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किसी नेता के दबाव में नहीं आने वाली कार्यशैली ही पहचान रही है इंदौर के नए कलेक्टर जाटव की

(कीर्ति राणा )

निर्वाचन आयोग के निर्देशों के मुताबिक तो कलेक्टर सहित लोकसभा निर्वाचन कार्य से जुडे किसी भी कर्मचारी के तबादले पर रोक लगा दी गई है। सरकार ने आयोग के आदेश का पालन करने के साथ ही 2004 बैच के लोकेश कुमार जाटव को लोकसभा निर्वाचन संपन्न कराने के उद्देश्य से पदस्थ किया है।
अभी वे अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और राज्य शासन में अपर सचिव विधि और विधायी कार्य( निर्वाचन) विभाग में पदस्थ थे। रात्रिकालीन बैठकों से परहेज़ करने वालेअधिकारियों में से एक लोकेश जाटव पहले मंडला, ढिंढोरी, नीमच, रायसेन, राजगढ़ जिले में कलेक्टर रहे हैं। इन जिलों के आमजन को उनकी वर्किंग स्टाइल पसंद रही है।
यह बात अलग है कि रायसेन जिले में पदस्थ रहते उनकी वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार से नहीं पटी तो हटना पड़ा। इसी तरह नीमच में पूर्वसांसद मीनाक्षी नटराजन से बैठक में विवाद के चलते कांग्रेस जनों ने प्रदर्शन किया था।स्थानीय नेताओं के प्रति उनकी आक्रामक शैली रहने का ही कारण हो कि संबंधित जिलों का आमजन उन्हें अपना कलेक्टर मानता रहा। शायद यही कारण रहा कि जब रायसेन में वन मंत्री शेजवार के विरोध के चलते जाटव को हटाया गया तो विरोधी गुट ने कलेक्टर के पक्ष में स्थानीय मीडिया में विज्ञापन देकर उनके तबादले का विरोध किया था।
इस सरकार को जितना समय निशांत बरवड़े को हटाने के लिए सोचना पड़ा उतनी ही तेजी से इंदौर कलेक्टर का नाम तय नहीं करने में भी लगा। यदि बरवड़े को सीएम फेमिली का प्रिय कहा जाता रहा तो लोकेश जाटव की पूर्व की पदस्थापनाओं का एमआरआई करने पर कांग्रेस नेता इसी तरह की रिपोर्ट पा सकते हैं। वे पारिवारिक स्नेह पात्र नहीं तो प्रिय अधिकारी इसलिए माने जाएंगे कि तमाम विवादों के कारण भले ही कहीं वे छह महीने, नौ महीने या डेढ़ साल ही रहे हों लेकिन सरकार ने उन्हें आदिवासी जिलों से लेकर शहरी जिलों में पदस्थ करने में उदारता दिखाई है।रायसेन जिले में जिस भी आयएएस को मौका दिया जाता है तो उस पर सीएम का खास होने का ठप्पा वल्लभ भवन की लॉबी लगा देती है। जाटव को अब तक राज्य के किसी महानगर स्तर के जिले में काम करने का मौका नहीं मिला था तो वह आदेश इस सरकार ने जारी कर दिया।खासकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के दबाव में काम नहीं करना उनकी पहचान रही है, किसी भी जिले का कलेक्टर स्थानीय नेताओं को तब ही नजरअंदाज कर सकता है जब भोपाल का वरदहस्त हो।यही कारण भी रहा कि वे किसी एक जिले में लंबी पारी नहीं खेल पाए, लेकिन नए जिले में पदस्थापना भी पाते रहे। इंदौर में यदि वे अपनी कार्यशैली से सरकार का मन बदलने में कामयाब हो जाते हैं तो यह उनकी प्रशासनिक दक्षता तो रहेगी साथ ही यह भी माना जाएगा कि भाजपा सरकार में भी किसी का दबाव पसंद नहीं किया और इन्हीं तेवर के कारण इस सरकार ने भी उन पर भरोसा किया। राजगढ़ में छह महीने की अवधि वाले कार्यकाल में आमजन का दिल जीतने के बाद भी जिन राजनेताओं का विश्वास नहीं जीत सके उनमें कांग्रेस के एक दिग्गज नेता भी हैं।

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