जगजीत सिंह नाम आते ही जाने कितने दर्द एक साथ गुनगुनाने लगते..
-गजल गायक जगजीत सिंह साहब का जन्मदिन आज
(श्रवण मावई)
जगजीत सिंह साहब का नाम आते ही जाने कितने दर्द एक साथ गुनगुनाने लगते है। दर्द को अपनी आवाज देने वाले जगजीत साहब का आज 8 फरवरी को 78 वां जन्मदिवस है। झुकी सी झुकी सी नजर.., ..होठों से छुलों तुम…,तुमकों देखा तो ये.. जैसी गजलों को जगजीत साहब ने अमर कर दिया। वैसे तो दुनियां भर में ऐसे कई लोगा है जनकी रातें जगजीत साहब की आवाज के साथ ही गुजरती है पर उनका जन्मदिन है तो आज दिन में भी उनकी ही गजलों का दौर कई संगीत प्रेमियों की घर, कार और कार्यस्थल पर उनकी गजल को महसूस किया जा रहा है, उनकी गजलों को केवल सुना नहीं जा सकता,महसूस ही किया जा सकता है।
यूं तो जगजीत सिंह साहब को कौन नहीं जानता,उनके बारे में लिखना गैरमामूली काम है। ऐसा है जो उन पर लिखा नहीं गया। उनके जीवन के बारे वो सबकुछ लिखा जा चुका है जो वो बताते रहे। मैं बिलकुल भी कुछ अलग नहीं लिख रहा हूं, बस आप सबके और मेरे चाहते गायक को याद कर रहा हूं..तो बस आप भी पढकर जगजीत साहब को याद किजिए और गुनगनाते रहे उनकी मदहोश कर देने वाली गाजलों को…।
जगजीत साहब का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका। अपने उन दिनों की याद करते हुए वे कहते हैं, ”एक लड़की को चाहा था। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चैन टूटने या हवा निकालने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बाद मे यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। कुछ क्लास मे तो दो-दो साल गुज़ारे.” जालंधर में ही डीएवी कॉलेज के दिनों गर्ल्स कॉलेज के आसपास बहुत फटकते थे। एक बार अपनी चचेरी बहन की शादी में जमी महिला मंडली की बैठक में जाकर गीत गाने लगे थे। पूछे जाने पर कहते हैं कि सिंगर नहीं होते तो धोबी होते। पिता के इजाज़त के बग़ैर फ़िल्में देखना और टाकीज में गेट कीपर को घूंस देकर हॉल में घुसना आदत थी। जगजीत ने ग़ज़लों के शहंशाह मेहदी हसन के इलाज के लिए तीन लाख रुपए की मदद की।। उन दिनों मेहदी हसन साहब को पाकिस्तान की सरकार तक ने नज़रअंदाज़ कर रखा था।
जगजीत सिंह का जन्म 8 फ़रवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब (भारत) के रोपड़ ज़िले के दल्ला गांव का रहने वाला है। मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। 1967 में जगजीत सिंह की मुलाक़ात चित्रा से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।
जगजीत सिंह को सन 2003 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। फरवरी 2014 में आपके सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी किए गए। उनका निधन 10 अक्तुबर 2011 में ब्रैन् हमरेज की वजह से हो गया, लेकिन उनकी गायकी सदैव जिन्दा रहेगी।