मजदूर दिवस : आजादी के 73 साल बाद भी मजदूर रोटी,कपड़ा और मकान को तरस रहा
जोरावर सिंह
आज एक मई को देश में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है, लोग सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं भी दे रहे हैं, लेकिन देश में रहने वाले अधिकांश मजदूरों को पता ही नहीं है, कि आज मजदूर दिवस है। दिवस मनाने की हमारे देश में अब एक नई परंपरा सी बन गई है, इसी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है, कम से कम इसी बहाने मजदूरों पर आज चर्चा हो रही है, बुद्धजीवियों से लेकर लोगों द्वारा अपने अपने तरीके से मजदूरों पर बात रखी जा रही है, मगर विचारणीय पक्ष यह भी है कि देश में मजदूरों की हालत कैसी है, और क्यों है, इसमें सुधार क्यों नहीं हो पा रहे हैं। आजादी के 70 साल बाद भी मजदूर रोटी, कपड़ा और मकान को तरस रहा है।
भारत जैसे विशाल गणतंत्र में करीब 40 करोड गरीब मजदूर हैं, जो मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते है, कुछ मजदूर स्थानीय स्तर पर ही मजदूरी करते है, जब उन्हें स्थानीय स्तर पर मजदूरी नहीं या फिर मजदूरी के सही दाम नहीं मिलते हैं तो वह देश के अन्य प्रदेशों में मजदूरी करने के लिए जाते हैं, पहले यह मजदूर ही कहलाते थे, या फिर इतने चर्चा में नहीं थे, लेकिन जब 2020 में काेरोना संक्रमण फैला तो देश के महानगरों में काम करने वाले मजदूर जब वेबस होकर अपने गांव लौटे तो इन्हें प्रवासी कहा गया। अब देश में प्रवासी मजदूरों का भी एक वर्ग बन गया है। इस बार फिर कोरोना फैला और इन प्रवासी मजदूरों को एक बार फिर पलायन का दर्द झेलना पडा है।
— निर्माण में मजदूरों की भूमिका
देश में खदानों और खेत से लेकर गगन चुंबी इमारतें बनाना या फिर कारखानों अपनी जिंदगी खपाकर निर्माण कार्य को आगे बढाना इसमें मजदूरों की अहम भूमिका है, छोटे से गांव और कस्बे से लेकर बडे महानगरों की रफ्तार इन मजदूरों पर ही टिकी हुई है, बिना मजदूरों के विकास का रथ तो रूक ही जाता है, मानव जीवन के दैनिक कार्य भी थम जाते है, इसलिए मजदूरों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
— दूसरे शहरों में जाने की मजबूरी
देश में कोरोना काल में सबसे अिधक परेशानी मजदूरों को ही उठाना पडी है, जो रोजी रोटी की तलाश में अपने शहर से दूसरे शहर गए थे, उन्हें कोरोना के कारण से अपने गांव फिर लौटना पडा है और पलायन में उन्होंने कितना दर्द भोगा, वह किसी से छुपा नहीं है, अिधकांश मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों से ही दूसरे शहर में मजदूरी के लिए जाते है, इसके पीछे वजह है कि गांवों में उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिलती है, इसके साथ ही समय पर भी मजदूरी नहीं मिलती है। इस कारण से वह दूसरे शहरों में जाने के लिए विवश हो रहे हैं।
—मशीनी करण से हुआ नुकसान
हम 21 सदी में मजदूरों की बात कर रहे हैं, मशीनीकरण को दोष नहीं दे सकते है, यह समय की मांग है, मगर खेती में यंत्रीकरण के कारण से ग्रामीण स्तर पर खेतिहर मजदूर जिन्हें किसानों के यहां पर मजदूरी मिल जाती थी, पर अब नहीं मिल पा रही है। इस कारण से भी मजदूरों को अपने गांव से दूसरे महानगरों में मजदूरी के लिए जाना आना पड रहा है। दूसरी तरफ मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं कराए गए है, इस कारण से बेरोजगारी की समस्या भी उन्हें महानगरों में मजदूरी करने के लिए जाने को विवश कर रही है।
—नहीं हो पाए स्थापित
बीते साल जब कोरोना के दौरान मजदूरों की जो हालत हुई थी, उसके बाद सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोजगार दिलाने के लिए योजनाएं शुरू की, इसके तहत उन्हें लोन प्रदान कर वही छोटे छोटे रोजगार के लिए प्रेरित किया, लेकिन जिस हिसाब से मजदूर दुबारा से देश के महानगरों में फिर से पहुंचे थे, उससे तो यही लगता है कि या तो योजनाओं के कि्रयान्वयन में कहीं कमी रह गई या फिर मजदूर स्वरोजगार से जुड नहीं पाए, कुल मिलाकर नतीजा यही है कि मजदूर सिर्फ मजदूर ही रहा।
— मजदूरों की मुश्किलें
देश के मजदूरों की मुश्किल यह है कि अधिकांश मजदूर जो अपना गांव छोडकर शहर में मजदूरी करते है, उनके पास अपना स्वयं का घर नहीं है, ज्यादातर मजदूर किराए के मकानों में निवास कर रहे है, और बीते दो साल से कोरोना के कारण से िनर्माण कार्य भी सीिमत हो रहे है, इस कारण दिहाडी मजदूरों से लेकर छोटे छोटे कारखानों में जो मजदूर काम कर रहे हैं, उन्हें महीने भर का काम नहीं मिल पा रहा है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है।
—जिम्मेदारी किसकी….
बेरोजगारी के कारण से युवाओं को उनकी योग्यतानुसार काम नहीं मिल पा रहा है, दूसरी ओर कोरोना की मार के कारण से मजदूरी भी प्रभावित हो रही है, समय रहते मजदूरों की दशा सुधारने के लिए उचित प्रयास नहीं किये गए तो मजदूरों की हालात और खराब होगी, शहरों में होटल, ढाबों के बंद होने के कारण से इन होटलों और ढाबों पर काम करने वाले मजदूर भी बेरोजगार होकर अपने घर पर बैेठे हैं। यदि देश में कोरोना की वजह से लॉकडाउन और बढा तो मजदूरों की हालात और खराब होंगे।