कृषि कानून : हमराह सरकार के नुमाइंदे कहते किसान गुमराह
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]
कृषि के तीन कानून……. उस पर किसान हुए आंदोलित …. । आज तीन दिसम्बर को रात … किसानों और सरकार के बीच चौथे दौर की बातचीत खत्म हुई….। अगले दौर की चर्चा के लिए …. पांच दिसम्बर दोपहर दो बजे का समय मुकर्रर हुआ।
चौथे दौर की चर्चा के बाद केंद्र सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रेस से बात करते हुए बताया कि किसान नेताओं और सरकार के बीच सौहाद्रपूर्ण वातावरण में बातचीत हुई जिसमें किसान यूनियनों ने किसानों का पक्ष और सरकार ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार किसान हितों के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। किसानों ने न्यूनतम मूल्य पर कृषि उपज की खरीदी भविष्य में लागू कानून की वजह से प्रभावित नहीं हो, इस पर विचार किया जाएगा। मंडी व्यवस्था भविष्य में समाप्त हो जाने की किसानों की आशंका पर उन्होंने बताया कि मंडी व्यवस्था और अधिक मज़बूत हो ऐसे प्रावधान किये जा सकते हैं। व्यापारी की पंजीकरण वाले सवाल पर भी श्री तोमर ने गंभीरता से विचार किये जाने की बात कही।
केंद्रीय कृषि मंत्री श्री तोमर की उक्त प्रेस से की गई बातचीत से यह अंदाज लग रहा है कि सरकार किसानों की हमराह की भूमिका निभाने का संकेत दे रही है। लेकिन इसी सरकार के एक अन्य मंत्री गाज़ियाबाद से सांसद जनरल वीके सिंह जब यह कहते हैं कि आंदोलकारियो में किसान नजर नहीं आ रहे हैं। या फिर हरियाणा की खट्टर सरकार के कृषि मंत्री अगर यह कहते नजर आएं कि किसान आंदोलन के पीछे पाकिस्तान , चीन या अन्य विदेशी ताकतों का हाथ है तो इन बयानों से क्या मतलब निकाला जाए। जबकि यह भी उसी भाजपा की केंद्र और हरियाणा राज्य सरकार का हिस्सा हैं जिस भाजपा की केंद्र की सत्ता में आसीन मोदी सरकार किसानों से बातचीत के चार दौर पूरे कर चुकी है। इसका मायने क्या यह है कि केंद्र सरकार विदेशी ताकतों के आगे घुटने टेक रही है या गैर किसानी आंदोलनकारियों से बात कर रही है। इन वाचाल नेताओ की जुबान पर भाजपा का सशक्त केंद्रीय नेतृत्व लगाम लगाने के प्रयास क्यों नहीं करता । अथवा गोदी मीडिया किसानों को खालिस्तानी साबित करते हुए नजर आता है या फिर उन्हें विपक्ष के हाथों गुमराह बताते बताते थक नहीं रहा। इसका मतलब क्या निकाला जाए क्या किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से देश द्रोही कहने की जुर्रत नहीं की गई। दूसरा विपक्ष ने किसान को गुमराह किया है तो जनाब ये तो आप तब भी कह रहे थे जब बेरोजगार आंदोलित हुए थे। आपकी वाणी ने यही उस समय भी उच्चारित किया था जब सेना की एक रेंक एक पेंशन के मुद्दे ने गर्मी पकड़ी थी । जब एनसीआर और सीएए के आंदोलन के समय भी सरकारी भोंपू बनी मिडिया ने यही राग अलापा था। उसी मीडिया से यह सवाल पूछना भी लाजिमी हो जाता है कि दिन रात जब आप मोदी जी और भाजपा के गुण गा रहे है और विपक्ष को कोसने के अलावा उसको अपनी बात कहने या रखने का मौका आपने दिया कब? जो वह सभी वर्गों को गुमराह कर ले। फिर भी मीडिया और भाजपा के कई नेताओं को लगता है किसान गुमराह है?