचायत 313 जिला पंचायत 51 है। जिनके माध्यम से प्रदेश में ित्रस्तरीय पंचायत राज को संचालित किया जा रहा है।

विकास की योजनाएं बना सकें

पंचायती राज का प्रमुख उददेश्यम यही रहा कि देश में ग्राम स्तर पर निवास करने वाले लोग ग्राम पंचायतों के माध्यम से अपने विकास की योजनाओं मूर्तरूप देकर उन्हें आकार दे सकें। यानी िक स्थानीय स्वशासन शासन-सत्ता को एक स्थान पर केंद्रित करने के बजाय उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाए, ताकि आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित हो सके और वह अपने हितों व आवश्यकताओं के अनुरूप शासन-संचालन में अपना योगदान दे सके। ग्राम पंचायतें स्थानीय ज़रुरतों के अनुसार योजनाएँ बनाएंगी और उन्हें लागू करेंगी। इससे ग्रामों का विकास बेहतर तरीके से किया जा सके।

-सियासत में कदम रखने का मौका

भारत में ग्राम पंचायतें सियासत की सबसे छोटी इकाई है, इसमें महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी है, इससे माना जाता है कि पंचायती राज के माध्यम से महिलाओं को सियासत में कदम रखने का अवसर मिलता है, इसके साथ ही त्रीस्तरीय पंचायत व्यवस्था में आरक्षण की व्यवस्था से वंचित वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान होता है, इससे ग्राम स्तर पर व्याप्त भेद भाव की सम्पर्पित के अवसर बनते है। वहीं पंचायत राज के कारण ग्रामीण जो अपनी समस्याओं को ग्राम स्तर पर ही उनका निदान ढूढ लेने के लिए प्रयास कर पाते है।

-कितना सार्थक है पंचायती राज

पंचायती राज व्यवस्था ने ग्रामों के विकास में अहम भूमिका निभाई है तो वहीं कुछ मुश्िकलें भी पैदा की है, इसमें पंचायतों के चुनावों में ग्रामों में होने वाले िववाद, ग्राम पंचायतों में महिला पंच और सरपंचों का काम काज उनके पति एवं अन्य परिजनों द्वारा देखा जाना, भ्रष्टाचार सहित, दबंगों का ग्राम पंचायतों में दबदबे के कारण से पंचायती राज का लाभ वंचित तबके को उतना नहीं मिल पाया है, जितना मिलना चािहए था, ग्राम पंचायतों में दबंगों के दबदबे के कारण विकास कार्यो में हेरफेर किया जाता है। इसके बाद भी पंचायती राज ने गांवों के िवकास को आकार देने, और वंचितों को अवसर देने में अपनी भूमिका निभाई है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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