पर्युषण पर्व: अद्भुत ,चमत्कारी और फलदायक है नवकार महामंत्र
[mkd_highlight background_color=”” color=”Red”]मनीषा शाह[/mkd_highlight]
आज जिस कोविड माहामारी के बीच जी रहे हैं ,ऐसे मे पूरे विश्व में , पूरे देश में या स्वयं के अंदर एक दृश्य — अदृश्य हलचल मची हुई है..किसी को यह समय या तो आतरिक निर्बलता का एहसास करा रहा है या किसी को तो आत्म साधना का केंद्र नजर आ रहा है.. आत्म साधना यद्यपि एक विरला ही कार्य है.. परंतु आंतरिक निर्बलता आज अधिक संख्या में लोगों के दिलों दिमाग पर हावी होती जा रही है.. उसके कुछ भी कारण हो सकते हैं… चाहे वह आर्थिक मंदी हो , वैश्विक बेरोजगारी की समस्या हो या सबसे जटिल समस्या जो उत्पन्न हुई है इस महामारी में वह है स्वयं से विश्वास उठने की.. एक भ्रम सा आया है हर व्यक्ति अपने आप को अकेला महसूस कर रहा है…
जिस व्यक्ति को निरंतर चलते रहने की आदत रहती है अगर उसे एक जगह रुकने के लिए कह दिया जाए तो अंततः इसका परिणाम शिथिलता ही है, जैसे पानी एक जगह जब रुक जाता है तो वह अशुद्ध हो जाता है. और अगर उसे एक जगह एकत्र करना भी हो तो एक कमंडलु की जरूरत होती है..
आज मैं जिस कमंडलु की बात करने जा रही हूं.. उसका नाम है नवकार महामंत्र…
अथवा आज चलते हैं हम एक अद्भुत यात्रा की ओर… . एक जगह बैठे बैठे स्वयं के भीतर.. इस यात्रा की ओर ले जाने वाला सबसे अद्भुत माध्यम है..
“”. नवकार मंत्र “”
नवकार मंत्र या जिसे नमस्कार महामंत्र भी कहते हैं… जिसके अर्थ से हम स्वयं इसकी महत्ता को अनुभव कर लेंगे….
,🙏””नवकार महामंत्र “🙏
।।नमो अरिहंताणं।।
।।नमो सिद्धाणं।।
।।नमो आयरियाणं।।
।।नमो उवज्झायाणं।।
।।नमो लोये सव्व साहूणं।।
।। एसो पंच नमोकारो
सव्व पावप्पणासणों
मंगलाणां च सव्वेसिं
पढमं हवई मंगलं ।।
नमो अरिहंताणं : अर्थात राग द्वेष रूपी अंतर शत्रु का नाश करने वाले , अष्ट महा प्रातिहार्य के पूजने योग्य , 12 गुणों के धारक ऐसे भूत भावी और वर्तमान के अनंत अनंत श्वैत वर्णय श्री तीर्थंकर अरिहंत भगवंतों को मैं मन – वचन और काया से नमस्कार करता हूं.।
नमो सिद्धाणं : अष्ट कर्मों का संपूर्णतः नाश करने वाले , जन्म – जरा – मृत्यु से मुक्त.. आठ गुणों के धारक ऐसे भूत भावी और वर्तमान के अनंत अनंत रक्त( लाल ) वर्णीय श्री सिद्ध भगवंतों को मे मन वचन और काया से नमस्कार करता हूं..।
नमो आयरियाणं : अर्थात पंचाचार के पालक , जिन शासन में दीपक समान , कुमत वादी हाथियों को भगाने के लिए केसरी सिंह के समान , 36 गुणों से विभूषित ऐसे भूत भावी और वर्तमान के अनंत अनंत पीत् (पिले ) वर्णीय श्री आचार्य भगवंत को मन वचन और काया से नमस्कार करता हूं..।
नमो उवझायाणं : अर्थात जिन आगम संरक्षक , स्वाध्याय श्रुत प्रेमी , अबुध को पंडित बनाने वाले सुप्रसन्ना चित्त वाले ऐसे 25 गुणों से अलंकृत भूत भावी और वर्तमान के हरे वर्णीय श्री उपाध्याय भगवंत को मैं मन वचन और काया से नमस्कार करता हूं..।
नमो लोए सव्व साहूणं : मोक्ष मार्ग के परम साधक , 22 प्रकार के परिसह (उपसर्ग ) सहन करने में तत्पर , विनय के साथ जब – तप और नियम से युक्त, स्वर्ग , मनुष्य और पाताल लोक में रहे हुए 27 गुणों के धारक कृष्ण वर्णीय सभी साधु भगवंतों को मन वचन और काया से नमस्कार करता हूं…।
ऐसो पंच नमोकारो : ईन पांचो को (अरिहत , सिद्ध , आचार्य , उपाध्याय , साधुओं को किया गया नमस्कार संपूर्णतः सभी पापों का एवं ज्ञानावर्णनीय आदि आठों कर्मों का नाश करता है.।
दुखों की उत्पत्ति पापों से ही होती है अतः पाप नाश होते ही दुख नाश तो स्वयं ही हो जाता है..।
मगलाणंच सव्वेसिं पढमं हवई मगलं : सभी मंगलों में यह नमस्कार महामंत्र प्रथम अर्थात सर्वश्रेष्ठ महा मंगल है.।
यह मंत्र वस्तुतः जैन परंपरा का एक अमूल्य भाग है…. या जैन परंपरा की नींव ही है…
परंतु इस महामंत्र को एक धार्मिक जामा देकर इसके महत्व को कम करना ठीक नहीं है….
इस मंत्र के द्वारा हम प्रकृति के सभी चराचर जीवों , सभी परा और अपरा शक्तियों को नमन करते हैं…
किसी धार्मिक व्यक्ति या देवता विशेष को नहीं…
यह महामंत्र वस्तुतः एक अद्भुत तकनीक है.. जिसके अनुभव से हम साकार परमात्मा से निराकार की तरफ बढ़ सके और निराकार से स्वयं साकार ईश्वर बन सकें…
उदाहरण के तौर पर जैसे कोई विद्यार्थी स्नातक में हर विषय को पड़ता है… फिर जिस विषय में उसकी अधिक रुचि होती है उसमें वह आगे शोध की तरफ बढ़ता है… अंत में शोध पूर्ण होने पर उस शोध को वैश्विक मान्यता या पेटेंट दिया जाता है… जिसे फिर सभी लोग स्नातक में उसका उपयोग कर सकें… वैसे ही नमस्कार महामंत्र की महत्ता को समझा जाए तो प्रारंभ में हम ईश्वर को साकार रूप में पूजते हैं… चाहे श्री राम , श्री कृष्ण , श्री महावीर स्वामी , श्री गुरु नानक देव, महात्मा गौतम बुद्ध , या पैगंबर मोहम्मद के रूप में….
फिर जब हम ध्यान की अवस्था में और आगे बढ़ते हैं तो किसी एक शक्ति को साधना प्रारंभ करते हैं.. साधना के दौरान वह भी एक निराकार रूप हो जाता है… अंतत हम अरिहंत की ओर कदम बढ़ाते हैं…. जिसमें हम
“केवल्य ज्ञान ” को प्राप्त करते हुए , सभी धर्मों के मूल मर्म को समझते हुए संसार को एक विचारधारा देते हैं…. जैसे भगवान श्री महावीर स्वामी ने दी… यह साकार स्वरूप है…
अतः कहां जा सकता है नवकार मंत्र नीव है या द्वार है प्रवेश करने का स्वयं की खोज में , और निकास द्वार भी है….
इसलिए यह महामंत्र विभिन्न मंत्रों में विशेष स्थान रखता है….
आज के समय में जहां हर कोई बस इसी मानसिकता से आगे बढ़ रहा है कि हम सबसे सर्वोत्तम कैसे बने.. परंतु यह भावना हमारे अंदर से समाप्त होती जा रही है कि हम हर सर्वोत्तम के साथ रहते हुए भी अपनी पहचान भी बनाएं रखें और सबके होकर भी रहे…
नमस्कार महामंत्र में यही विशेषता है.. जो हर उपलब्धि को साधने के लिए चाहे वह भौतिक सुख हो या आत्मिक उन्नति दोनों के लिए ही मार्ग प्रशस्त करता है… अपनी अपनी रूचि एवं योग्यता के अनुसार…
इस यात्रा में और आगे बढ़े तो यह भी पता चलता है कि इस मंत्र को एक धार्मिक जामा ना भी दिया जाए और उसे केवल मंत्र भी कहा जाए तो भी इसकी महत्ता कहीं कम नहीं होती…
क्योंकि मंत्र होता है अक्षरों की तरंग जो क्रम विन्यास के आधार पर एक विशिष्ट ध्वनि प्रकट करती है ..जो ध्वनि ब्रह्मांड में कंपित होती है… और एक विशेष प्रकार की शक्ति का वातावरण हमारे आसपास बनाती है… जिसे हम विज्ञान की भाषा में चुंबकीय क्षेत्र भी कह सकते हैं… या “औरा”भी कह सकते हैं…
जो न केवल सिर्फ शारीरिक शक्ति देता है बल्कि हमारे अंदर पसरी हुई मानसिक और आत्मिक निर्बलता को सफलता की तरफ प्रशस्त करता है…
अब कहूंगी हमारी यात्रा जहां से प्रारंभ हुई थी उसके निष्कर्ष तक पहुंचती नजर आ गई है… अर्थात अक्षरों के सत प्रयोग से जैस ओम, ह्री ,श्रीं , से हम अपने भौतिक मनोरथ की पूर्ति तो कर ही सकते हैं साथ ही चेतना के उद्घवरोहण तक भी पहुंच सकते हैं ..
इस महामंत्र के निरंतर जाप से हम अपने आत्मबल को मजबूत बना सकते हैं…
जीवन में सब कुछ छूट जाए परंतु यदि व्यक्ति का आत्म बल मजबूत है तो वह स्वयं को तो सर्वोत्तम बनाता ही है अपितु अपने आसपास के वातावरण को भी श्रेष्ठता की ओर ले जाता है…
इस प्रकार नवकार तो केवल मंत्र न मानते हुए यह माना जाए जो ईश्वर तक नहीं बल्कि ईश्वर के साथ चलते हुए भवसागर भी पार करा देता है…
जो गंगा के जल से पवित्र है.. एवं सागर में मिलकर उसकी महत्वता को बढ़ा देता है.. जैसे नमक और शर्करा जिस भी वस्तु में मिला दी जाए उस भोजन को विशिष्ट बना देते हैं… स्वयं की पहचान भी बनाए रखते हैं. ..
जैसे कमल कीचड़ में खिल कर सरोवर की भी शोभा बढ़ा देता है…
वैसे ही यह महामंत्र भी किसी भी साधना या उपासना की शोभा को मंगलकारी बना देता है…
आओ सब मिलकर गाए…
“मंत्र णमोकार हमें प्राणों से प्यारा, यह वह जहाज जिसने लाखो को तारा , मंत्र णमोकार हमें प्राणों से प्यारा….
(लेखिका पेशे से इंजीनियर है )