पत्नियों का रामायण और महाभारत एक साथ देखना भारी पड़ रहा…
[mkd_highlight background_color=”” color=”red “]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]
आज रामायण के एपिसोड में श्री राम समुद्र देव को लंका जाने का रास्ता देने हेतु आग्रह करना चाहते हैं। रामेश्वरम के तट पर उनका आह्वान करते हुए उपवास पर बैठ जाते हैं। उधर लंका में वैदेही को यह बात पता चलते ही वह इसे अपने पति का पीड़ा जान स्वयं भी उपवास पर बैठ जाती हैं ।
रामायण देख रही मेरी पत्नी झट से कहती हैं , कितना प्रेम अनुराग और त्याग है पति के प्रति , लेकिन अंत मे सीता को मिला क्या..?
अग्नि परीक्षा…!
एक मित्र ने रामायण देखने के बाद कल अपनी पत्नी से कहा –
‘हे प्रिये शीतल जल पिला दो’
पत्नि : हे आर्य पुत्र स्वयं लेने की आदत डालो ,
शिरोमणी महाराज नरेन्द्र मोदी ने गृहवास दिया है वनवास नहीं !
उन्होंने बताया यार , पत्नियां का तो रामायण और महाभारत एक साथ देखना भारी पड़ रहा है । पता नही कौन सा डायलॉग उल्टा चिपका दे । लेकिन बच्चे बड़े संस्कारी बन रहे हैं ।
ज्यादातर बच्चों को लक्ष्मण और भरत बहुत प्रभावित कर रहे हैं । मैंने अपने किशोर अवस्था पुत्र से भी पूछा, उसका भी यही जवाब था ।
टीवी पर रामायण और महाभारत देख लेने से सभी लोग संस्कार ग्रहण करते तो यह भारत भूमि हज़ारों साल पहले संस्कारवान हो जाता । हमारे घरों में हजारों सालों से ये ग्रन्थ लाल कपड़ों में बंधा रखा है ।
कहते हैं बच्चे फ़िल्म देख कर बिगड़ते हैं ।
एक खास बात है , 90 के दशक में जब रामायण दूरदर्शन पर आया । उससे पहले जय संतोषी मां, जय बजरंग बली । जय श्री कृष्ण , बहुत सारे धार्मिक फिल्में आयीं । लोग देखते भी रहे । कुछ फिल्में चलीं कुछ को दर्शक भी नसीब नही हुए । रामायण के पिछले प्रसारण के बहुत मजेदार अनुभव ,लोग आज भी याद रखते हैं । सब के घरों में टेलिविजन नही होते थे । स्वेत श्याम ..ब्लैक एंड व्हाइट ..!
अब ये मत पूछिए ये क्या होता है । अधिकतर टीवी में रंगहीन चित्र आते थे । रंगीन टीवी तो बहुत नसीब और पैसे वालों के घर होते थे । सोशल डिस्टेंस खत्म होता लगता था । जिनके घर टेलीविजन थे । पूरा मुहल्ला उनसे भाईचारा रखता था । अपना टीवी उसके टीवी से बड़ा आ गया । भाईचारा बराबरी पर आ गया । पर गौर करने वाली एक बात । पिछली बार रामायण को टीवी पर देखने वाले पिताजी आज दादा जी हैं । बच्चे पिता जी हो गए हैं । वो अपने तीसरी पीढ़ी को ठोक पीट कर रामायण और महाभारत दिखा रहे हैं । क्यों..? क्योंकि अब बच्चे रामायण देख कर संस्कारी बनेंगे ..!
यह जरूरी नही ..! फर्क इतना है..एक गांव में दो हजार साल पहले बच्चे श्लोक पढ़ते थे उनके संस्कारी न बनने के अवसर कम प्रतिशत थे ।
आज ऐसे ही किसी गांव में बच्चे मोबाइल पर रैप और एक्शन रोमांस और रोमांच की फिल्में देखते हैं । उसके संस्कारी बनने के अवसर बहुत कम प्रतिशत में होंगे ।
रामायण जीने की कला सिखाता है । पहले रामायण देखते समय आज के दादाजी ने सवाल पूछने पर डांट कर चुप करा दिया था । चुप बैठ अभी रामायण देखने दे । वह दादा जी बन कर अपने पोते को आज भी चुप करा रहा है । पर, आज का बच्चा चुप नही रह सकता । वह पूछेगा रावण श्री राम की पत्नी को क्यों ले गया..,समुद्र अगर देवता है तो हमें डुबाता क्यों है..!
आज की पत्नी चुप नही रह सकती ।
वह पूछेगी ..पतिव्रता सीता को आखिर क्या मिला ,निरपराध देवी अहिल्या को किस बात की सजा मिली..
रजतपट पर चलचित्र से अपने बच्चों पर संस्कार की अपेक्षा रखना अपनी जिम्मेदारी को टालना है ।
है पितामह ,ये तात ..!
हे भ्राता ,हे भार्या ..!
अब की बार सवाल पूछने वाले अपने बच्चों को चुप मत कराना । जवाब तैयार रखना । अगर पिछले धरवाहिकों ,चरित्रों से से कुछ आपने जरा भी कुछ संस्कार सीखा हो..
यह भी सोचना कि आपको किस धारावाहिक और फ़िल्म ने बनाया और किसने बिगाड़ा ?
आज बच्चों का आइडियल चरित्र प्रभु राम के भ्राता लक्ष्मण है । क्या उनके संस्कार के लिए रामायण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं , और फिल्में उतने ही दोषी ..
अभी बाहर जाने के लिए जैसे ही मैंने गाड़ी स्टार्ट की तभी आकाशवाणी हुई – हे आर्यपुत्र तुम ने जिस दिशा की और प्रस्थान करने का विचार किया है उस मार्ग पर कुछ दूरी पर ही सजग प्रहरी अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित खड़े हैं ओर तुम्हारे पास कोई कवच भी नही है। कृप्या अपनी व्याकुलता को त्याग कर इस विकट परिस्थिति में संयम का परिचय दो ओर अपने गृह से प्रस्थान का विचार त्याग दो ।
आज बस इतना ही..!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )