मप्र का अनोखा शासन: पेशी के एक दिन पहले ही नजूल कोर्ट ने सुना दिया फेसला
– मध्यप्रदेश में राज्स्व विभाग में सबसे अधिक घोटाले और तानाशाही
– शिकायत के बाद राजस्व अमले ने द्धेशता पूर्ण रवैये से खारिज किया मामला
– नजूल अधिकारी ने ही दिया मूल प्रकरण का फैसला और उसी ने अपील का फेसला सुनाया
मध्यप्रदेश। यह अपने आप में अनोख ही मामला है जिसमें पेशी से पहले ही कोई कोर्ट अपना फैसला कर दिया और जब परिवादी पेशी पर कोर्ट में हाजिर होने आय तो उसे फैसले की कॉपी थमा कर चलता कर दिया जाए। मतलब साफ है कि परिवादी का पक्ष सुना बिना,सक्ष्यों को दखने,जांचें बिना,दलीलें सुना बिना ही कोर्ट ने यह तय कर लिया कि फैसला क्या देना है और कर भी दिया। यह गजब मप्र की राजधानी के सिर्फ 35 किलोमीटर दूर के जिले सीहोर की नजूल कोर्ट ने किया है।
मामला यूं बताया जाता है आवेदक अशोक माथुर निवासी कस्बा सीहोर ने बताया कि उन्होंने अपने मकान के सीमांकन का आवेदन लोक सेवा गयारंटी के तहत किया था। जिसकी समय सीमा 15 जुलाई को समाप्त होने वाली थी। समय सीमा की अंतिम तिथि पर जब आवेदक शिकायत करने कलेक्टोरेट पहुंचा। जहां प्रभारी मंत्री और कलेक्टर के सामने एडीएम विनोद चतुर्वेदी ने आवेदक को कहा कि समय सीमा खत्म होने से कोई फर्क नहीं पड़ता जब हमें मामले का निराकरण करना होगा तब ही करेंगे। इस पर आवेदक ने पूछा कि मेरा सीमांकन कब तक होगा तो एडीएम ने साफ कह दिया कि इस तरह तो नहीं होगा। मामले का निराकरण नहीं होने पर 17 जुलाई को आवेदक ने कलेक्टर कोर्ट में मामले की अपील कर दी। जिसमें अपील अधिकारी ही को नजूल अधिकारी बनाया गया। अपील प्रकरण को लेकर आवेदक के मोबाइल पर संदेश भेजा गया जिसमें आवेदन स्वीकृत करने और अपील सुनवाई की पहली पेशी की तारीख 29 जुलाई दी गई थी। आवेदक जब 29 जुलाई को नजूल कोर्ट पहुंचे तो मामले में फेसला पहले ही सुना दिया गया था। जिसकी कॉपी उन्हें दी गई। सबसे बड़ी बात यह की पेशी की तारिख 29 जुलाई निश्चित की गई थी। और कोर्ट ने फैसला एक दिन पहले 28 जुलाई को ही सुना दिया गया था। पेशी तारीख से एक दिन पहले किए फैसले में अपीलीय प्रकरण को निरस्त कर दिया।
-क्या है पूरा मामला
28 मई को श्री माथुर ने अपने मकान का सीमांकन करने के लिए आवेदन दिया था। जिसके निराकरण की अंतिम तिथि 15 जुलाई थी। मामले में आवेदक से कोई चर्चा नहीं की गई। जबकि आवेदक लगातार सीमांकन किए जाने को लेकर कार्यालय के चक्कर लगाता रहा। जब इसकी शिकायत प्रभारी मंत्री से की गई तो उन्हें धमकी दी जाने लगी। जब 15 जुलाई तक निराकरण नहीं हुआ तो 17 जुलाई को मामले में अपील की गई। इस बीच मामले के निराकरण को लेकर दस्तावेज तैयार किए गए। जिनमें आरआई रिपोर्ट में तारिख तक नहीं डाली गई। आनन-फानन में बिना रकबा बनारी के खसरे में दर्ज क्षेत्रफल और नक्शे में दर्ज क्षेत्रफल में अंतर होने की बात कही गई। हैं। जबकि आवेदक के पास 1972 की नक्शे व अन्य दस्तावेजों की सर्टीफाईड कॉपी है। जिसमें कोई अंतर नहीं है। वहीं अपील 17 जुलाई को की गई थी जिसके नौ दिन बाद 26 जुलाई को मूल प्रकरण का निराकरण किया गया। साथ ही 28 को अपील का निराकरण किया गया। इस सब में खास बात यह है कि मूल प्रकरण और अपील का निराकरण एक ही अधिकारी ने किया है।
— नामांतरण आवेदन देने वाले को ही जेल में डालने की धमकी
ऐसा ही एक मामला श्यामपुर तहसील में भी देखने को मिला। जिसमें पिछले सात माह से तहसीलदार नामंतरण नहीं कर रहे हैं। जमीन नामांतरण के लिए लिखित में देने के बाद भी नामांतरण नहींं हुआ हैै। आवेदक सात माह से नामांतरण के लिए तहसील के चक्कर लगा रहे हैै। आवेदक का यह भी कहना है कि जमीन नामांतरण कराने की मांग पर मुझे जेल में डालने के लिए तहसीलदार सहाब ने पुलिस बल तक बुला लिया था। यह पीडा क्षेत्र के कादराबाद के किसान राजेंद्र सिंह पुत्र बद्र्री ने शनिवार को क्षेत्र की लोगों की समस्या सुनने के लिए आए पूर्व मुख्यमंत्री दिगिवजय सिंह के समक्ष तहसीलदार के समक्ष बयां की। इस दौरान किसान की समस्या सुुनकर श्री सिंह ने मौके पर उपस्थित एसडीएम व तहसीलदार को पीडित किसान की समस्या का शीघ्र समाधान करने की बात कही।
-जांच करवाता हूं
मैं मामलों में मूल प्रकरणों के दस्तावेज मंगवाकर निरीक्षण करता हूं। उसके बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
अजय गुप्ता, कलेक्टर सीहोर