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आन्दोलन में बीता किसानों का आधा साल

जोरावर सिंह

केन्द्र सरकार द्वारा बीते साल तीन किसान कानून बनाए, सरकार द्वारा दावा किया गया इन कानूनों के लागू होने के बाद खेती को बल मिलेगा और किसानों को इसका लाभ मिलेगा। लेेकिन किसान संगठनों ने इन कानूनों को किसानों का विरोधी बताया और इन तीनों कानूनों का विरोध शुरू कर दिया, जाे आज तलक जारी है, किसान आन्दोलन को छह महीने पूरे हो गए, इस मौके पर किसान विरोध दिवस मना रहे है। किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं।

छह महीने पहले शुरू हुए किसान आन्दोलन विभिन्न चरणों में यहां तक पहुंचा है। इस किसान आन्दोलन को करीब 40 किसान संगठन मिलकर चला रहे है, किसान आन्दोलन की शुरूआत तो पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से हुई, राज्यों से होकर यह किसान आन्दोलन दिल्ली के वार्डरों तक पहुंचा, किसान आन्दोलन को विपक्ष की अिधकांश पार्टियों ने अपना समर्थन दिया तो किसान आन्दोलन को और बल मिला किसान आन्दोलन आगे बढता गया तो इसमें समाजसेवी, कई अन्य सामाजिक संगठनों का भी समर्थन हासिल हुआ, किसान आन्दोलन वर्तमान में पूरे भारत में अब चर्चा का विषय बना हुआ है।

— किसानों की प्रमुख मांगे

केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों को पूर्ण रूप से समाप्त करने की मांग किसानों द्वारा की जा रही है, जबकि इस मामले में सरकार कृषि कानूनों में बदलाव और दो साल के लिए स्थगित करने की बात कह चुकी है, मगर किसान पूरी तरह से इन कानूनों को रदद कराना चाहते है। किसान और सरकार दोनों ही अपनी अपनी बात पर अडे हुए है, किसान और सरकारों के बीच वार्ताएं बंद है। बीते दिनों किसानो पर हिसार में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया, इसमें कई किसान घायल हुए, सैकडों किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए, अब किसान संगठनों अपनी मांगों यह मांगे भी जोड दी है, कि किसानों पर दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए जाए और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो।

किसानों के संघर्ष के चरण

देश भर में केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कानूनों के िवरोध में किसानों ने धरना प्रदर्शन शुरू किए तो केन्द्र सरकार और किसान संगठनों के बीच करीब 12 वार्ताएं हुई, लेकिन सरकार और किसानों के बीच विज्ञान भवन में हुई यह वार्ताएं असफल ही रही, सरकार किसानों की मांगे मानने के लिए तैयार नहीं हुई, तो किसान भी अपनी मांग पर अडे रहे। किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली कूच किया, िजसमें लाल किले पर ध्वज फहराने जैसी घटनाएं सामने आई, किसान संगठनों और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार झडपें भी होती रही है, अभी हाल ही में हिसार में विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया। जिसका किसान विरोध कर रहे हैं।

—किसान आन्दोलन के सियासी मायने

किसान आन्दोलन जैसे जैसे आगे बढ रहा है, इसके सियासी मायने भी तलाशे जा रहे है, हो भी क्यों न जब किसानाे के बडे नेता राकेश टिकैत ने पांच राज्यों में हुए चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए कई किसान सभाओं को संबोधित किया, पश्चिम बंगाल में हुए चुनावों में किसान नेता की आम सभा का असर भी परिणामों में दिखा, भाजपा को बंगाल में मनचाही सफलता नहीं मिल पाई, अब दूसरी ओर किसान नेता राकेश टिकेत कह चुके है, अभी बंगाल हराया है, अब यूपी हराएंगे, इसका मतलब है, आगामी महीनों में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले है, इसमें किसान संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। किसान बीजेपी का विरोध करेंगे। इसका नुकसान भाजपा को नुकसान उठाना पड सकता है, ऐसे में सियासी दल किसानों के आन्दोलन में अपने अपने सियासी मतलब भी निकाले जा रहे हैं।

किसानों के मजबूत इरादे

किसान आन्दोलन काे अब छह महीने पूरे हो चुके है, माना जा रहा था कि धीरे धीरे किसान आन्दोलन अन्य आन्दोलनों की तरह सिमट जाएगा, या फिर समाप्त हो जाएगा, शायद सरकार को भी इसका इंतजार था, लेकिन आन्दोलन कर रहे किसान संगठन के नेताओं ने अपने मजबूत इरादे जाहिर कर दिये है, वह कोरोना काल में भी आन्दोलनरत रहे, रबी की फसलों की कटाई के दौरान भी किसान आन्दोलन करते रहे, किसानों के इन्ही मजबूत इरादों से ही किसान आंदोलन अब भी खडा हुआ है। अब आन्दोलन किस ओर जाएगा, और कितना मजबूत होगा या फिर बिखरेगा यह तो आगामी वक्त बताएगा, मगर इस समय किसान आन्दोलन सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है।

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