पद्मश्री अलंकरण के लिए चयन आँखों के इतने ऑपरेशन कर दिए कि डॉ हार्डिया की अंगुली ही टेढ़ी हो गई!
( कीर्ति राणा )
सुनकर आश्चर्य हो सकता है लेकिन यह हकीकत है, डॉ पीएस हार्डिया आँखों के 6.50 लाख ऑपरेशन कर चुके हैं। इसी विशिष्ट सेवा के लिए उन्हें पद्मश्री से अलंकृत करने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है। भेंगापन दूर करने के साथ ही धुँधला दिखने की शिकायत से पीड़ित लाखों मरीजों की जिंदगी को वे रोशन कर चुके हैं। ऑपरेशन करते वक्त सतत कई घंटे तक औज़ार को एक जैसी स्थिति में पकड़े रहना पड़ता था लिहाजा औज़ार पर अंगुली के दबाव का नतीजा यह हुआ कि उनकी तर्जनी टेढ़ी हो गई है।
अपनी उपलब्धियों के किस्से सुनाते हुए डॉ हार्डिया बता रहे थे कि पिता जी (डॉ शिव हार्डिया) ने 1950-51 में कहा था मरीज के लिए डॉक्टर भगवान नहीं उसकी दूसरी माँ के समान होता है। मरीजों की चिंता ऐसे ही करना जैसे माँ अपने बच्चों की करती है। उनकी इस सीख को सदैव याद रखा।नियम था शनिवार-रविवार को देश के विभिन्न हिस्सों में निःशुल्क शिविर लगाता, ऑपरेशन करता। ये जो इतना नाम हुआ है तो उन मरीजों के कारण जो ठीक से देखने लगे तो ‘मेरे हाथ में जादू है’ जैसी बातें कह कर समाज और शहर में मुझे प्रचारित किया। मरीजों और मीडिया ने मेरे काम की जिस तरह सराहना कि उससे ही पहचान मिली।
उन्होंने यह भी स्वीकारा कि पद्मश्री के लिए नाम तो करीब पंद्रह साल से चल रहा था लेकिन टलता रहा, प्रधानमंत्री मोदी ने मेरे काम को पहचाना इसलिए चयन हो सका, देश को मोदी पर भरोसा है कि वे गलत काम कर ही नहीं सकते।मुझे कहने में हर्ज नहीं कि ऐसे सम्मान में कम से कम अभी तो राजनीति नहीं हो रही है।नहीं भी चयन होता तो मैं 81 वर्ष की उम्र में भी ओपीडी में मरीजों को देख और ऑपरेशन भी कर ही रहा हूं। डॉ हार्डिया के पुत्र आई स्पेशलिस्ट डॉ राजीव और उनके दो पुत्र, दामाद डॉ किशन वर्मा और उनकी दोनों पुत्रियाँ भी चिकित्सा पेशे से जुड़ी हुई हैं।
विश्व में ओमेंटो प्लास्टि सर्जरी का पहला ऑपरेशन भी इंदौर में
विश्व में ओमेंटो प्लास्टि सर्जरी का पहला ऑपरेशन करने की उपलब्धि भी डॉ हार्डिया के नाम दर्ज है।डॉ अग्रवाल के साथ मिलकर वे ऐसे 350 जटिल ऑपरेशन कर चुके हैं।डॉ धीर और डॉ ढंडा के शिष्य रहे डॉ हार्डिया कहते हैं ओमेंटो प्लास्टि सर्जरी इसलिए जटिल है क्योंकि मरीजों की आँखों तक रक्त कोशिका से प्रवाह नहीं पहुँचने से उसे अचानक दिखना बंद हो जाता है, इस सर्जरी के बाद उसकी रोशनी लौट आती है। डॉ हार्डिया बताते हैं पेट में रक्त कोशिकाओं का एक गुच्छा रहता है उसमें से एक रक्त कोशिका शरीर के अंदर ही अंदर सीने से कान के पिछले हिस्से में आँख के साथ वहां जोड़ते हैं जहां से आँख तक रक्त पहुँचता है।इस कोशिका के जुड़ जाने के बाद मरीज को दिखने लग जाता है।मैं कार्निया ऑपरेशन की नई तकनीक सीखने रूस जाना चाहता था लेकिन उस जमाने में डेढ़ लाख रु जुटाना संभव नहीं था तब कार्निया के ऑपरेशन दाढ़ी बनाने की ब्लेड के टुकड़े से चीरा लगा के करते थे।
-मेडिकल कॉलेज को देहदान का संकल्प
उनका कहना है आँखों को बेहतर रखना है तो समय पर जाँच कराते रहें, बच्चे मोबाइल से बचें, मधुमेह के मरीज आँखों के मामले में अधिक सावधानी रखें। ऑपरेशन का रिकार्ड बनाना मेरी हॉबी नहीं रही, पेशेंट ही मेरी हॉबी हैं। जहां तक मेरा सवाल है तो परिजनों के कह चुका हूँ, मौत होने पर नेत्रदान के साथ ही मेरी देह मेडिकल कॉलेज को सौंप दें।