मजदूर दिवस विशेष : सबसे बड़ा भूख का रोग
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेन्द्र देशमुख[/mkd_highlight]
13 अप्रैल को जैसलमेर से निकला सुमेर सिंह 28 अप्रैल को एक राज्य की सीमा में पकड़ लिया गया । चार बच्चे और पत्नि सोमवती के साथ वह पिछले पंद्रह दिनों में 400 किमी पैदल चला । सबसे बड़ी बेटी ग्यारह साल की नेहा ने अपने छोटे भाई 11 महीने के दीपक को सर पर रखी टोकरी पर बिठा रखा था , उससे छोटी नौ साल की मुक्ता ने अपने से दो साल छोटी बहन पायल को रस्सी के सहारे अपने शरीर से बांध लिया था ।
ये बच्चे किसी पर बोझ नही बने , और मीलों ,जंगल नदिया पहाड़ रेगिस्तान पथरीली सड़क और वीरान बियाबान में भी चलते जा रहे थे । क्योंकि बनारस के पास उनका गांव अभी भी सैंकड़ो मील दूर था । मां बाप के सिर खाली नही थे , कुछ कपड़े बिस्तर और खाने का बमुश्किल जरूरी सामान । क्यों भाग रहे थे गांव की ओर ,महज कुछ दिनों, महीनों की तो और बात थी । फिर जैसलमेर में जहां वह रह रहे थे वहां कोरोना रोग का डर भी नही था । उल्टे मीलों के सफर और रास्ते तो बीमारों से भरा हो सकता था । किसी ठीहे, किसी पड़ाव, किसी भंडारे, किसी भीड़ की कतार में कभी भी ये कोरोना संक्रमित हो सकते थे । और तो और छोटे बच्चों के साथ इतना लंबा पैदल सफर ,उनकी जान कभी भी जा सकती थी । पूछने पर सुमेर सिंह कहता है -जिसे भूख रोज मारती हो उसे ये सब मौतें छू नही सकतीं ।
हमारा सबसे बड़ा रोग तो भूख है साहब..!
बात पते की है ।
भूख उसके लिए सबसे बड़ा रोग था तो उसे अब किसी रोग का डर ही नही बचा था । पर इस रोग के बाद भी क्यों चल पड़े थे अपने गांव की ओर यह वह नही बता पाता । बस इतना कहता है –
“वहां सब अपने हैं..!”
यही कहानी आज देश भर के हर मजदूर की कहानी है ,जिसे बस किसी तरह लौटना है ,चाहे रास्तों में दम घुट जाए ,जान चली जाय ।
उसने सच कहा भूख सबसे बड़ा रोग है । गरीब मजदूर श्रमिक की पेट की क्षुधा शांत हो जाय तो वह तरक्की देखेगा मंदिर देखेगा- मस्जिद देखेगा ईश्वर देखेगा- अल्लाह देखेगा । हम उसे नाहक चमचमाती सड़कें दिखा रहे ,रेडियो ,टेलीविजन, मोबाइल और उस पर दुनिया भर के tiktok जैसे सपने दिखा रहे ।
सुमेर सिंह जैसे मजदूर को ये चमचमाती सड़कें , बच्चों के नन्हे कदमों पर जिंदगी के बोझ , तरक्की की गाड़ियां ,निकलतीं गगनचुम्बी इमारतें सब बेमानी लगते थे । यह सब आजउसके कोई काम नही आने थे । आपस मे बंधे दो बच्चों के डोरी के अंतिम छोर को मां ने अपने कमर से बांध लिया था ,इसलिए कि बच्चे चलते चलते थक कर कहीं गिर न जाएं ..
क्या भूख से बड़ा कोई रोग है..?
जैन तीर्थंकर महावीर चालीस हजार मुनियों के साथ प्रवास करते थे । भगवान बुद्ध तो पचास हजार भिक्षुओं को साथ लेकर प्रवास करते । कभी किसी गांव नगर या अंचल में महीनों भी विश्राम करते । तब क्या ये मुनिगण, भिक्षुओं को भोजन नही मिलता होगा । क्या उन्हें इन प्रवासों में भूखा रहना पड़ता ।
नही भारत देश सदियों से सम्पन्न था । यह धरती सोने की चिड़िया यूं ही नही कहलाती थी । यह भूमि धर्म की भूमि थी । यहां के लोग आज से ज्यादा उदार और सेवा भाव रखने वाले थे ।
ये आज जो तरक्की ,विकास के दावे हैं वह केवल झूठे होंगे ,जब इतने लोगों का पेट गांव के गांव भर देते होंगे ।
क्या आज हम बुद्ध और महावीर के युग को आज से भी बेहतर नही कहेंगे , क्या हमारी तरक्की सच मे उस युग से अच्छी है, क्या हमारी चिकित्सकों पर झूठा गर्व नही है ,क्या हमारे शासकों के काम धोखे के नही रहे , क्या महामारी का इलाज इनके भरोसे छोड़ना ठीक है जो केवल एक रोग -“भूख के रोग” को नही मिटा सकती..।
आज बस इतना ही..!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )