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नेपाल में आम चुनाव के लिए वोटिंग जारी:भारत समर्थक शेर बहादुर देउबा और चीन के पैरोकार केपी शर्मा ओली के बीच मुकाबला

नेपाल में आज चुनाव हो रहे हैं। इसके लिए वोटिंग शुरू हो गई है जो शाम 5 बजे तक चलेगी। यहां संसद और विधानसभा के चुनाव के लिए एकसाथ वोटिंग हो रही है। मुकाबला वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बीच है।

नेपाल निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 22,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर मतदान हो रहा है।

3 लाख सुरक्षाकर्मी और एक लाख जनसेवक चुनावी ड्यूटी में लगाए गए हैं। भारत ने चुनाव आयोग को अलग-अलग तरह के 80 नए वाहन दिए हैं।
संसद और विधानसभा के लिए एक-साथ वोटिंग
नेपाल की संसद की कुल 275 सीटों और प्रांतीय विधानसभाओं की 550 सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। साल 2015 में घोषित किए गए नए संविधान के बाद ये दूसरा चुनाव है। देश के 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर अपनी सरकार को चुनेंगे। इसके रिजल्ट एक हफ्ते में आने की उम्मीद है।

भारत और चीन की सीमाएं सील
चुनाव पर भारत की नजरें भी टिकी हैं। दरअसल नेपाल सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि चीन का भी पड़ोसी है। भारत को चौतरफा घेरने के लिए चीन नेपाल की जमीन का इस्तेमाल करना चाहता है। भारत और नेपाल के रिश्ते भी अहम हैं। अब नेपाल की नई सरकार ही तय करेगी कि उसे किस देश-भारत या चीन का साथ चाहिए।

नेपाल में हो रहे चुनावों में भारत भी मदद कर रहा है। यहां बिना किसी परेशानी वोटिंग हो सके इसके लिए भारत ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। नेपाल से लगने वाली भारत और चीन की सीमाओं को सील कर दिया गया है। बिहार और उत्तर प्रदेश की लंबी सीमा नेपाल से लगती है। यहां से दोनों देशों के लोग बिना वीजा और पासपोर्ट के आना-जाना कर सकते हैं।

US और चीन से आर्थिक मदद पर भी राजनीतिक पार्टियों में मतभेद
नेपाल की राजनीतिक पार्टियों में अमेरिका और चीन से आर्थिक मदद पर मतभेद की स्थिति है। देउबा की पार्टी ने अमेरिकी मिलेनियम चैलेंज कोऑपरेशन के तहत 42 हजार करोड़ रुपए की मदद को स्वीकार किया है। इसे संसद से भी पास करा लिया गया है। जबकि केपी शर्मा ओली की पार्टी चीन के साथ BRI करार पर ज्यादा उत्सुक नजर आते हैं। छोटी पार्टियों ने विदेशी मदद पर चुनाव प्रचार में अपना रुख साफ नहीं किया है।

ओली ने चुनावी कैंपेन में उठाए भारतीय क्षेत्रों से जुड़े विवादित मुद्दे
केपी शर्मा ओली ने अपनी रैलियों में भारत-नेपाल के बीच चल रहे कालापानी क्षेत्रीय विवाद को उठाया। 2019 में नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत सरकार के नए नक्‍शे पर आपत्ति जताते हुए दावा किया था कि नेपाल-भारत और तिब्‍बत के ट्राई जंक्‍शन पर स्थित कालापानी इलाका उसके क्षेत्र में आता है।

ओली राष्ट्रवादी मुद्दों को उछाल कर स्विंग वोटरों को अपने पक्ष में साधने में जुटे रहे।
ओली सरकार के कार्यकाल में बढ़ा भारत-नेपाल तनाव
ओली का कहना है कि पीएम बनते ही वो भारत के साथ सीमा विवाद हल कर देंगे। वे देश की एक इंच भूमि भी जाने नहीं देंगे। हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि 2 साल से ज्यादा सत्ता में रहने के बावजूद ओली ने इस विवाद को हल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। बतौर पीएम ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल में दर्शाता हुआ नया मैप जारी किया था। भारत इन्हें उपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है। ओली ने इस नक्शे को नेपाली संसद में पास भी करा लिया था।

PM देउबा भारत के साथ बातचीत से विवाद सुलझाने के पक्ष में
नेपाली कांग्रेस के मुखिया और वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि उकसाने और शब्दों की लड़ाई की बजाय वो भारत के साथ कूटनीति और बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।

देउबा का फोकस हमेशा नेपाल-भारत के रिश्ते मजबूत करने पर रहा है।
त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के प्रो. प्रेम खनल का कहना है कि चुनाव में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को एक बड़ी पार्टी की ओर से उठाया जाना ठीक नहीं है। इससे पड़ोसी देश के साथ संबंध खराब होते हैं। साथ ही दुनिया भर में भी अच्छा संदेश नहीं जाता है। चुनाव में इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को किसी भी पार्टी की ओर से नहीं उठाना चाहिए।

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल में पॉलिटिकल इनस्टैबिलिटी है। यहां 1990 में लोकतंत्र स्थापित हुआ था और 2008 में राजशाही को खत्म कर दिया गया था। 2006 में सिविल वॉर खत्म होने के बाद से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। नेतृत्व में बार-बार बदलाव और राजनीतिक दलों के बीच आपसी विवाद के चलते डेवलपमेंट धीरे हो रहा है।

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