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सुन..! मानसून : अब के बरस तू झूम के आना – मजदूर अब फिर किसान बनेंगे

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]

 

 

मानसून सुनते ही मन मचल-मचल जाता है। बारिश का सीजन मेरा फेवरेट है । जब जब गर्मी का पारा 45 -47 तक जाता है तो यह सोच कर तपिश बरदाश्त कर लेता हूं कि ” तप ले सूरज कका ओकर बाद तो अच्छा बारिश आए ले तहूं नइ रोक सकस”।

असल मे खेती से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हर नही तो अधिकतर इंसान चाहे कितनी भी तकलीफ सहना हो,हर बरस , मानसून का स्वागत करने को आतुर रहता है | पीने के पानी की बरसात पर निर्भर और लू,-लपट और गर्मी झेलता हर अमीर गरीब, शहरी, ग्रामीण को अब मानसून आने का इंतज़ार रहने लगा है | भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत हद तक मानसून- निर्भर कृषि पर आधारित है । किसान का मन मयूर को भी तो इसी बारिश मे ही पंख लगता है उसे इसी का साल भर इंतजार रहता है | हालांकि आधुनिक बहुफसलीय खेती, हाथ मे पानी और मानसून के प्रति इस निर्भरता मे थोड़ी कमी से मानसून की बेसब्री या चिंता जरूर कम हुआ हो लेकिन ” बिन मानसून सब सून ” | चाहे नदिया, कुआं, बावली, ताल -तलैया .बोर -बोरिंग, बांध -नहर हो जब तक सीजन मे बारिश नही होगी ,इनकी क्या बिसात । धरती की गोद खेती की कोख, ये बरसात मानो जल नही कृपा बरसाती है | हां ! कभी-कभी कुसंतुलन प्रकोप और जलजले के रूप मे भी यह आता है पर ब्रम्हपुत्र का हर साल बहने वाला गांव भी तो बारिश का इंतजार करता है | क्योंकि बरबाद होने के खतरों के बाद भी ,बाढ़ के बाद मिलने वाले कॉप (बाढ़ के साथ आकर खेतों मे जमने वाली मिट्टी ) पर होने वाली अच्छी फसल, बाढ़ के दर्द को मिटा देता है ।

ऐ बारिश जरा जम के बरस, मेरी मिट्टी की झोपड़ी , घास की छत तेरे नेमत की खुशबू से महका..। 
पपीहा की प्यास, दिलबर की आस !
बरखा रानी, जरा जम के बरसो, मेरा दिलबर जा न पाए …झूम कर बरसो । शायरों की शायरी, कवि की कल्पना, किसान की पूजा।
कागज की कश्ती, बारिश का पानी । गली का रेला वो नुक्कड़ का ठेला । मजा ही कुछ और है…

पर, यह साल कुछ अलग है । आना और तुम भी देखना । यह साल हम सूखे से कम महामारी से ज्यादा जल रहे हैं । सड़क पर छालों से छला पांव पांव चलता मजदूर अब अपने गांव और अपने खेत पर ही मिलेंगे । उनके टूटे फूटे घरौंदों में शहर से बड़ी उम्मीद से लौटे परिंदे कुछ ज्यादा ही होंगे । उनके घोंसले उजड़ने मत देना , अपने आंचल से बूंदें लुटाकर वहीं रुक जाने को हौसला देना। सूरज का ताप जिसे मिटा न सका , उस महामारी के शाप को सैलाब बन कर तुम कहीं दूर बहा ले जाना । महीनों से घरों में कैद होकर बस हम भी तेरा ही रस्ता देख रहे हैं ।
मानसूनी बारिश की बूंदों को धरती पर नाचते ,चेहरों पर चुंबन करते ,तन-मन को भिगोते ,दीवारों पर बहे रेलों की कहानियां बनाते ,पत्थरों के साथ मस्ती करते नदियों और झरनों में कुलाचें भरते हम फिर देखेंगे ।

मानसून क्या है यह हर आदमी नही जानता। मानसून का आगमन मतलब अक्सर बारिश की शुरूआत मानी जाती है । पर हर बारिश मतलब मानसून नही होता। बारिश के अलग-अलग कारणों मे मानसून भी एक बड़ा कारक है । तकनीकी रूप से मानसून और बारिश मे फर्क होता है । मैं मानसून के उस विषय पर डिटेल मे नही जाना चाहूंगा पर इतना बता दूं कि मानसून आने का मतलब बारिश आ रहा है यह समझना ठीक नही है।

दरअसल गर्मी के तपिश के बाद दक्षिण मे अरब सागर से जो नम हवा पश्चिम की ओर बहती है वह जहां जहां वायुमंडल मे उपस्थित नमी जो कि वहां के भू भाग की प्रकृति के कारण व विद्यमान नमी से टकराने के बाद उसी स्तर की बारिश की स्थिति पैदा करता है । जंगल, नदी पहाड़ हो तो ज्यादा, मैदानी हो तो कम ये हवाएं ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है, वह हवाएं शुष्क होते जाती हैं और बारिश बनाने के गुण मे कमी आने लगती है । छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति दक्षिण तटीय राज्यों से सटी होने के कारण यहां मानसून की हवाओं से पैदा हुई बारिश का फायदा और उस पर यहां की कृषि व्यवस्था ज्यादा निर्भर है | मानसूनी हवाएं जब यहां से चली जाती हैं तो दूसरी बरसात यहां लोकल नमी व दूसरे कारण से आगे के सात -आठ महीनों तक घूम फिर कर बरसते रहती हैं।

मेरे लिए मानसून का मतलब मानसिंग था। बड़े भैया मजाक मे मानसून को मानसिंग कह देते थे। 80 के दशक मे, घर की खेती देखने वाले मेरे भैया हमेशा इस मानसिंग का इंतजार करते तो हमारे बालमन को इसकी खेती के लिए कीमत या महत्व का अंदाजा नही था। हमें तो बारिश के आना यानि नई कक्षा मे प्रवेश, स्कूल खुलने के दिन, नई किताबों और बस्ते की खूशबू, नये ड्रेस, गली मे छानी लहुटाने वालों के द्वारा फेके खपरैल के तुकड़े। पैरा-भूंसा धरने के दिन और उस पर कूद -कूद कर खेलने के मजे , मे गली के रेले, पार बनाना, नाली, पत्ते का पोंगी, पुल, नाव बना कर खेलने के दिन से होता था ।

मौसम विभाग ने इस साल एक जून को इस मानसून के केरल की मिट्टी छूने का अनुमान लगाया था । पर एक एजेंसी स्काइमेट ने कल 30 मई को ही इसके पहुच जाने का संदेशा भेज दिया है । पर इसकी आधिकारिक घोषणा तो भारत सरकार ही करेगी ।

आमतौर पर मानसून छत्तीसगढ़ में बस्तर के रास्ते प्रवेश करता है फिर आगे बालाघाट के रास्ते मप्र को भिगोता है ।वहीं से राजधानी भोपाल में अपनी खुशबू बिखेरते मालवा के इंदौर फिर राजस्थान व गुजरात की ओर यही सिस्टम बढ़ता रहा है | वहीं अरब सागर से दूसरा बना सिस्टम भी कवर देते हुए मालवा को दूसरी खेप मे तरबतर करता है | इन दोनों राज्यों में केरल से चले मानसून के दस्तक से पहले हमेशा एक सिस्टम जरूर मुंबई से चलकर कभी-कभी महाराष्ट्र -गुजरात के बीच खंडवा से या विदर्भ के नागपुर से सीधे आता रहा है , लेकिन वह प्रीमानसून या बंबई बरसा होता है | जो अरब सागर मे नमी व तूफान से आता है । पिछले साल केरल से चला सिस्टम चंद्रपुर के पास आकर कमजोर हो गया तब भोपाल में गुजरात तट से आए मेहमान मानसून ने हम पर किरपा बरसाई थी ।
बहरहाल जो भी हो..

मानसून बस आजा – अब की बार जरा जम के बरसना !
जरा ठहरना..बरखा बैरन , इतना मत बरसना कि मेरा दिलबर आ न पाए
और जब वह आ जाए , तुम
इतना बरसना .. कि वह वापस न जा पाए..!

 

   आज बस इतना ही..

 

 

 

  ( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )

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