Madhy PradeshTop Stories

अपने ही शहर में फूंक फूंक कर कदम रखते रहे विजयवर्गीय 

( कीर्ति राणा )

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी के चुनाव के दौरान एक तरह से फूंक फूंक कर ही कदम रखा।यह सारी ऐहतियात भी संभवत:इसीलिए बरती कि अनावश्यक विवादों और आरोंपों की बौछार से बचे रहें।

अभी मतदान के दो दिन पहले वे पं बंगाल से दिल्ली पहुंच गए थे लेकिन इंदौर आए ठीक मतदान की पूर्व संध्या को।यदि पहले आ जाते तो निश्चित रूप से लालवानी के साथ प्रचार में घूमते, दो चार जगह समर्थन में आमसभा भी करते।मतदान वाले दिन पत्नी आशा और विधायक पुत्र आकाश के साथ वोट डाल कर सीधे घर चले गए। पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने और मतदाताओं को प्रोत्साहित करने न तो वे श्रमिक बहुल क्षेत्र और न ही आकाश के विधानसभा क्षेत्र तीन नंबर में ही घूमे।
शायद उनकी इस निर्लिप्तता की सबसे बड़ी वजह यही रही कि एक तरफ जहां लालवानी का टिकट शिवराज-साधना के कोटे का था वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी परिवार से उनकी और विधायक रमेश मेंदोला की प्रगाढ़ता किसी से छुपी नहीं है।भाजपा संगठन ने इस मिथक को तोड़ने के लिए जब मेंदोला को लालवानी के चुनाव का लोकसभा संचालक बना दिया हो तब तो विजयवर्गीय के लिए सजगता और भी जरूरी हो गई ।सुमित्रा महाजन के टिकट पर जब संशय के बादल मंडरा रहे थे तब मौसम के इस बदलाव में भी विजयवर्गीय का नाम चमका था। ताई नहीं तो कौन? विकल्प में जिन नामों पर प्रारंभिक चर्चा हुई थी, उनमें लालवानी का नाम भी विजयवर्गीय ने आगे बढ़ाया था, इसके पीछे उनका मजबूत तर्क यह भी था कि देश के सिंधी समाज को भी इस एकमात्र टिकट से संतुष्ट किया जा सकता है। जब लालवानी का नाम फायनल हो ही गया और शिवराज खेमे ने इसे अपनी सफलता बताना शुरु कर दिया तो वे परिदृश्य से गायब हो गए।
लालवानी का नामांकन पत्र दाखिल कराने के दिन से ही वे यह सावधानी बरत रहे थे, इस दिन शिवराज सिंह को इंदौर आने के लिए जिस तरह लालवानी ने उन पर दबाव बनाकर सहमति ली तब भाजपा में एक बड़ा वर्ग मान चुका था कि कुछ तो अलग होगा। तारीख से एकदिन पहले ही अभिजीत मुहूर्त का हवाला देकर वे तुरत-फुरत लालवानी को नामांकन पत्र दाखिल कराने ले गए थे।गिने-चुने वरिष्ठजनों में सुमित्रा महाजन, विधायक रमेश मेंदोला, जिला भाजपा अध्यक्ष अशोक सोमानी, नगर अध्यक्ष गोपी नेमा ही थे।नामाकन पत्र दाखिल करने वाली यह जल्दबाजी भाजपा कार्यकर्ताओं के गले भी नहीं उकरी थी।  अगले दिन जब धूमधड़ाके के साथ लालवानी नामांकन दाखिल करने गए थे तब शिवराज सिंह चौहान तो राजवाड़ा से कुछ दूर तक शामिल हुए लेकिन विजयवर्गीय शहर में नहीं थे।यही सारे कारण रहे कि पं बंगाल की व्यस्तता के बावजूद जब जब वे फुर्सत में रहे तो इंदौर आने, प्रचार करने आदि की अपेक्षा दिल्ली में रहना ही उचित समझा।लालवानी खेमा चूंकि शिवराज के अहसान से दबा दबा रहा इसलिए लालवानी के सलाहकार भी केंद्रीय नेतृत्व से स्टार प्रचारक के रूप में विजयवर्गीय की सभा तय करने के अनुरोध से कतराते रहे।

Related Articles

Back to top button