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तलवार युद्ध से लेकर बायलॉजिकल वार : क्या विधाता ने ही लिखा ..? सावधान..युद्ध चालू आहे…

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]

 

 

रामानन्द सागर के रामायण में मंगलवार का एपिसोड आज ,कोरोना महामारी की विभीषिका पर सटीक बैठता है ।
महामारी नहीं यह युद्ध है..

युद्ध जारी है .. रावण के चार पुत्र अतिकाय त्रिशरा देवान्तक और नरान्तक के साथ लंका के सेना नायकों के शव रणभूमि पर पड़े हैं ।

विभीषण अपने कुल के नाश का यह दृश्य देखकर द्रवित हो जाते हैं । कहते हैं – यह दृश्य तो दारुन ही है । लेकिन ..

हे राम ! मैं , उस दृश्य की कल्पना करके दुखी हो जाता हूं कि एक दिन, सारी लंका शवों से भरी होगी और उस पर रोने वाला कोई नहीं होगा ।
हे प्रभु ! युद्ध का परिणाम इतना भयानक होता है कि लड़ने वालों के साथ उनके संस्कृति का भी विनाश हो जाता है ।
श्री राम विभीषण को सत्य से परिचित कराते हुए कहते हैं –

हां महाराजा विभीषण ! “यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि सदैव धर्म की शक्तियों को अधर्म की शक्तियों के विरुद्ध शांति की स्थापना के लिए युद्ध करना पड़ता है ।

सत्य तो यह है कि मानव का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं *युद्ध* है । मानव संस्कृति की पूर्ण विजय तब होगी जब संसार में न्याय की विजय के लिए मानव को युद्ध की आवश्यकता नहीं रहेगी..”

राम न यह वादा कर पाते हैं कि यह युद्ध रुकेगा न ही तारीख बताते हैं , युद्ध कभी रुकेगा भी या नही ।
राम मौन हैं..पर जो

राम ने कहा सच ही कहा ।युद्ध हमेशा शान्ति के लिए ही लड़े जाते रहे हैं । कभी धर्म अधर्म से लड़ता है कभी अधर्म धर्म से । कभी ताकतवर कमजोर से लड़ता है कभी कम ताकतवर शक्तिशाली से । चाहत शांति की, लेकिन उपाय ‘युद्ध’…!

इतिहास में यही होता आया है ।आज भी यही हो रहा है ।
कभी ट्रम्प-जोंग , कभी मोदी-जिनपिंग मिलकर संधि पर हस्ताक्षर करते हैं , ताकि युद्ध न करना पड़े ।

आशावादी होना अलग बात है । पर जब हम शांति समझौते और मुलाकातें करते हैं तब यह केवल एक युद्ध- विराम ही होता है , तब भी यह एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की तैयारी ही होती है ।

पिछले 1 हजार सालों मे अब तक 35000 छोटे बड़े युद्ध लड़े जा चुके हैं  औसत निकालने पर एक साल मे लगभग 35 युद्ध लड़े गये | सुन कर हंसी और शर्म आएगी कि ये कहा गया कि ये सारे युद्ध शांति के लिए लड़े गये |
दरअसल किसी को शांति नही चाहिए  जो बड़ा है , वह हमेशा आंखें दिखाता है जो छोटा वह संधि का रास्ता ढूंढता है | बीच मे तमाशा देखने वाला भी अपने हित और स्वार्थ देख कर पाला बदलते रहता है | कभी डर से – कभी दंभ से..!

इतिहास में कालखंड व परिस्थिति के हिसाब से अभी तक दो ही अवधियाँ आई हैं  एक अवधि जिसे हम युद्ध कहते हैं और एक जिसे हम शांति कहते हैं । यह शांति की अवधि वास्तव में इसे अगले युद्ध की तैयारी कहना चाहिए।

डरे राजनेता- क्रूर शासक वही कर रहे हैं जो आज तक वे करते आएं हैं अमेरिका, उ कोरिया , चीन, रूस और भी होंगे | संघर्ष का निर्माण, और अशांति, और भेद-भाव, और खतरनाक हथियार– और तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी। बस युद्ध का तरीका और हथियार बदल जाएंगे । पहले तलवार भाले,गोले बारूद, विमान रॉकेट, फिर परमाणु बम , और जैविक हथियार …

हिरोशिमा नागासाकी पर बम बरसाने वाले पायलट को पूछा गया, तुम्हें अंदाजा नही था कि ये तुम क्या करने जा रहे हो..?

उसने कहा – बिल्कुल नही ,जैसे दूसरे गोले बारूद गिराता था वैसे परमाणु बम गिरा दिया ..

श्री कृष्ण , महाभारत धरवाहिक के आने वाले एपिसोड में ऐसे ही युद्ध-भूमि में अर्जुन से कहेंगे –

जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

श्री कृष्ण यह भी कहेंगे –

“युद्ध में मरकर तुम स्वर्ग जाओगे या विजयी होकर पृथ्वी का राज्य भोगोगे । इसलिए हे कौन्तेय, तुम युद्ध के लिए निश्चय करके खड़े हो जाओ ।”

युद्ध , अकाल और महामारी..! सृष्टि में संतुलन का आधार मान कर नियति समझ लिया गया ।

पर ये तीनों ही मानवता के खिलाफ एक “महायुद्ध” ही तो है ।
तब राम मौन थे..
युद्ध पर ईश्वर, विधाता, शासक ..सब हमेशा से मौन हैं…

कोई रोको..
इसे रोको…..

यह खेल प्राणोत्सर्ग का
घनघोर तांडव मृत्यु का,

है इसमें आंखों के कितने तारे गए इतने प्राणों के प्यारे गए
व्यक्तिगत शत्रुता के लिए…

कितने निर्दोष मारे गए..
इसे रोको.. कोई रोको…

हे विभीषण.. तुमने सच कहा । युद्ध में मानव का नही, पूरी संस्कृति का विनाश हो जाता है ..

पुत्रों के मृत्यु पर दुखी और संताप , विलाप करती माताओं को लंका राजमहल में, समझाते हुए मेघनाद कहते हैं – राजा को अपना दुख अपने सीने में दबा कर सदा हंसते रहना पड़ता है । राजा कभी दुखी नहीं हो सकता इसलिए आप भी अपने आंसू पोंछ लें ।

युद्ध आरंभ हो चुका है अब यह किसी व्यक्ति का प्रश्न नहीं रहा राक्षस जाति के गौरव और इस देश के मान अपमान का प्रश्न बन गया है युद्ध क्यों हुआ , दोष किसका था ..? यह सोचने का समय निकल चुका है

अब केवल एक ही लक्ष्य है युद्ध में विजय उचित और अनुचित का निर्णय सदा हार और जीत में होता है सर्वदा विजय ही सच्चा कहलाता है समझिए.. आज महाराज का साथ देने का समय है उन्हें अशांत करने का समय नहीं….

आगे महाभारत का वह एपिसोड भी आएगा जब नारायण को उनकी पटरानी पूछेंगी – हे पद्मनाभ..! क्यों मचा है धरती पर ये हाहाकार, जब प्रेम बनायी थी तो घृणा क्यों बनाया , ऐसा संसार और ऐसा मानव आपने बनाया ही क्यों आपने नारायण ! जो आप की बनाई धरती पर अंधेरा फैला रहा है .. एक दूसरे से लड़ रहे हैं..

नारायण स्वयं कहते हैं – हे महादेवी ! अपना लिखा तो स्वयं विधाता भी नहीं बदल सकते हो सकता है यह मानव जाति की परीक्षा हो ।

उसके कर्मों की परीक्षा हो ..आप क्या चाहती हैं कि हम केवल दिन बनाते – रात नहीं बनाते , केवल प्रकाश बनाते- अंधेरा नहीं बनाते.. फिर मानव को अंधेरे उजाले का अंतर कैसे जान पड़ता , विष ना होता तो अमृत की महत्ता कैसे जान पड़ती ।

रात और दिन का अंतर कैसे पता चलता । पुष्प के साथ काटे ना होते तो पुष्प का सौंदर्य का कैसे पता चलता , पतझड़ ना आती तो वसंत ऋतु इतनी सुहानी कैसी लगती ।

हमने मानव को बनाया है देवी ! ‘मानव इतिहास’ बनाने का काम हमारे हाथ में नहीं वह तो उसी के हाथों में छोड़ दिया है । उसे तो अभी अपनी शक्ति का एहसास हुआ है ।

इसी से उसे न्याय-अन्याय धर्म-अधर्म सत्य- असत्य ,पाप और पुण्य की जानकारी होगी हमने बुद्धि दी है, विवेक दिया है उसे …

“युद्ध चालू आहे..”

 

                          आज बस इतना ही..

 

 

 (  लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है   ) 

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