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पाक के पास नहीं हैं डैम बनाने के पैसे, 30-30 रुपये के चंदे से जुटाएगा पैसा

पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न देश होने का दावा करता है लेकिन आतंकवाद का पनाहगाह और संरक्षक पाकिस्तान के पास डैम बनाने के लिए पैसे नहीं हैं. पाकिस्तान के कई इलाके पानी की घोर समस्या से जूझ रहे हैं और इसके लिए वहां कई डैम बनाने की जरूरत है. लेकिन बात-बात पर हिंदुस्तान को परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान के पास डैम के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए इन दिनों पाकिस्तान में लोगों से चंदा इकट्ठा किया जा रहा है.

हाल ही में पाकिस्तान को घोर पानी संकट से जूझ रहे विश्व के देशो में तीसरे पायदान पर रखा गया. इसके बाद पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश साकिब निसार ने सरकार की अक्षमता, अयोग्यता और अनिक्षा को देखते हुए पाकिस्तान में दो डैम (डैमार-भाषा, 4500 मेगावाट और मोहमंद, 700 मेगावाट) बनाने के लिए लोगों से चंदा देने की अपील की. विदेशों में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों से भी चंदा देने की अपील की. उदाहरण पेश करने के लिए चीफ जस्टिस ने अपनी तरफ से 10 लाख रुपये देने की घोषणा भी कर दी.

आश्चर्यजनक रूप से जस्टिस निसार डैम के लिए चंदा इकट्ठा करने की तुलना भारत के साथ 1965 की लड़ाई के समय इकट्ठा किये गए चंदे से किया. जस्टिस निसार ने उम्मीद जताया कि डैम बनाने के लिए 1965 की लड़ाई के समय जैसा जूनून लोगो में दिखेगा. डैमार-भाषा डैम केपी और गिलगिट-बाल्टिस्तान और मोहमंद बांध स्वात नदी पर बनाया जाना है.

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्माण की प्रगति की निगरानी के लिए जल और विद्युत विकास प्राधिकरण (Wapda) प्रमुख की अध्यक्षता में एक समिति बनाई और निर्देश दिया कि एससी के रजिस्ट्रार के साथ एक खाता खोला जाए जिसमें सभी दान एकत्र किए जाएंगे. यह भी कहा गया है कि जो लोग इस कारण के लिए दान करते हैं उनके आय के स्रोतों के बारे में नहीं पूछा जाएगा.

पाकिस्तान की आर्मी ने भी अपनी तरफ से एक और दो दिन के वेतन देने की घोषणा की है. इस अपील के बाद पाकिस्तान के वित् मंत्रालय द्वारा चंदा इकट्ठा करने के लिए बैंक अकाउंट खोला गया.

अप्रैल में ही पाकिस्तान सरकार ने अपने रक्षा बजट में 10 फीसदी की भारी बढ़ोत्तरी की थी. पाकिस्तान का रक्षा बजट पिछले वित्त वर्ष के दौरान 999 अरब रुपये का था, जो इस बार बढ़ाकर 11 सौ अरब रुपये कर दिया गया. लेकिन जिस तरह से डैम बनाने के लिए चंदा इक्कठा किया जा रहा है, उससे पाकिस्तान की आर्थिक कंगाली सबके सामने है. पहले अमेरिका और अब चीन के चंदे पर टिके पाकिस्तान की आर्थिक हालत जग-जाहिर हो रही है.

चंदे के पैसे से डैम बनाने की करवाई को कई पाकिस्तानी शर्मनाक बता रहे हैं और इसे गलत परम्परा की शुरुआत बता रहे हैं. अब्दुल्ला अंसारी, पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और पाकिस्तान में तेल और गैस उद्योग में काम करते हैं, एक्सप्रेस ट्रिब्यून में अपने ब्लॉग में पाकिस्तान में वसूले जाने वाले टैक्स की लम्बी लिस्ट गिनाते हैं.

अब्दुल्ला अंसारी के अनुसार दुर्भाग्यवश, दान के माध्यम से बांध बनाने के लिए आगे बढ़ने का तरीका सही नहीं है. इस तरह से तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक बहुत ही खतरनाक उदाहरण स्थापित करेगा. यह तरीका भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए राज्य अनिच्छा को अनुचित वैधता प्रदान करती है. इससे भी बदतर, यह उन्हें इस देश में कहर बरकरार रखने की इजाजत देता है जहां हम, नागरिक, लगातार थोड़ा और थोड़ा और आगे बढ़कर देने के लिए कहा जाता है जब तक कि हमारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं बच जाता.

खुर्रम हुसैन, डॉन अखबार में अपने लेख में लिखते हैं कि देश में आधारभूत ढांचे का निर्माण ऐसे वित्तीय जुगाड़ से नहीं किये जाते हैं. इतना बड़ा डैम भीड़ के चंदे से नहीं बनाया जा सकता. अगर इसे शर्मनाक कहें तो ये कम ही होगा. खुर्रम हुसैन के अनुसार, सार्वजनिक वित्त एक मजाक नहीं है, राज्य को दान की तरह नहीं चलाया जा सकता है.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ महीनों से भारी संकट में जाती दिख रही है. पाकिस्तान के पास इस साल मई में 10.3 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो पिछले साल मई में 16.4 अरब डॉलर था. पाकिस्तान भुगतान संतुलन के संकट से जूझ रहा है और पाकिस्तान को भुगतान-संतुलन संकट से बचने में मदद के लिए चीन ने पाकिस्तान को 2 अरब डॉलर का चीनी ऋण देने का वादा किया है.

सिर्फ डैम ही नहीं पाकिस्तान में एक राजनीतिक दल, जिस राज्य में उसकी सरकार थी, वहां एक अस्पताल बनाने के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा कर रही थी. इमरान खान जनता से पेशावर में एक अस्पताल के लिए दान करने के लिए कह रहे थे और वह भी उनके नाम पर. पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (के-पी) प्रान्त में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की सरकार रहते हुए भी पार्टी के मुखिया इमरान खान एक अस्पताल बनाने के लिए लोगों से चंदा देने की अपील कर रहे थे जबकि राज्य सरकार के पास सरकारी फंड के इस्तेमाल का अधिकार था.

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