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संकल्प का दीया ! बनाम लक्ष्मण रेखा

 

                                  [mkd_highlight background_color=”” color=”red”] होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]

 

 

दंडकारण्य के पर्णकुटी में खींची गई लक्ष्मण रेखा कोई मायावी रेखा नही थी । संकल्प की आभा थी । नासमझी में कोई इसे तंत्र कह देता है-कोई मंत्र कहता है, कोई कुछ और ।
जब आप कोई दृढ़ संकल्प लेते हैं तो इस संकल्प की एक आभा मंडल यानि AURA बन जाती है । जो आपके उस संकल्प को पूरा करने के लिए रक्षा कवच का काम करती है । ठान लेना ,कि यह होकर रहेगा । मैं इसे कर दिखाऊंगा । लक्ष्मण क्यों आप भी लीजिये कोई तगड़ा संकल्प .. न पूरा हो तो झुठलाना मत, अपने अंदर झांकना कहीं ,कोई कमी रह गई होगी ।
‘संकल्प’ चाहे दीया जला कर करो या मोमबत्ती या फिर टार्च..!

जब से घोषणा हुई है, राजदरबार में मंगलगान और नृत्य हो रहे हैं ..

 

“अभिनन्दन अभिनंदन
स्वागत है अभिनंदन ।
हे लंकेश्वर हे राजेश्वर
हे दशानन अभिनन्दन..!!”

 

शनिवार प्रसारित रामायण के इस एपिसोड में लंकाधीश महाराज रावण की पहली एंट्री हुई । रावण ,जिसे क्रूर पात्र करार दिया गया , कुछ लोग कहते हैं वैसा नही था ,जैसा दिखाया जाता है । वह तो औरतों की इज्ज़त करता था । परम शिवभक्त , न्यायप्रिय था । सीता को ले जाकर पुष्पवाटिका में सुरक्षित रखा शक्तिमान राज होने के बाद भी कभी उसे छुआ तक नही ।पर, ‘असत्य पर सत्य की जीत’ का प्रतीक रामायण में रावण का मैं समर्थक नही हो सकता । आप भी नही होंगे । जब भी चुनाव करना होगा मैं राम का ही करूंगा । क्रोध और बदले की परिस्थितियां ऐसी बनती गईं कि रावण का क्रूर से क्रूरतम रूप दिखाया गया ।
कौन सा बदला .. गांडीव धनुष यज्ञ का सूर्पनखा का लक्ष्मण के प्रति पुरुष मोह में मिले अपनी बहन के अपमान का । राम के चौदह बरस शायद दंडकारण्य में ही निकल जाते अगर खर-दूषण के राज्य में सूर्पनखा का दिल बनवासी लक्ष्मण पर नही टिकता । दोष किसको देंगे ..?
पूरा रामायण महिला पात्रों के इर्दगिर्द घटित हो गया । सीता के संस्कार, कैकेयी का हठ, सबरी का इंतज़ार सूर्पनखा का स्वार्थी औऱ जिद्दी प्रेम ।
औरत के इन्ही रूपों ने पुरुष पात्रों को बड़े निर्णय लेने पर विवश किया ।
आज रावण जैसे ज्ञानी राजपुरुष अपनी बहन सूर्पनखा के अपमान से बदले की आग में में जल उठा ।
अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए जनमानस और राजा को भड़का दिया और लंकाधीश दशानन भी रामायण के महाक्रूर पात्र बन गए । उस हिसाब से सूर्पनखा भी रामायण का अहम चरित्र है । बड़े भाई राम की तो पत्नी बनवास में साथ थी ,पर अंततः सेवक, सुंदर भ्राता लक्ष्मण उसकी नजरों में उतर गए । राज्य के हित और भाई की सेवा मे स्व-पत्नि को घर छोड़ आए,परम तपस्वी, गुणी, योद्धा- सहृदय ,मनमोहक लक्ष्मण के मोह में ये सुंदर,चुड़ैल सी दिखती,सूप जैसे नाखून और बड़े नाक वाली राक्षसी अपने भाई राजा रावण से कोई बड़ा कांड करवाएगी । भाई ..मरवा दिया..!

भोपाल के घनी मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र अशोकगार्डन से अभिषेक शर्मा का कल शाम फ़ोन आया । मेरे घर के सामने ही कन्टोन्मेंट का बेरियर लगा दिया है । सर ,अब हम कहीं नही निकल सकते ,मेडिकल भी नही। घर के लोग डर गए हैं ,एकाध सैनेटाइज़र का जुगाड़ करवा दो । मैंने पूछा -तुम कौन सा वहां जाते हो जो डर रहे हो ..!
उसका जवाब काबिले गौर था – अरे वसर “कोरोना कौन सा मंदिर-मस्ज़िद हिन्दू-मुस्लिम देखता है ,जमातियों की बस और एम्बुलैंस घर के सामने से ही जाती हैं ।”
शहर में आज तापमान थोड़ा बढ़ गया है । 20 मार्च को सीएम हाउस के पत्रकार सम्मेलन से लौटने के बाद में किसी भीड़ या सार्वजनिक जगह नही गया । उस हिसाब से कल 3 अप्रैल को ज़ुमे को मेरे सेल्फ क्वेरेंटाइन का चौदहवां रोजा ख़तम हो गया । पर सरकारी लोग 9 अप्रैल का पर्चा चिपका कर चले गए हैं । जब से कमरे में बंद हूं , रोज तापमान पर नजर रहता है । भगवान जाने ! सबूत तो नही लेकिन गर्मी से कोरोना भागने की अफवाह रोज ही आ जाते हैं । काश ! ये सच हो..। सप्ताह भर पहले हुए बारिश से आए ठंड और ऊपर से कोरोना की कंपकपी से मुझे धो साफ कर रख चुके कंबल निकालना पड़ गया था । अब टेम्परेचर 36 डिग्री चल रहा है, बालकनी के बाहर खिले सुर्ख नारंगी टेसू के साथ उसके नुकीले कांटेदार फल भी दिखने लगे हैं । लोगों के घरों से विंडो कूलर की आवाजें आने लगी हैं । बिस्तर का बोझ बना मेरा कंबल आज मुझे ही साफ करना होगा । ऊपर से वाशिंग मशीन मेरे क्वेरेंटाइन वाले कमरे में जो फंसा है । उसे एक्वा स्टोर मोड पर डाल पहले पानी भर लेता हूं ।

पानी से याद आया । शुक्र है ! इस विपदा और खौफ की घड़ी में बिजली पानी की सप्लाई घरों-घर निर्बाध हो रही है । हमे अपने घरों में सुरक्षित रखने सरकारी लोग दिन रात निकलकर काम कर रहे हैं । हमें बचाने के चक्कर मे कहीं डॉक्टर कहीं नर्स और तो और , अपने भोपाल में तो एक आईएएस जैसा बड़ा सरकारी आदमी भी इस मुए कोरोना का शिकार हो गया । ये विपदा सरकार ने थोड़े ही बुलाई है -“आ कोरोना भारत आ”..! पर सेवा और बचाव में तो अपनी पूरी सरकार जब्बर लगी हुई है । अपन को घर मे रह के उनका साथ तो देना ही चाहिए भई..! एक सन्डे थाली बजाई थी -अब के सन्डे दीया जलाएंगे । वाशिंग मशीन में अभी पानी भरा ही नही था कि  अपने फहीम भाई का फ़ोन आ गया । आजकल बहुत लिख रहे हो ,जमातियों पर भी लिखो.., फालतू का हल्ला मचा रहे हैं लोग..! वैसे अच्छा लिख रहे हो ।

हम थोड़े सहम गए थे लेकिन अपनी तारीफ़ सुन थोड़ा सम्हल कर बताया, भाई जान कल दीये जलाने की तैयारी कर रहे थे । कई लोग सरकार की उरेरी काट रहे हैं । समझ मे नही आ रहा किसकी सुनें ..
उसने छूटते ही कहा – नौ दीये नौ बजे नौ मिनट । हम कुल जमा चार लोगहैं घर मे । उस हिसाब से मेरे घर भी छत्तीस दिए जलेंगे । देखता हूं , पिछली दो दीवालियों का दिया जमा होगा तो मेरे आंगन और छत पर जरूर जलेंगे ।
फहीम मियां..! तुम तो मुझसे भी आगे निकल गए ।

अलार्म बज गया । वाशिंग मशीन में पानी फुल भर चुका था । फोन काटने से पहले उसे इतना ही कह पाया – फहीम मिया, कोरोना के चलते इस होली , आप ,हम और रिज़वान भाई हमारे घर नही आ पाए । चलो, इस महामारी से निपट लें । अपन ईद पर जरूर बैठेंगे तब जमकर सियासत और जमातों की चर्चा करेंगे..

मैंने एक प्रवचन की रिकार्डिंग में सुना – ‘नाभादास’ ने अपने संस्मरणों में कहीं लिखा है कि संत तुलसीदास को जब एक दफा कृष्ण के मंदिर में ले जाया गया तब उसने बंशी हाथ मे होने के कारण कृष्ण की मूर्ति को प्रणाम करने से इंकार कर दिया । उसने कहा कि जिसके हाथ मे धनुष बाण नही वह मेरे आराध्य नही । उनके प्रिय तो धनुरधारी ही होंगे, मुरली बजाने वाले के सामने मैं न झुक पाऊंगा ।

तुलसीदास की एक दृष्टि ,सोच, विश्वास, आस्था बन गई, यही दृष्टि कई बार हमारे कई दूसरे कामों किसी सर्वजन हिताय के उद्देश्यों में भी बाधक बन जाती है ।एक निश्चित विश्वास यानि पक्षपात । हिंदू की दृष्टि-मुसलमान की दृष्टि- जैन की दृष्टि–ये सब दृष्टियां हैं, देखने का चश्मा । हमने पहले ही तय कर लिया कि इस चश्मे से देखेंगे परमात्मा को। हमने पहले ही पक्षपात बना लिए। अब परमात्मा को अपने चौखटों से देखते और पूजते हैं । शायद ही दिखें । क्योंकि वह किसी मंदिर ,मस्जिद और चर्च के चौखट में नहीं आता। वह निराकार है- हमारी दृष्टि का आकार है। वह निःशब्द है हमारी दृष्टि हमारे ज्ञान का हिस्सा है।

दृष्टि से मुष्टि नहिं आवै, नाम निरंजन वाको।

लक्ष्मण ,राम के न केवल भ्राता थे बल्कि उनके सुरक्षा के पहरेदार थे । उसे विश्वास था बन के चौदह बरस महज यूं ही कट जाएंगे।बड़े भैया राम और भाभी की सुरक्षा का जिम्मा खुद पर ले अपने दो दिन पहले की ब्याहता को मां की सेवा में छोड़ आये थे ।

संभव है , रविवार रामायण के अगले एपिसोड में लक्ष्मण के उसी रक्षा के संकल्प के आभा मंडल से ओतप्रोत विस्वास से खींची लक्ष्मण रेखा की लीला आप देखें …

कोरोना तो भैया ,बड़ा ही जालिम राक्षस है ! लगता है रविवार को दीये जलाना ही पड़ेगा ..

आज बस इतना ही…

 

                                                                                                                                           (  लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है   ) 

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