Top Stories

आकादमिक दृष्टि से यह जरूरी है कि हम समाज में ऊॅच-नीच की भावना समाप्त करने की दिशा में कार्य करें – प्रो. अंजलि प्रकाश अम्बेडकर

 

 

मध्यप्रदेश। डॉ बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेण्डर संवेदनशीलता और संबंधित विषय पर आयोजित अकादमिक गतिविधियों के क्रम में आज 16 जुलाई को बाबासाहेब अम्बेडकर की पौत्रवधू प्रोफेसर अंजलि प्रकाश अम्बेडकर का विशिष्ट व्याख्यान दलित एवं आदिवासी महिलाओं के उत्थान विषय पर रहा। उन्होंने कहा कि संविधान हमें समता, समानता और बराबरी का अधिकार देता है। दलित एवं आदिवासी महिलाओं की बात करें तो समाज में व्याप्त कुछ सांस्कृतिक एवं सामाजिक अभ्यास जाति, वर्ग और जेण्डर के आधार पर प्रभावित करती है। आजादी उत्तरजीविता, शिक्षा, स्वास्थ्य, संसाधनों तक पहुंच, निर्णय की प्रक्रिया और सुरक्षा जैसे मानव विकास के सूचकांको को आधार बनाते हुए कहा कि अगर हम दलित एवं आदिवासी महिलाआंे की स्थिति को देखे तो उनकी स्थिति आज भी चिंताजनक है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के मामले में प्रायः वंचित रहना पड़ता है। उन्होंने इस दिशा में सरकारी पहल कदमियों का भी जिक्र किया। उनके मुताबिक शिक्षा का निजीकरण सबको प्रभावित करने वाला है लेकिन खासतौर से आदिवासी एवं दलित महिलाओं,लड़कियों की शिक्षा के लिए यह सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। इस संबंध में सरकार और नितिनियामक संस्थाओं को दलित एवं आदिवासी महिलाओं के सर्वाेिगंण विकास के लिए सकारात्मक कदम उठाने होंगे, जिसकी पहल अकादमिक चर्चाओं और अनुसंधान के विषयों में शामिल करने से हो सकती है। महिलाओं के विरूद्ध हिंसा से सुरक्षा की बात करते हुए उन्होंने प्रवासी महिलाओं की स्थितियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कोविड-19 के दौरान घरेलू कार्य करने वाली महिलाओं की आर्थिक और मानसिक स्थिति पहले की तुलना में और खराब हुई है। निर्णय प्रक्रियाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सामाजिक सांस्कृतिक बुनावट में जेण्डर एवं वर्गगत गैर बराबरी के चलते महिलाओं के सामने बड़ी चुनौति हैं ऐसे में दलित आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर गंभीरता से विचार किया जाना समिचीन है। आदिवासियों में महिलाओं की समुदायिक निर्णय में हिस्सेदारी बताया जाता है, बावजूद इसके घरेलू हिंसा, सामाजिक कुप्रभाओं डायन, चुड़ेल जैसे का शिकार होना पड़ता है। निरक्षरता, अशिक्षा और सामाजिक दृष्टि से पिछड़ेपन के कारण दलित,आदिवासी महिलाऐं अंधविश्वास, पाखण्ड से भी जकडी हुई है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि आकादमिक दृष्टि से समाज में ऊॅच-नीच की भावना समाप्त करने की दिशा में कार्य करें

अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने बाबा साहेब अम्बेडकर की पोत्रवधू और ख्यातिलब्ध अकादमिक एवं सामाजिक सक्रियता रखने वाली प्रो. अंजलि प्रकाश अम्बेडकर का स्वागत करते हुए कहा कि सामाजिक समरसता के लिए जेण्डर संवेदनशीलता आवश्यक है। दलित एवं आदिवासी महिलाओं की पीड़ा एवं पाबंदियों को समझकर दूर करने का प्रयास करना होगा। देश एवं समाज की प्रगति के लिए जाति, वर्ण और धर्म के आधार पर बने गैर बराबरी के बंधनों को तोड़ता आवश्यक है। महिला ही वो प्रथम व्यक्ति है जो स्त्री हो या पुरूष दोनों का दुनिया से परिचय करवाती है। हमें साथ मिलकर एक बेहतर राष्ट्र और समाज के निर्माण में सहयोग करना होगा।
स्वागत उद्बोधन प्रो. डी.के. वर्मा, डीन एवं आई.क्यू.ए.सी. सेल निदेशक द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. मनोज गुप्ता एवं आभार प्रो. कुसुम त्रिपाठी द्वारा ज्ञापित किया गया।

Related Articles

Back to top button