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पांच राज्यों में कांग्रेस की हार पर गठित समिति से जी-23 है नाखुश, जानें क्या है वजह

नई दिल्ली। कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में चल रहे दांव-पेच के बीच पार्टी का असंतुष्ट जी-23 खेमा वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस के कोरोना टास्क फोर्स का अध्यक्ष बनाए जाने को नेतृत्व का एक सकारात्मक कदम तो मान रहा है, लेकिन पांच राज्यों में हार पर गठित पांच सदस्यीय समिति के स्वरूप को लेकर संतुष्ट नजर नहीं आ रहा है। असंतुष्ट खेमे के अनुसार हर राज्य की हार के लिए अलग-अलग समूह बनाने के बजाय सभी के लिए एक ही समिति बना दी गई है। इसलिए आशंका है कि हार की गहरी पड़ताल करने के बजाय इस पर लीपापोती की जा सकती है।

15 दिनों में हार ही तथ्यपरक पड़ताल नहीं होगी, लीपापोती का होगा प्रयास

असंतुष्ट खेमे के नेताओं के अनुसार कांग्रेस कार्यसमिति की 10 मई को हुई बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष ने हार की ईमानदारी से गहन समीक्षा की जो बात कही थी, उसका संकेत यही माना जा रहा था कि बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी के चुनावी नतीजों की तथ्यात्मक पड़ताल के लिए चार अलग-अलग समिति बनेगी। मगर पार्टी ने मंगलवार को इन सभी राज्यों के लिए एक ही समूह बनाने की घोषणा की। हार पर गठित समूह में जी-23 के एक प्रमुख नेता मनीष तिवारी को भी शामिल किया गया है, मगर इसके बाद भी असंतुष्ट खेमे की अपनी आशंकाएं हैं। इस बारे में असंतुष्ट खेमे के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रत्येक राज्य के लिए एक समूह होना चाहिए था।

हार की वजहों को सामने लाने के बजाय तथ्य छिपाने वाली साबित हो सकती है समिति

कोविड के मौजूदा समय में 15 दिन के दौरान चार राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा कर वहां की जमीनी स्थिति और नेताओं से बातचीत के बाद हर सूबे की तथ्यात्मक समीक्षा संभव नहीं है। ऐसे में यह हार की वजहों को सामने लाने के बजाय तथ्य छिपाने वाली समिति साबित हो सकती है। हार की समीक्षा के लिए गठित इस पांच सदस्यीय समूह की अध्यक्षता महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और ठाकरे सरकार में मंत्री अशोक चव्हाण कर रहे हैं। इसमें मनीष तिवारी के अलावा सलमान खुर्शीद और लोकसभा सदस्य विंसेंट पाला व ज्योति मणि शामिल हैं।

गुलाम नबी को कोविड टास्क फोर्स की कमान सौंपने को सकारात्मक कदम मान रहे असंतुष्ट नेता

असंतुष्ट खेमा समूह के संभावित निष्कर्षों को लेकर जहां सशंकित है, वहीं गुलाम नबी आजाद को फिर से कांग्रेस की रीति-नीति के संचालन में वापस लाने के लिए नेतृत्व के संकेतों को सकारात्मक मान रहा है। हालांकि उसका यह भी कहना है कि आजाद और असंतुष्ट नेताओं से दूरियां पाटने के शुरुआती संकेतों को कांग्रेस के मौजूदा गंभीर संकट का समाधान निकालने के निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। यह इसीलिए भी कि पार्टी की संगठनात्मक कमजोरियों और कार्यशैली से जुड़े असली मसलों के हल पर चर्चा की अभी तो शुरुआत भी नहीं हुई है।

आजाद को कोविड टास्क फोर्स की कमान दिए जाने पर असंतुष्ट खेमे के नेताओं ने कहा कि यह अच्छा कदम है। आपदा और महामारी में राहत सहायता और संकट की अलग-अलग तरह की चुनौतियों से निपटने का आजाद को लंबा अनुभव भी है। ओडिशा में 1999 के तूफान से हुई तबाही और 2005 में जम्मू-कश्मीर में भूकंप से हुए जान-माल के नुकसान के बाद आजाद का राहत और आपदा प्रबंधन काबिले गौर रहा था। इसी फरवरी में राज्यसभा से रिटायर होने के बाद आजाद को पार्टी ने यह पहली जिम्मेदारी दी है।

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