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क्या बर्फ में धधकती आग लग सकती है?

क्या बर्फ में धधकती आग लग सकती है? समुद्र की असीम गहराई से निकली बर्फ तुरंत आग पकड़ लेती है. ऐसी बर्फ ऊर्जा का बड़ा स्रोत बन सकती है, लेकिन उसे निकालने पर धरती बर्बाद भी हो सकती है.धरती में ईंधन का भंडार, ऐसी बात करते ही जेहन में तेल के कुएं, कोयले के भंडार और गैस फील्ड आते हैं. लेकिन अब वैज्ञानिक एक ऐसे स्रोत तक पहुंच रहे हैं, जिस पर अब तक ज्यादा ध्यान नहीं गया है. यह पृथ्वी पर मौजूद ऊर्जा का सबसे बड़ा भंडार है.

सागरों की असीम गहराई में अरबों टन मीथेन गैस दबी है. अत्यधिक दबाव और बहुत ही ठंडे तापमान के चलते यह मीथेन बर्फ के क्रिस्टलों के भीतर छुपी है. ऊर्जा के इस स्रोत का वैज्ञानिक नाम मीथेन हाइड्रेट है. जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अटलांटिक महासागर की गहराई से ऐसी बर्फ को निकाला है. जैसे ही उस बर्फ को चिंगारी दी, वैसे ही वह सुलग उठी. आम तौर पर इसे “फायर एंड आईस” भी कह दिया जाता है.

पृथ्वी में मीथेन हाइड्रेट का भंडार दो जगहों पर मौजूद है. एक तो महासागरों की गहराई में और दूसरा आर्कटिक की बर्फ के नीचे. वैज्ञानिकों के मुताबिक असली चुनौती हजारों मीटर की गहराई में मौजूद इस भंडार तक पहुंचने की है. ओसियन फाउंडेशन के सीनियर फेलो रिचर्ड चार्टर कहते हैं, “मीथेन हाइड्रेट जीवाश्म ईंधन की उम्र को 100 साल या उससे भी लंबा कर सकते है. धरती पर गैस और तेल की जितनी मात्रा बची है, मीथेन हाइड्रेट उसके मुकाबले कहीं ज्यादा हो सकती है.”

मीथेन कार्बन अणुओं से लैस प्राकृतिक गैस है. तेल और कोयले के मुकाबले इसके दहन में काफी कम सीओटू रिलीज होती है. लेकिन मीथेन के साथ एक दूसरी समस्या है. यह खुद ही ग्रीनहाउस गैस है जो पर्यावरण पर सीओटू के मुकाबले 30 गुना ज्यादा हानिकारक प्रभाव छोड़ती है. अगर इसे निकालने की प्रक्रिया में कोई लापरवाही हुई तो जलवायु परिवर्तन का खतरा और गंभीर हो जाएगा.

चार्टर के मुताबिक, “ऐसे में समुद्रों का गर्म होना तेज हो जाएगा, ध्रुवीय बर्फ तेजी से पिघलने लगेगी, इसके चलते पहले के मुकाबले और भी ज्यादा मीथेन रिसने लगेगी. हम धरती को खौलाने की हालत तक पहुंच सकते हैं.”

चार्टर बीते 50 साल से मीथेन हाइड्रेट पर शोध कर रहे हैं. वह चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जल्दबाजी करने के बजाए अभी अलग अलग परिस्थितियों में मीथेन हाइड्रेट के व्यवहार को समझने की जरूरत है.

बर्फ से बाहर निकलते ही मीथेन तेजी से फैलती है. ऐसे में धमाके का खतरा भी पैदा हो जाता है. कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है कि 2010 में मेक्सिको की खाड़ी में बीपी के ऑयल प्लेटफॉर्म पर धमाका मीथेन हाइड्रेट की वजह से ही हुआ.

अमेरिका और जापान के वैज्ञानिकों ने 2012 में अलास्का की उत्तरी ढलान से मीथेन हाइड्रेट निकालने में कामयाबी पाई. वैज्ञानिकों ने गहरी ड्रिल कर सीओटू और नाइट्रोजन के मिश्रण को जमीन के भीतर डाला. इस मिश्रण ने गहराई में दबाव को कम कर दिया और मीथेन रिसने लगी. दो दिन बाद वहां से काफी मीथेन बाहर आती गई.

वैज्ञानिक जोर देकर कह रहे हैं कि इस क्षेत्र में अभी बहुत ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. अमेरिका का ऊर्जा मंत्रालय मीथेन हाइड्रेट पर 8 करोड़ डॉलर की फंडिंग वाली छह वर्षीय योजना बना चुका है. वैज्ञानिकों के मुताबिक फिलहाल मीथेन का व्यावसायिक इस्तेमाल तेल और गैस के मुकाबले बहुत ही ज्यादा मंहगा भी है.

वैज्ञानिक समुदाय के मन में एक बड़ी चिंता भी है. फुकुशिमा हादसे के बाद जापान बहुत तेजी से मीथेन हाइड्रेट निकालने पर काम कर रहा है. भारत और चीन भी समंदर की गहराई से संसाधन बाहर निकालने की तैयारी कर रहे हैं. रूस और कनाडा के पास बड़ा बर्फीला इलाका है, जहां मीथेन हाइड्रेट की अपार मात्रा हो सकती है. लेकिन पृथ्वी पर मौजूद बर्फ पर्यावरण के लिए ढाल का काम करती है. अगर ऊर्जा की भूख के चलते यह तहस नहस हो गई तो बहुत कुछ खत्म हो जाएगा.

 

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