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एनडी तिवारी: 88 की उम्र में बने दूल्हा, DNA टेस्ट से मिला 33 साल का बेटा

गहन अध्ययन, फर्राटेदार अंग्रेजी, और चमकदार चेहरे पर नेहरू टोपी से आकर्षित करने वाले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे. अपने जन्मदिन के दिन ही 93 साल की आयु में उनका निधन हो गया. तिवारी उत्तर प्रदेश के तीन बार और उत्तराखंड बनने के बाद वहां के तीसरे मुख्यमंत्री बने.

एनडी तिवारी का जन्म नैनीताल जिले के बल्यूरी गांव में 18 अक्टूबर, 1925 में हुआ था. उनके पिता पूर्णानंद तिवारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. आजादी के आंदोलन से प्रेरित होकर एनडी तिवारी भी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा हो गए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तारी में जेल से छूटने के बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूरी की. तभी उन्हें पं. जवाहर लाल नेहरू, पं मदन मोहन मालवीय और आचार्य नरेंद्र देव का सानिध्य मिला जिनसे उन्हें समाजवाद सीखने का अवसर मिला.

1947 में एनडी तिवारी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में चुना जाना उनके राजनीतिक जीवन की पहली सीढ़ी साबित हुआ. 1952 में तिवारी पहली बार नैनीताल सीट से विधानसभा का चुनाव लड़कर जीते और उत्तर प्रदेश की पहली विधानसभा का हिस्सा बने. 1965 में एनडी तिवारी काशीपुर विधानसभा से विधायक बने और पहली बार यूपी के मंत्रिमंडल में जगह मिली. जिसके बाद कांग्रेस में उनका कद बढ़ता चला गया.

1954 में, उन्होंने सुशीला सांवाल से शादी की जो की एक डॉक्टर थीं, दोनों से कोई संतान नहीं थी. साल 1969 से 1971 तक तिवारी लगातार कांग्रेस के युवा संगठन के अध्यक्ष चुने गए. तिवारी को बड़ा सम्मान तब मिला जब वे 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन यह सरकार 1977 में गिर गई. तिवारी 3 बार उत्तर प्रदेश के 1 बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने हैं. ऐसा करने वाले वे पहले व्यक्ति है जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री बने हों.

हालांकि तिवारी की पैराशूट सीएम कहकर आलोचना भी होती रही. लेकिन आज भी उनके कार्यकाल को विकास की दिशा दिखाने वाले नेता के तौर पर होती है. उत्तराखंड के औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा.

एनडी तिवारी का अधिकांश राजनीतिक जीवन कांग्रेस के साथ रहा जहां संगठन से सरकार तक वे अहम पदों पर रहे. केंद्र में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, वाणिज्य, वित्त, और पेट्रोलियम मंत्री के तौर पर तिवारी ने काम किया. एनडी तिवारी ने 1995 में तत्कालीन कांग्रेस से अलग होकर तिवारी कांग्रेस बनाई लेकिन सफल नहीं रहे और दो साल बाद ही पार्टी में वापस आ गए.

तिवारी को लेकर अक्सर चर्चा होती है कि यदि वे नैनीताल से चुनाव न हारते तो देश के प्रधानमंत्री होते. फिर कयास लगाए गए कि उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाएगा, फिर कहा गया उपराष्ट्रपति बनाया जाएगा लेकिन यह हो न सका. इस बीच यह भी कहा जाने लगा कि पार्टी और खासकर अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें महत्व नहीं दिया. लेकिन सोनिया गांधी ने उनका पुनर्वास अलग तरीके से किया पहले 2007 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा गया. फिर जब कांग्रेस 2007 में चुनाव हार गई तब उन्हे राज्यपाल के तौर पर आंध्र प्रदेश भेजा गया.

लेकिन 2009 में राजभवन के सेक्स स्कैंडल कांड में नाम उछलने के बाद उनकी असमय विदाई हो गई और वे देहरादून लौट गए. तिवारी की मुश्किलें यहीं कम नहीं हुई साल 2008 में रोहित शेखर ने एनडी तिवारी को अपना जैविक पिता होने दावा करते हुए उनके खिलाफ पितृत्व का केस दाखिल किया. 6 साल तक मामले को टालते आ रहे तिवारी ने रोहित की मां उज्जवला से 88 साल की उम्र में 2014 में विवाह किया और रोहित को अपना पुत्र माना.

कांग्रेस से अवसाद के दिनों में तिवारी का अगला ठिकाना समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से नजदीकियों के कारण लखनऊ बना. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री होने के कारण राजधानी में उन्हें एक बंगला मिला जिसमें अपने अंतिम दिनों वे रहा करते थे. लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला खाली करना पड़ा. तिवारी ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के एक अस्पताल में ली.

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