Top Stories

बहुजन नेताओं की कथनी और करनी पर सवाल उठा रही हाथरस-बलरामपुर घटना

उत्तर प्रदेश । देश में इस समय उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई बेटी के साथ घटना के बाद देश में वबाल मचा हुआ है। आखिर बहुजन समाज की एक बेटी का बलिदान हुआ है। घटनाएं तो इसके पहले भी बहुत हुई, लेकिन आरोपियों को बचाने के प्रयास सरकार और प्रशासन खुलकर पहली बार सामने आया है। और कलई खुलती जा रही है। यह घटना बहुजन समाज के लिए एक सबक भी है, अब कितना सबक बहुजन समाज लेगा यह तो वक्त बताएगा। इस घटना ने बहुजन समाज के उन नेताओं की कथनी और करनी पर भी सवाल खडे कर दिए हैं, जिन्हें समाजजनों ने यहां तक पहुंचाया।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस के बाद राजस्थान के बलराम पुर में भी इसी तरह की घटना सामने आई है। मौटे तौर पर अभी तक उत्तर प्रदेश का प्रशासन घटना स्थल वाले गांव को पूरी तरह से घेरे हुए है। मुख्यधारा का मीडिया पहले तो इस मामले से पीछे हटता हुआ नजर आ रहा था, लेकिन जैसे ही बहुजन सोशल मीडिया ने मामले को लगातार उठाया तो देश में यह मामला आग की तरह फैल गया। मुख्यधारा की मीडिया ने भी इस ओर रूख किया। अब मीडिय को परिजनों से मिलने नहीं दिया जा रहा है।
– मामले में प्रशासन की भूमिका
इस मामले में हालात यह बने कि जब बर्बरता की शिकार हुई उस बेटी की हालत बिगड़ने लगी तो आनन फानन में उसे दिल्ली रेफर किया गया। लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गई। उसके बाद जब बहुजन समाज का गुस्सा फूटा तो सियासी दल भी उस बहुजन बेटी को न्याय दिलाने के लिए सामने आए। उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ मामले को दबाने का, जिस तरह से प्रशासन ने मामले को दबाने का प्रयास किया वह देश के सामने आ चुका है। किसकी कैसी भूमिका है, किस तरह से किसने क्या भूमिका निभाई है, यह सभी के सामने है।
– सवाल जिनके उत्तर कौन देगा
इस मामले में कुछ सवाल है जिनके उत्तर न तो इस समय उत्तर प्रदेश की सरकार के पास है और न ही उत्तर प्रदेश का प्रशासन दे पा रहा है। इसमें पहला सवाल है कि आधी रात को उस बेटी का शव जलाया गया। क्या इसी तरह से अंतिम संस्कार होता है। जब सरकार कह रही है कि वह पीड़ता के परिजनों के साथ खड़ी है तो फिर आला अफसर किसकी शह पर मीडिया एवं विपक्ष के नेताओं से बदसलूकी की जा रही है।
– क्या दुख जताने की भी आजादी नहीं
उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई इस घटना ने बहुजनों की आंखों पर चढ़ी कई परतें खोली है, जिसमें वह अभी तक इस भरोसे में ही जी रहे थे, कि देश में सियासी दल कोई भी हमारे समाज से जो सांसद, विधायक चुन कर जाते हैं, बहुजनों पर जब अत्याचार होगा तो वह बहुजनों के साथ खड़े होगें, लेकिन यह कोरा भरम ही रहा। उदाहरण भी सामने है कि बहुजन नेता जो सत्ता में शामिल हैं, वह इस घटना पर न्याय दिलाने के लिए आगे आने की बात तो दूर दुख भी नहीं जता पाये, क्या वह इस घटना से अंजान या फिर कोई और कारण, यह सवाल इस समय हर बहुजन के जहन में है।

Related Articles

Back to top button