“मैं गरीब बन जाऊं “
(होमेंद्र देशमुख)
मैं एक निजी कंपनी का कर्मचारी हूं । हम तीन भाई हैं । पहले दूर गांव में हाई स्कूल होने के कारण बड़ा भाई ज्यादा पढ़ नही पाया । पिताजी ने मुझे पढ़ाई कराने कसम खाई और पुरखों की बची 10 में से 3 एकड़ जमीन बेचकर मुझे शहर से पढ़ाई करवाई । उपजाऊ जमीन बिक जाने के कारण घर मे कोई काम न रहा , बचे 7 एकड़ बंजर जमीन में खेती नही होती । बड़े भाई की शादी नही हुई । । मेरे मा बाप और भाई घर मे जमीन होते हुए भी बाहर मजदूरी करने लगे । पिताजी ने मुझे इंजीनियरिंग भी पढ़ाया । पर मैंने बाकी जमीन नही बिकने दी । सोचा था नौकरी लगते ही घर की सारी समस्या खत्म कर दूंगा ।
मा बाप भाई को बाहर काम नही करना पड़ेगा । बड़ी मशक्कत से डिग्री लेने के बाद दो साल घर बैठ कर, उन्ही के मजदूरी से मुफ्त और शर्मिंदगी की रोटी तोड़ता रहा । तीन साल पहले ही मुझे पूना के एक निजी कंपनी में 30 हजार की नौकरी मुश्किल से मिली । भाई को भी साथ रख कर पढ़ा रहा हूँ । लोन लेकर उसका फीस भरा । लोन की किश्त और कुछ आयकर से बचे 17 हजार में से 7 हजार रुपये महीने घर भेजता हूं , जिसमें से 5 हजार पिताजी ,भाई की शादी के लिए बचा रहे हैं । दो हजार राशन में खर्च होता है ,वो मजदूरी छोड़ नही सकते क्योंकि घर का खर्च नही चलता । अब मैं पेशे से इंजीनयर हूं, पिताजी 7 एकड़ बंजर जमीन के मालिक हैं , सरकार के कागज में हम गरीब नही इसलिए हमें कोई सरकारी सुविधा और मुफ्त की रेवड़ी नही मिलती , 1000 का बिजली बिल गांव के टूटी झोफडीनुमा घर का आता है, पिताजी अपने मजदूर साथियों से 1 रु किलो वाला चावल 20 रु किलो में लेते हैं । और जैसे तैसे काम चला रहे हैं । भाई के आगे की फीस अगले महीने नही भरा तो उसका सेमेस्टर रुक सकता है । मुझे घर मे खाना बनाने का समय नही मिल पाता । एक दिन भी होटल में खा लूँ तो 150 की थाली में दोनो का 300 लग जाता है ।
सुना है सरकार 5 एकड़ से कम के किसान को 6000 सालाना देगी पर मेरे घर तो 7 एकड़ बंजर जमीन है तो मुझे कोई फायदा नही मिलेगा । मेरे भाई को भी 72000 सालाना मानदेय नही मिल पायेगा क्योंकि हम लोग भूखे हैं लेकिन गरीब नही हैं ।
मेरी प्राइवेट नौकरी कभी भी छूट सकती है । शादी लायक तनख्वाह नही बचती , घर की हालत देख मुझे शादी के लिए कोई लड़की देने तैयार नही है । मेरे साथ काम कर रही एक लड़की शादी करने के लिए भाई को घर भिजवाने की शर्त लगाती है ।
सुना है सरकार और पार्टियां गरीबों को गुलाबजामुन खिला रही हैं । मैं कैसे गरीब बनूंगा ,यही सपना रोज देखता हूं । मैं तो टैक्स पेयर हूँ ,मेरी मजबूरी है कि आय छिपा नही सकता । फर्जी आय प्रमाण पत्र औऱ गरीबी कार्ड बनवा नही सकता सोचता हूँ नौकरी छोड़कर गांव चला जाऊं ।
पुरखों की बेची जमीन कभी लौटा तो नही सकता पर ,घर मे भाई पिताजी से झगड़ा कर, और बटवारा लेकर मैं भी एक- दो एकड़ का गरीब बन जाऊं ।
मेरे पिताजी को 72000 मिलेंगे ,मां मजदूरी नही करेगी , बड़े भाई की शादी और छोटे भाई की मुफ्त पढ़ाई हो जाएगी । वैसे भी लटकी नौकरी में छूटने के डर, दिन रात की खटाई, बाहर का महंगा खाना , गर्लफ्रेंड की झिकझिक । सब छोड़कर भी 6000 महीना हाथ मे …
क्या मस्त आइडिया है ,बाप..!
मेरे बाप की मति मारी थी जो मुझे जमीन बेचकर पढ़ाया.. पहले ही बटवारा कर देता तो….
आज बस इतना ही..!
(लेखक वरिष्ठ मीडियाकर्मी है)