जलियांवाला बाग हत्याकांड में दुनिया का सबसे छोटी उम्र का इंसान हुआ था शहीद
— इस हत्याकांड में 6 सप्ताह का बालक भी मारा गया,शहीदों के आकांडे अलग अलग कुल 1800 लोग शहीद हुए
— हत्याकांड को 100 साल हो गए,लोगों के जहन में यादें अब भी ताजा
— विश्व का सबसे बडा हत्याकांड
इनसाइड स्टोरी डेस्क। भारत के लिए यह गर्व और दुख दोनों की ही बात है कि उसका नाम दुनियां के सबसे छोटी उम्र के शहीद इंसान का देश होना इतिहास में दर्ज हैं,अब से ठीक एक सदी (100 साल) पहले आज ही के दिन 13 अप्रैल 1919 को हजारों शहीद लागों में एक 6 सप्ताह का बालक भी शमिला था,इसकी मॉ उसे आजादी के लिए लड़ रहे नेताओं का भाषण सुनाने लाई होगी,पर वो बालक तो अपनी मॉ के साथ शहीद होकर अमर हो गया।
हम याद कर रहें 13 अप्रैल 1919 को हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को,उन शहीदों को जिन्हें इलाज तक नहीं मिला और तडप तडप कर वो कुएं या मैदान में दुनियां को अलविदा कर गए,उनकी शहदत ने भारत में आजादी की वो अलख जलाई कि फिर अग्रेंजी हूकुमत को वापस भेज कर ही दम लिया । आजादी यूं ही नहीं मिल गई,कई शहीद हुए हैं।
—क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड
साल 1919 में भारत में आजादी के लिए हर प्रांत में क्रांति की आग सुलग रही थी। पंजाब में यह आग ज्यादा थी, यहां यूरोपिये लोगों को जनता ने मारना शुरू कर दिया था जिससे अग्रेंज बहुत गुस्से में थे। इसी दौरान बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए सभा का आयोजन किया गया था, इस सभा में क्रांति से जुडे नेता भाषण देने आने वाले थे। जलियांवाला बाग में हजारों की तदाद में लोग पहुंचे जिसमें महिलाएं और बच्चें भी शामिल थे। जबकि शहर में कर्फ्यू लगा। शहर में बेसाखी पर लगाने वाले मेले का भी आयोजन किया था,इसी मेले की भीड भी सभा सुनने पहुंच गई। नेता यहां पहुचें और क्रांतिकारी भाषण शुरू हुए, इसी दौरान ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया और बाग को चारों तरफ से घेर कर बिना कोई बात किए वहां मौजूद लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दी। लगभग दस मिनिट तक फायरिंग की गई जिसमें 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद कुएं में कूद गए, कुआं भी लाशों से भर गाया था। कई घायलों की मौत इसलिए हो गई कि शहर में कर्फ्यू लगा था तो उन्हें अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका।
— मौत को लेकर अलग अलग अकांडें
जलियांवाला बाग हत्याकांड में हुईं मौतों को लेकर अलग अलग अकांडें मौजूद हैं। एक जानकारी के अनुसार हत्याकांड में 400 से अधिक व्यक्ति मारे गए, और दो हजार से अधिक घायल हुए, जबकि अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची लगाई गई है। वहीं जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची लगी है। ब्रिटिश दस्तावेजो में 379 लोगों के शहीद और 200 लोगों के घायल होने की जानकारी दर्ज है। जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। दूसरी तरफ उस समय के लोगों के अनुसार हत्याकांड में एक हजार से अधिक लोग मारे गए और करीब दो हजार घायल हुए। बाद कई किताबो में 1300, 1500 और 1800 लोगों के शहीद होने की संख्या बताई गई है।
— ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर क्या हुआ…
जलियांवाला बाग हत्याकांड को अजाम देने के तत्काल बाद ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर आला अधिकरियों को टेलीग्राम से सूचना दी कि भारत के सैनिक उन पर हमले करने वाले थे इसलिए उन्होंने उन पर गोली चलाई और कई लोग मारे गए है, यह सूचना मिलने पर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर की प्रशांसा की और सभी इलाके में मार्शल लॉ लागू करने की अनुमति दे दी। बाद में जब इस हत्याकांड की खबर अन्य देशों तक पहुंची तो ब्रिटिश सम्राज्य की निंदा हुईं। दुनिया के अन्य देशों में दबाव में साल 1919 में ही कांड की जांच शुरू हुई। इसके लिए हंटर कमीशन का गठन किया गया। जांच के दौरान जब सभी सक्ष्य ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के खिलाफ समाने आने लगे तक जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने माना कि वो पहले से वहां गोली चलाने की मंशा के साथ पहुंचा था,वो साथ में दो तोप भी ले गया लेकिन जलियांवाला बाग मैदान का रास्ता सकरा होने से तोप वहां तक नहीं ले जाई गई। हंटर कमीशन के जांच प्रतिवेदन के बाद 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर भारत से वापस बुला गया और ब्रिगेडियर जनरल से कर्नल कर दिया। इसके अलावा उसको काली सूची में भी डाल दिया। इस हत्याकांड पर ब्रिटिश सरकार ने निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफ़ा लिया गया। 1927 में उसकी मौत हो गई।
-जलियांवाला बाग हत्याकांड बाद में क्या हुआ…
13 मार्च 1940 को क्रांतिकारी उधमसिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ ड्वायर की गोली मार कर हत्या कर दी। माइकल ओ ड्वायर जलियांवाला बाग हत्याकांड की प्रशांसा करने और सही ठहराने वाला अधिकारी था। 31 जुलाई 1940 को उधमसिंह को हत्या का दोषी पाते हुए फांसी दे दी गई । जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद 12 साल की उम्र में भगत सिंह कांतिकारी बन गए और उन्होंने पूरे देश में युवाओं को अजादी के आंदोलन में शामिल कर लिया। इस हत्याकांड के बाद भारतीय के मन से मौत का डर की खत्म हो गया, सबने सर पर कफन बांधकर अजादी की मसाल थाम ली थी।
-ब्रिटिश अब अफसोस जताते है..
13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड पर ब्रिटिश अब अफसोस जताते हैं। इस हत्यकांड के सालों बाद 1997 में महारानी एलिज़ाबेथ भारत आई थी। उन्होंने ने जलियांवाला बाग स्मारक पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी। उनके बाद साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी जलियांवाला बाग स्मारक आए थे और उन्होंने विजिटर्स बुक में इस घटना को ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना बताया है। हाल ही में लंदन में ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड पर बहेद असफोस जताया हैं।
अब क्या है यहां…
13 अप्रैल 1961 को यहां शहीदों की याद में बनाए गए स्मारक को देश को सौंपा गया। यहां अब आसपास की दिवारों पर गोलियों के निशान देखें जा सकते है। उस कुएं को भी देखा जा सकता जिसमें सेकेंडों लोग जान बचाने कूदें लेकिन शहीद हो गए।