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गांधी और शिव तांडव स्रोत : आराधना, आलोचना और गालियां

होमेंद्र देशमुख

भोजपुर के अधूरे शिव मंदिर का प्रांगण । कहते हैं यहां 11 फ़ीट जमीन के नीचे और लगभग 9 फ़ीट ऊपर दिखते विशाल शिवलिंग की कभी विधिवत स्थापना नही हो पाई थी । सब लोग साल के अंतिम दिनों में टूरिस्ट स्पॉट जाकर आनंद की प्राप्ति में लगे थे तो मैं आज 30  दिसंबर को पत्नी के साथ यहीं आ गया ।पिछले दो दिनों से कालीचरण की चर्चा हर अखबार और टीवी चैनल पर आ रही है जिसने इसी शिव मंदिर में चंद महीने पहले शिव तांडव स्रोत का अभिनय के साथ जबरदस्त पाठ किया था ।  मेरी पत्नी भी यहां पहुचकर याद करने लगीं क्योंकि उन्होंने भी उस वायरल वीडियो को अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर किया था  ।

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” जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल ।साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ।रघुपति राघव राजा..राम । “

महाकाल की नगरी उज्जैन से लगे कस्बे बड़नगर के ब्राम्हण परिवार में 1915 में जन्मे रामचन्द्र नारायण द्विवेदी । इन्हें सारे हिंदुस्तान ने भारत की आज़ादी से सालों पहले ही कवि प्रदीप के रूप में जान लिया था । वीर रस से भरी देश भक्ति  के इनके  तराने आजादी के सिपाही बड़े गर्व से गाते और अपने टोलियों में जोश भरते थे । इनकी कविताएं गीत नहीं आंदोलन के बिगुल की तरह बजती थीं और अंग्रेज सरकार इन गीतों को अपने खिलाफ रणभेरी समझती थी । बॉम्बे टाकीज़ की फ़िल्म ‘किस्मत’ के प्रसिद्ध गीत – “आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है .. के लिए उन्हें  तत्कालीन अंग्रेज सरकार के गिरफ्तारी वारंट का सामना करना पड़ा था ।


कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के ‘शिवाजी राव हाईस्कूल’ में हुई, जहाँ वे सातवीं कक्षा तक पढ़े। तब चौथी और सातवीं की परीक्षा बड़ी मानी जाती थी । इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल से इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टीकोंण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन एवं हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी।कवि सम्मेलनों में खूब शिरकत करते और हिंदी के कवि साहित्यकार ‘रामचन्द्र द्विवेदी’  फिल्मों के गीतकार  “कवि प्रदीप” बन गए ।हिंदी साहित्य जगत के ‘कवि प्रदीप’ और हिंदी फ़िल्म जगत के ‘कवि प्रदीप’  एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। वे  ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं।

उन्होंने 1962 के ‘भारत-चीन युद्ध’ के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था जिसे आज  ‘भारत रत्न’ से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने  जब 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से  गाया और जिसका  सीधा प्रसारण सुन पूरा देश रो पड़ा था । यूं तो ‘कवि प्रदीप’ ने प्रेम के कई  रूपों और कई रसों  को अपने लेखनी में उतारा, लेकिन वीर रस और देश भक्ति के उनके गीतों की बात ही कुछ अनोखी थी।उनके पहले फ़िल्म ‘ बंधन’  में रचित गीत, ‘चल चल रे नौजवान’ राष्ट्रीय गीत बन गया।   सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा।   जब भी यह गीत सिनेमा घर में बजता लोग वन्स मोर-वन्स मोर कहते थे और ये गीत फिर से दिखाना पङता था । 

 साल भर पहले एक वायरल वीडियो में भोपाल के पास भोजपुर मन्दिर में शिव स्रोत का पाठ करने वाले , इंदौर में रह चुके अकोला के एक कथित काली भक्त  संत ने पिछले दिनों रायपुर में एक कथित धर्म-संसद के मंच से ‘गांधी’ को गाली दिया । पुलिस में  एफ आई आर दर्ज होने के बाद गायब संत ने एक और वीडियो जारी कर दिया , जिसमे ‘गांधी’ को दिए  गाली के समर्थन में दे रहे तमाम दलीलों के साथ  ‘गांधी’ को साबरमती के संत लिखने वाले इस ओजस्वी गीतकार – कवि को भी जूते मारने का आह्वान कर डाला  ।  एक आम हिंदुस्तानी को उन महोदय की भाषा ,सोच और व्यक्तव्य तो उन्हें संत मानने पर कतई राजी नही होगा चाहे वह गांधी का विरोधी और गोड़से का समर्थक भी क्यूं न हो…!
देश मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है । माना कि गांधी किसी के पैगम्बर या किसी के ईश नही हैं । अगर संवैधानिक रूप से राष्ट्रपिता मानने से इंकार भी  कर दो तो संसद में लगी विशाल प्रतिमा , सरकार के नियमावली और प्रोटोकॉल में वंदनीय और पूजनीय हैं । चौक चौराहों और संस्थान , देश की मुद्रा और डाक टिकटों से लेकर राष्ट्रीय प्रतीक उनके नाम और  चित्रों , मूर्तियों से सुसज्जित हैं । यहाँ गांधी के विरोधी भी होंगे और उनके विचारधारा के भी । गोडसे के भी  समर्थक होंगे । पर सब अपनी बातों को अपने अपने तरीके से रखते हैं,  रखते रहे हैं । 
‘साबरमती के संत ..’ गीत को लिखते समय यही भावना ‘कवि प्रदीप’ की भी रही होगी ,जिसको आज पर्यंत पूरे राष्ट्र ने सराहा..


 बहुत लोग उस ‘संत’ के ऐसे बयानों और आह्वानों के अंध- समर्थक भी हो जाएंगे पर उन समर्थकों सहित हम सब को  इतना जरूर सोचना ही होगा कि  आप ‘गांधी-आलोचना’ से  सहमत हैं या मंच पर गांधी को दिए  ‘गाली’ के पैरोकार ….

यह भी शंका है कि जाने अनजाने हम अपने  समर्थनों से किसी अनजाने ट्रैप या गांधी के नाम पर हो रही सियासत या किसी अज्ञात षड्यंत्र का हिस्सा तो नही बन रहे । और क्या गांधी से जुड़े हर बात और व्यक्ति को भी ‘गाली’ देने को भी हम जायज ठहराएंगे..?


‘गुलाम देश’ को अपने गीतों और कविताओं से अपनी आजादी के अधिकार का बोध  कराकर आत्म आह्वान का एहसास कराने वाले कवि प्रदीप की बहुत सारी कालजयी रचनाओं में से एक और रचना है ..आपस की दुश्मनी का यह अंजाम हुआ ,दुनिया हसने लगी देश बदनाम हुआ ।। आज के इंसान को ये क्या हो गया ,इसका पुराना प्यार कहां खो गया ।।उन्ही ‘कवि प्रदीप’ कीएक और भी प्रसिद्ध रचना है  -राम के भक्त,रहीम के बन्दे,रचते आज फरेब के फंदे,कितने ये मक्कार ये अंधे,देख लिए इनके भी धंधे,इन्हीं की काली करतूतों से हुआ ये मुल्क मशान,कितना बदल गया इंसान..कितना बदल गया इंसान….


जहां चंद  महीने पहले उसी संत ने  शिव तांडव स्रोत का जबरदस्त तरीके से पाठ कर खूब वाहवाही बटोरा था उस परिसर से हम बाहर निकलने को थे  इसी शिवमंदिर के परिसर  में खबर मिली कि ‘बाबा खजुराहो के पास धरा गया…!’पत्नी ने डरते हुए तपाक से पूछा – ओह्ह  ! तो वो गिरफ्तार भी हो ही गया …मुझे भी कुछ होगा तो नही…,क्या मैं वह शिव स्रोत का वायरल वीडियो अपने पेज से निकाल दूं जो तब मैंने शेयर कर लिया था…..?


आज बस इतना ही…!

लेखक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के वरिष्ठ वीडियो जर्नलिस्ट है

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