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किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार एक दिन विवाह करते

किन्नरों का इतिहास चार हजार साल से भी पुराना है, तब भी इन्हें सोसाइटी में बराबरी का दर्जा नहीं मिलता। शायद यही वजह है कि आज भी हम इस समाज से जुड़ी कई बातों से अपरिचित है। इनकी जिंदगी से जुड़े पहलूओं को अगर आप जानेंगे तो चौंक जाएंगे। जैसे- किन्नर समाज की परम्पराएं। इनकी मान्यता तो हिन्दू धर्म की होती है लेकिन उनके गुरु मुस्लिम होते हैं। ऐसे तमाम अनजाने पहलू हैं, जिनकी जानकारी कम ही लोगों को है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में… किन्नर समाज को तिरस्कार भरी नजरों से देखा जाता है। इसलिए लोग इनके बारे में बात करना तक पसंद नहीं करते। लेकिन उनसे जुड़े कई ऐसे फैक्ट्स भी हैं जो बेहद रोचक हैं। शायद आप इनकी खबर तक नहीं रखते। अब तमिलनाडु के कूवगम गांव में प्रचलित उनके इस रिवाज को ही ले लीजिए। यह ट्रांसजेंडर्स का तीर्थ स्थल माना जाता है। हर साल यहां ‘कूवगम फेस्टिवल’ मनाया जाता है।

इस फेस्टिवल में हिस्सा लेने के लिए देश भर के ट्रांसजेंडर्स यहां जमा होते हैं। यहां कई तरह के इवेंट होते हैं। ये त्योहार 18 दिन तक चलता है। उत्सव के दौरान ट्रांसजेंडर्स हर रात अर्जुन के पुत्र अरावन की पूजा करने मंदिर जाते हैं। 18 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में मिस कूवगम ब्यूटी कॉन्टेस्ट होता है, और फिर त्यौहार के आखिरी दिन सभी किन्नर अरावन से एक रात के लिए शादी करते हैं। किन्नरों और अरावन देवता के सम्बन्ध में सबसे अचरज वाली बात यह है की किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते हैं। हालांकि यह विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है। अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। अब सवाल यह उठता है की अरावन हैं कौन, हिजड़े उनसे क्यों शादी रचाते हैं और यह शादी मात्र एक दिन के लिए ही क्यों होती है ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमे महाभारत काल में जाकर देखना होगा। महाभारत की कथानुसार एक बार अर्जुन को, द्रोपदी से शादी की एक शर्त के उल्लंघन के कारण इंद्रप्रस्थ से निष्कासित करके एक साल की तीर्थयात्रा पर भेजा जाता है। वहां से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर पूर्व भारत में जाते है जहां उनकी मुलाकात एक विधवा नाग राजकुमारी उलूपी से होती है। दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। बाद में उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम अरावन रखा जाता है। पुत्र जन्म के पश्चात अर्जुन, उन दोनों को वही छोड़कर अपनी आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं। अरावन नागलोक में अपनी मां के साथ ही रहता है। युवा होने पर वो नागलोक छोड़कर अपने पिता के पास आता है। तब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध चल रहा होता है इसलिए अर्जुन उसे युद्ध करने के लिए रणभूमि में भेज देता है। महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा आता है जब पांडवो को अपनी जीत के लिए मां काली के चरणों में स्वैच्छिक नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है। तब कोई भी आगे नहीं आता इस समय अरावन खुद को स्वैच्छिक नर बलि हेतु पेश करता है लेकिन वो शर्त रखता है की वो अविवाहित नहीं मरेगा। इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्त्पन हो जाता है क्योकि कोई भी राजा, यह जानते हुए की अगले दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता है। जब कोई रास्ता नहीं बचता है तो भगवान श्री कृष्ण स्वयं मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते हैं। अगले दिन अरावन स्वयं अपने हाथों से अपना शीश मां काली के चरणों में अर्पित करता है। अरावन की मृत्यु के पश्चात श्री कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का विलाप भी करते हैं। अब चुकी श्री कृष्ण पुरुष होते हुए स्त्री रूप में अरावन से शादी रचाते हैं इसलिए किन्नर भी अरावन से एक रात के लिए शादी रचाते हैं और उन्हें अपना आराध्य देव मानते हैं। वैसे तो अब तमिलनाडु के कई हिस्सों में भगवान अरावन के मंदिर बन चुके हैं पर इनका सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर विल्लुपुरम जिले के कूवगम गांव में है जो की Koothandavar Temple के नाम से जाना जाता है।

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